यह धारणा अब टूट जानी चाहिए कि नौकरियों के लिहाज से देश के आईआईटी संस्थान पढ़ाई की सर्वश्रेष्ठ जगहें हैं. वजह यह है कि इस वर्ष यहां चले कैंपस हायरिंग के लंबे दौर के बाद इन के जरिए मिलने वाली नौकरियों की संख्या और पैकेज, दोनों में भारी गिरावट दर्ज की गई है. इस दफा 1 करोड़ रुपए से ऊपर के वेतन की नौकरियों के औफर्स पाने वाले छात्रों की संख्या 2014 के मुकाबले 50 फीसदी घट गई है. बीते वर्षों में महज अमेरिकी कंपनियों के लिए प्रोफैशनल्स तैयार करने वाली फैक्टरियों में तबदील हो चुके आईआईटी संस्थानों के छात्रों के औसत पैकेज में आई कमी से खतरा पैदा हो गया है कि इन की बची प्रतिष्ठा भी धूमिल न हो जाए. सचाई यह है कि इस साल मद्रास, रुड़की, बीएचयू, गुवाहाटी और खड़गपुर आईआईटी में जौब औफर के तहत दी जाने वाली सैलरी में 30-40 फीसदी गिरावट आई. यही नहीं, ऐसे औफर्स पाने वाले छात्रों की संख्या भी घटी है.
इस सत्र में आईआईटी में कैंपस सेलैक्शन शुरू होने से पहले ही गूगल, माइक्रोसौफ्ट, ओरेकल आदि कंपनियों के प्रतिनिधि कह रहे थे कि कैंपस हायरिंग के जरिए बेहतरीन टैलेंट को चुनते हुए वे युवाओं को सवा करोड़ रुपए तक के पैकेज वाली नौकरियां औफर करेंगे. पर एकाध मामलों को छोड़ कर औसत रूप से ऐसा हो न सका. पिछले साल ज्यादातर स्टार्टअप कंपनियों के मंदे हुए बिजनैस और औफर लैटर से मुकरने की घटनाओं के कारण आईआईटी संस्थानों में पहले से ही बेचैनी थी, पर इस साल तो नजारे और भी बुझे हुए रहे. सवाल है कि अगर नौकरियों के मामले में भी आईआईटी बेनूरी के शिकार हो जाएंगे, तो उन के होने का क्या औचित्य बचेगा? जिन चमकदार नौकरियों के बल पर ये आईआईटी खुद की योग्यता दर्शाने में पिछले कुछ समय से संलग्न थे और जिसे देख कर देश के मध्यवर्ग का एक बड़ा तबका अपने बच्चों को आईआईटी में पहुंचाने के ख्वाब पाले रहता है, अब वह सपना टूटता लग रहा है.