भारत सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ही नहीं, हमारे अर्थशास्त्री भी यह कहते नहीं अघाते कि भारत दुनिया की सब से तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है. इस में शायद संदेह न हो कि परसैंट यानी फीसदी में भारत तेजी से बढ़ रहा है पर यह आंकड़ा इस से समझ आ सकता है मान लीजिए एक कंपनी में एक मजदूर, जिसे 20 हजार रुपए महीना मिलता है, की वेतनवृद्धि 7 फीसदी होती है पर उस के मैनेजिंग डायरैक्टर, जिसे 14 लाख रुपए का मासिक वेतन मिलता है, की वेतनवृद्धि महज 2.5 फीसदी होती है, मजदूर से वही काम रुपयों में गिनेंगे तो मजदूर को हर माह में सिर्फ 1,400 रुपए मासिक ज्यादा मिलेंगे जबकि मैनेजिंग डायरैक्टर की आय 35 हजार रुपए बढ़ जाएगी. जो अंतर पहले 13 लाख 80 हजार रुपए का था वह बढ़ कर अब 14,13,600 रुपए का हो जाएगा.

भारत व चीन का उदाहरण सब से मौजूं है. कुल सकल उत्पादन को इंग्लिश में जीडीपी कहते हैं, वर्ष 2014 से 2015 के बीच चीन की जीडीपी भारत से 8,476 अरब डौलर से बढ़ कर 8,950 हो गई. वर्ष 1960 में दोनों देशों की जीडीपी का अंतर 22 अरब डौलर था. यह अंतर 1970 में बढ़ कर 30 अरब डौलर हो गया. वर्ष 1980 में यह अंतर किन्हीं कारणों से 5 अरब डौलर का रह गया पर वर्ष 1990 में यह अंतर 113 अरब डौलर का हो गया. वर्ष 2000 में यह अंतर 743 डौलर हो गया. और वर्ष 2010 में यह अंतर 4,412 अरब डौलर पहुंच गया. वहीं, वर्ष 2020 में भारत में ‘महान नेता’ के आगमन के बावजूद यह अंतर 12 हजार अरब डौलर का हो गया. और 2025, जबकि 5 ट्रिलियन डौलर की अर्थव्यवस्था का राग भारत में आलापा जा रहा है, में अनुमान है कि यह अंतर 18,282 अरब डौलर यानी 18 ट्रिलियन डौलर से ज्यादा का हो जाएगा.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...