पौराणिक कहानियां जो हमारे यहां हर मौके पर पंडितों, प्रवचन कर्ताओं और व्हाट्सएप महानुभवों द्वारा सुनार्ई जाती हैं, एक विशेषता रखती हैं. वह है कि उन में न सिरपैर होता है, न तर्क, न सही तथ्य पर पढऩे में मजेदार होती है. हमारी पुलिस इस ज्ञान में माहिर है और जब भी किसी अभियुक्त को साल 6 माह बाद जेल में रखने के बाद जमानत मिलती है (आरोपमुक्ति नहीं) यह स्पष्ट हो जाता है कि बेबात में पौराणिक सी कहानी बना कर उसे जेल में इतने दिन बंद रखा गया.
सुशांत ङ्क्षसह राजपूत की आत्महत्या के मामले में कितनों को ही बेमतलब की पौराणिक कहानियां बनाकर मजिस्ट्रेट के सामने अभियुक्त बना कर खड़ा किया गया और गिरफ्तारी का आदेश ले लिया गया. आमतौर पर हमारे जज पुलिस की बात कानून व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर मान लेते हैं पर जब तथ्यों की कमी होने लगती है तो लगने लगता है कि पुलिस का केस तो सत्यनारायण व्रत कथा की तरह का है. जिसमें सत्यनारायण की कथा है ही नहीं.
मुंबई के अंधेरी के रहने वाले जपतप ङ्क्षसह आनंद को फरवरी 2020 में गिरफ्तार किया गया था क्योंकि सुशांत सिंह राजपूत की मैनेजर करिश्मा प्रसाद ने उस के अकाउंट में 3100 रुपए भेजे थे. अब यह न पूछें कि यह पुलिस को कैसे पता चला कि यह पैसा 50 ग्राम गांजा खरीदने के लिए भेजे गए थे. पुलिस का दावा था कि जपतप ङ्क्षसह ने यह पैसे अपने भाई करमजीत ङ्क्षसह को दिए जिसे भी गिरफ्तार किया गया था पर पहले ही जमानत मिल चुकी थी.
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विलक्षण ज्ञान वाले नैरकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरों के पुलिस अधिकार रखने वाले अफसरों को दिव्य ज्ञान हो गया था कि यह पैसा ड्रग खरीदने के लिए दिया गया था. अब जपतप ङ्क्षसह आनंद के पास चाहे ड्रग न मिली हो पुलिस के लिए यह ब्रहत वाक्य सी एंट्री थी कि 3100 रुपए का लेनदेन ड्रग के अरबों के व्यापार का हिस्सा है.
जपतप को पुलिस कैंट में इतना समय बिताने के बाद आर्यन खान की तरह जमानत मिल गई पर सबाल उठता है कि हम कैसे समाज में जी रहे हैं जहां जो सत्ता में हो वे चाहे जैसे आरोप लगा कर अपराधी सिद्ध कर सकते हैं. यह ऐसा ही आरोप है जैसा व्हाट्सएप पर घूमता है कि सोनिया गांधी के पास इतने 1 अरब डौलर हैं, लालू यादव के पास इतने, मनमोहन ङ्क्षसह के पास इतने.
इन सब की जड़ में वह धाॢमक प्रचार है जिसे पढ़ कर औरतें खुद भी झूम उठती हैं और पूरे परिवार को उसी पर चलाती हैं. शुक्रवार के व्रत की यह महिला है, गैरमुखी घर का यह दुर्गुण है, लाल साड़ी में यह शुभ बात है, विधवा अपने पति का इस तरह खा जाती है. विभूति के ग्रह दोष इन कारणों से है आदि की कंपाल कल्पित कहानियां सुन कर, पढ़ कर व्हाट्सएप पर जान कर देश का समाज पुलिसमयी हो गया है. सैंकड़ों जजों के आदेश भी इसी तरह के होते हैं जो यथासंभव पुलिस की हां में हां मिलाते हैं जैसे झुंड में बैठी प्रवचनकर्ता वे शब्दों पर जयजयकार करती हैं.
देश की खराब पुलिस व्यवस्था का दोष घरों की सोच को दिया जा सकता है. अज्ञान किस तरह हानिकारक हो सकता है, हम सब जानते हैं. हमारी गरीबी, हमारे झगड़ों और हमारी बिमारियों की जड़ों में बहुत हद तक यह अज्ञान ही है जो पुलिस दस्तावेजों में भी पहुंच जाता है और निर्दोषों को महीनों, सालों जेलों में सडऩा होता है. उन के घर वाले किस तरह तिलतिल कर मरमर के जीते हैं, यह कल्पना ही शरीर को झनझना देती है.