घर बनाना शुरू करने से पहले वास्तुशास्त्र के अनुसार जमीन में कुछ कीलें गाड़ने का विधान है, जिन के साथ सूत बांधा जाता था. ये कीलें किस जाति के लिए किस वृक्ष की होनी चाहिए इस बारे में ‘समरांगण सूत्रधार वास्तुशास्त्र’ में महाराजा भोजदेव ने लिखा है कि जिन वृक्षों के नाम पुल्लिंग में हों, उन की लकड़ी की कीलें बनाई जानी चाहिए, न कि उन वृक्षों की जिन के नाम स्त्रीलिंग में हों :
‘पुन्नामानो द्रुमा: शस्ता:
स्त्रीनामानो विगर्हिता:.’
(समरांगणसूत्र. 21/3)
किस जाति के लिए कौन सी कील : समरांगण सूत्रधार में आगे कहा गया है कि ब्राह्मण के लिए पीपल और खैर की लकड़ी की कीलें वृद्धिकारक हैं और क्षत्रिय के लिए लाल चंदन एवं बांस की कीलें शुभ हैं. साल तथा शिरीष (सिरस) के पेड़ों की बनी कीलें वैश्यों के लिए शुभ हैं. इसी प्रकार तिनिश, धव और अर्जुन वृक्षों की कीलें शूद्र के लिए शुभ कही गई हैं :
‘अश्वत्थ: खदिरश्चैतौ
विप्राणां वृद्धिकारकौ,
रक्तचंदनवेणूत्थ-
कीलौ क्षत्रस्य पूजितौ.
कीलौ शालशिरीषोत्थौ
वैश्यानां कीर्तितौ शुभौ
शूद्रजातेस्तु तिनिश-
धवार्जुनसमुद्भवा:.’
(समरांगण सूत्र. 21/4-6)
किस जाति की कितनी लंबी कील : ब्राह्मण जाति की कील 32 अंगुल लंबी हो, क्षत्रिय जाति की 28, वैश्य की 24 और शूद्र जाति की 20 अंगुल. तभी हित होता है :
‘द्वात्रिंशदंगुला: कीला
विप्राणां स्यु: शुभावहा:,
क्षत्रियाणां पुनश्चाष्टा-
विंशत्यंगुलसम्मिता:.
चतुर्विंशत्यंगुलाश्च
वैश्यानां शुभदायिन:,
विंशत्याद्यंगुलै: कीला:
शूद्रजातेस्तु ते हिता:.
किस जाति की कील के कितने कोने : ब्राह्मण की कील चौकोर हो, क्षत्रिय की अठकोन अथवा षट्कोण हो तथा शूद्र की कील 6 अस्रों (किनारों) वाली हो :
ब्राह्मणक्षत्रियविशां वेदाष्टाश्रषडश्रय:
षडश्रयस्तु शूद्रस्य.
(समरांगण सूत्र. 21/12-13)
सूत्र और जाति : वास्तुशास्त्र कहता है कि घर बनाने के लिए जो फीता (सूत्र) हो वह भी हर जाति के लिए निश्चित सामग्री से बना होना चाहिए :
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