अपनी ही सगी बेटी की अपने ही हाथों गला घोंट कर हत्या कर उस की लाश को दूर जंगल में जला कर फेंक देना और फिर 3 साल तक कैमरों की चकाचौंध में दिनरात ऐसे बिता देना मानो कुछ हुआ ही नहीं, एक आश्चर्य की बात है. पीटर मुखर्जी और इंद्राणी मुखर्जी की जोड़ी अरसे से टैलीविजन स्क्रीनों में देखी जा रही थी, क्योंकि वह स्टार टीवी और आईएनएक्स मीडिया से जुड़ी थी और कुछ आर्थिक मामलों में उलझी भी थी. पर उस तरह का अपराध मां ने किया हो, पचता नहीं है. जीवन बड़ा कठिन है. जो मां वर्षों पहले अपने पहले और दूसरे पति को छोड़ चुकी हो, जिस ने पहले ही दिन बेटी के जन्म प्रमाणपत्र पर मातापिता का नाम कुछ और लिखाया हो, जो नए तीसरे पति से गलबहियां करते हुए दूसरे पति से भी संपर्क रख रही हो, ऐसी विलक्षण औरत पर पूरी बात तो किसी मोटी किताब से ही पता चलेगी. फिलहाल इंद्राणी मुखर्जी अपने ड्राइवर और पति नंबर 2 के साथ जेल में है और उस ने गुनाह कैसे किया इस की परतें खुल रही हैं पर ये परतें उसे अपराधी बनाएंगी, यह कहा नहीं जा सकता.

फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि कुछ औरतें जीवन में हुई गलतियों को छिपाने के लिए और गलतियां करती हैं और गलतियां करते हुए सही का ध्यान ही भूल जाती हैं. उन्हें लगता है कि वे अपने सुंदर सौम्य चेहरे से क्लियोपैट्रा की तरह सब गुनाह छिपा सकती हैं. इतिहास, साहित्य और समाज इन औरतों के कारनामों को कुछ बढ़ाचढ़ा कर दर्शाने का आदी है, क्योंकि उस ने तो बड़ी मेहनत से औरत को एक बेचारी, गऊ जैसी, निरीह, धर्म और परिवार के जुल्मों से सताई औरत बनाने में हजारों साल लगाए हैं और जो इस फ्रेमवर्क को तोड़ दे वह औरत समाज को मंजूर नहीं है. इंद्राणी मुखर्जी या सुनंदा पुष्कर समाज को मंजूर नहीं है और इस पूरे मामले ने भी अखबारों की सुर्खियां और टीवी की हैडलाइन पर कब्जा किया हुआ है, तो इसीलिए कि उस ने वह किया जिस की अपेक्षा न थी, इजाजत न थी.इंद्राणी मुखर्जी कैसे नएनए नामों से अवतरित हुई, कैसे बच्चों के बावजूद उस का रंगरूप बना रहा, कैसे उस ने नए व पुराने पतियों को सहा, कैसे वह अपने छोड़े बच्चों को संभालती रही और फिर भी कैसे उस का सुंदर खिलखिलाता चेहरा दिखता रहा, यह परियों की प्रेम कहानियों जैसा है जिस में रहस्य, रोमांच तो दर्शाया जा रहा है पर उस औरत का दर्द नहीं, जिस ने न जाने क्याक्या भोगा होगा और न जाने क्यों और कैसे महत्त्वाकांक्षा को चेहरे पर आत्मविश्वास के साथ बनाए रखा होगा. इंद्राणी और सुनंदा जैसी औरतों को अपवाद माना जाता है, क्योंकि समाज के नियमों की परवाह न कर के सही या गलत करार पर उन्होंने पुरुषों के कू्रर समाज में जगह बनाने की कोशिश की, इस में  कोई शक नहीं है.

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