आंध्र प्रदेश के एक औटो मेकैनिक की बेटी ऐश्वर्या  रेड्डी को दिल्ली के लेडी श्रीराम कालेज में अपनी मैरिट के बलबूते मैथ्स औनर्स में 2 साल पहले ऐडमिशन तो मिल गया पर होस्टल में रहना, रोजमर्रा का खर्च उठाना उस के लिए भारी पड़ रहा था.

उस ने जैसेतैसे काम चलाया पर अब जब कालेज ने कहा कि वह होस्टल छोड़ दे और न केवल कहीं और रहने का इंतजाम कर ले, अपनी पढ़ाई के लिए लैपटौप का भी इंतजाम कर ले तो उस के लिए यह अति था. घर वालों को आर्थिक संकट से बचाने के लिए उस ने आत्महत्या कर ली.

जो लोग यह सोचते हैं कि देश में पिछड़े, दलित, गरीब धीरेधीरे ऊपर आ रहे हैं वे असल में बहकावे में लाए जा रहे हैं. यह कम्युनिस्ट तरह का प्रचार है. देश आज भी गरीबअमीर ही नहीं, जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा के टुकड़ों में बंटा हुआ है और जो भी एक दायरा लांघने की कोशिश करता है, कट्टर समाज उस पर हावी हो कर हमला कर देता है.

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यह हमला किसी भी तरह का हो सकता है. कमैंट करे जा सकते हैं. पहनावे और खानपान को ले कर अपमानित किया जा सकता है. पैसे की कमी को लेकर मजाक उड़ाया जा सकता है. फीस बढ़ाई जा सकती है ताकि कम पैसे वाले खींची लकीर पार न कर सकें.

ऐश्वर्या रेड्डी केवल गरीबी के कारण परेशान थी, जरूरी नहीं है. यह वर्ग अपनी गरीबी के प्रति पूरी तरह सजग रहता है और कम खर्च में काम चलाना जानता है.

यह वर्ग अगर कुछ नहीं जानता तो यह कि कैसे ऊंचे लोगों में घुलेमिले. ऊंचे वर्ग के लोग, इन में औरतें और उन की बेटियां ज्यादा मुखर हैं, पहली मुलाकात में मांबाप, भाषा, धर्म, जाति, पैसे, पृष्ठभूमि की पूरी कुंडली बना लेती हैं. जो उन के जैसा नहीं है उसे कौक्रोच समझा जाता है, जो नाली में रहने लायक है.

देश की राजनीतिक व्यवस्था व सामाजिक नैरेटिव इस बात को हर रोज भाषणों, प्रवचनों, किस्सों से दोहरा रही है. बारबार एहसास दिलाया जा रहा है कि जो नीचे हैं वहीं रहें और वहीं सरकार से दया की भीख मांगें.

आधार, पैनकार्ड जैसे परिचय की आईडी में कहीं न कहीं छिपा संदेश होता है कि कौन कहां से है. यह पते में हो सकता है, नाम में हो सकता है, शक्ल में हो सकता है.

लेडी श्रीराम कालेज शुरू से ही धन्ना सेठों की बेटियों का कालेज रहा है. दिल्ली के जानेमाने उद्योगपति दिल्ली क्लौथ मिल के मालिक श्रीराम द्वारा स्थापित इस कालेज को जमीन ही लाजपत नगर में मिली थी, जो साउथ दिल्ली में है, जहां देश को चलाने वाला वर्ग रहता है. इस वर्ग को दूसरों, निचलों, गरीबों की घुसपैठ बिलकुल मंजूर नहीं. अगर अंगरेजी माध्यम की चीन की दीवार लांघ कर भी कोई घुस आए तो उसे पराया घोषित कर के दुत्कार कर रखा जाता है. ऐसी लड़की जो पूरे समय डरीसहमी रही हो, एक और आर्थिक मार नहीं सह पाई और उस ने घर पहुंच कर आत्महत्या कर ली ताकि उस के मातापिता रोजाना उस का लटका मुंह न देखें और वह उन की हताशा, बेबसी न देख पाए.

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यह समस्या सिर्फ पैसे की नहीं है. मेधावी के लिए कहीं से पैसे का जुगाड़ हो जाता है. यह समस्या जाति, वर्ग, धर्म की है, जिसे आज सैकड़ों चूल्हों पर रोजाना पकाया जा रहा है ताकि सत्ता की मिठाई मिलती रहे पर केवल खुद को, बाकी लंगरों में खाते रहें. हाथ भरभर कर या चौराहों में घरघर भीख मांग कर.

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