सरकार का मतलब होता है जनता की सुविधाओं की प्रबंधक, व्यवस्थापक. उस की जिम्मेदारी है कि वह अपने क्षेत्र में सुशासन की व्यवस्था करे, चोरी, डकैती, बेईमानी, लूट, हत्या, बलात्कार, दंगाफसाद आदि पर नियंत्रण कर के आम जनता को सुख, सम्मान व अधिकार दिलाए. तब तो वह जनता की सरकार, जनता के लिए और जनता द्वारा बनाई गई सरकार है अन्यथा चोरों, दलालों व पूंजीपतियों की सरकार कहलाएगी.
अगर जनता आह भरभर कर जीवनयापन कर रही है, महंगाई, भ्रष्टाचार व अभावों के दुखों तले दबी हुई है तो निश्चित रूप से सरकार भ्रष्टाचार में व्यस्त व मस्त है. यों भ्रष्टाचार के अनेक कारण हैं किंतु एक सुदृढ़ कारण यह है कि सरकार अपने वफादार सिपाहियों (जनप्रतिनिधियों) को खुश रखने की बेहतर से बेहतर तरकीब करती रहती है. कुछ तरकीबें तो ऐसी भी हैं जिन से पक्ष व विपक्ष के सभी जनप्रतिनिधि खुश हो जाते हैं, जैसे जब सरकार माननीयों के वेतन, भत्ते, पैंशन व अन्य सुखसुविधाओं में कई गुना बढ़ोतरी करती है.
सरकारें बिना पूंजीवादी व्यवस्था के आश्रित हुए स्वयं को विकलांग महसूस करती हैं. तो जाहिर है जिस से अंधाधुंध चुनावखर्च हेतु चंदा लेंगे, निर्वाचित होने पर उन के साथ नमकहलाली ही करेंगे. दूसरी बात यह भी है कि अपनी कई पीढि़यों को आर्थिक रूप से मजबूत व संपन्न करना भी निर्वाचित सदस्यों की विवशता बनती जा रही है.
बड़े नगरों व राजधानी में भी आवास व व्यापार की सुविधा बनाना ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अकूत धनसंपदा जमा करना, आवासीय व व्यापरिक जड़ें मजबूत करना आदि भी माननीयों के राजनीतिक दायित्वों के मुख्य हिस्से बनते जा रहे हैं.