दिल्ली मैट्रो हो या मुंबई की लोकल ट्रेन, हर जगह भीड़ ही भीड़ है. इस भीड़ में एक चीज कौमन है, वह है इस भीड़ के हाथों में मोबाइल का होना. ट्रेन व बस का गेट पकड़े हुए हर शख्स के मोबाइल फोन की स्क्रीन पर शौर्ट रील्स ही स्क्रौल हो रही होती है. ऐसा लगता है मानो लोगों को कोई काम ही न हो.
इस खाली वक्त में वह अपनी स्टडी, अपने वर्क से रिलेटिड कंटैंट पढ़ या देख सकते हैं लेकिन वे घुसे होते हैं फैशन, लाइफस्टाइल, मेकअप, कपड़े या प्रोडक्ट के रिव्यू देने वाली रील्स में, जो कि उन का वक्त बरबाद करती हैं. फिर भी युवा धड़ल्ले से इन रील्स को देख रहे हैं.
ऐसा कर वे न सिर्फ अपना कीमती समय बेकार की चीजों में बरबाद कर रहे हैं बल्कि इन कंटैंट क्रिएटर का बैंक अकांउट भी अपने पैसों से भर रहे हैं.
कंटैंट क्रिएटर आखिर ऐसा क्या पेश करते हैं कि युवा दिनभर उन की रील्स देखने में लगे रहते हैं. इस का जवाब यह है कि कंटैंट क्रिएटर कंटैंट के नाम पर कुछ भी पोस्ट कर देते हैं और उन के फोलोअर्स सिर्फ उन की रील्स पर ढेरों व्यूज और लाइक देने का काम करते हैं.
ऐसे ही कुछ कंटैंट क्रिएटर हैं जो अपनी रील्स में अलगअलग शौपिंग साइट से कपड़े और प्रोडक्ट खरीद कर उन के बारे में बताते हैं. कहीं घूमने जाते हैं तो उस की रील्स बना लेते हैं और कुछ क्रिएटर तो इतने महान हैं कि उन्हें कोई कंटैंट नहीं मिलता तो वे गानों पर डांस या लिपसिंग करते हुए रील्स अपलोड कर देते हैं और यंगस्टर्स इन्हें बड़ी संख्या में देखते हैं.