लेखिका- मासूमा रानालवी
इन दिनों हमारे यहां बच्चियों के साथ होने वाले रेप पर बहुत सारी बातें हो रही हैं. नये कानून बनाये जा रहे हैं, सामाजिक चेतना विकसित किये जाने की कोशिशें हो रही हैं. यह अच्छी बात है. लेकिन हैरानी की बात यह है कि हमारे ही समाज में एक ऐसा समुदाय है, जहां मासूम बच्चियों के साथ रेप से भी कहीं ज्यादा खौफनाक, रेप से भी ज्यादा जघन्य कृत्य हो रहा है. लेकिन उस पर न तो खुलकर सामाजिक हस्तियां बोल रही हैं और न ही ऐसे कृत्य को अपराध माने जाने की बात हो रही है. हम इस जघन्य कृत्य को धर्म के नाम पर, सामाजिक प्रथा के नाम पर होने दे रहे हैं. जी, हां! ये जघन्य कृत्य मासूम बच्चियों का ‘खफ्द’ या खतना है.
हिंदुस्तान में बोहरा मुस्लिम समुदाय जिन्हें दाऊदी बोहरा या सुलेमानी बोहरा के रूप में भी जाना जाता है, में यह बर्बर प्रथा आज से नहीं ग्यारहवीं सदी से लागू है. इसके चलते तीन-चार से लेकर सात-आठ साल तक मासूम बच्चियों को जब उन्हें देश दुनिया की तो छोड़िये अपने आपके बारे में कुछ नहीं पता होता, तब उनका बहला-फुसलाकर धोखे से खतना किया जाता है. इस खतना से वे तात्कालिक तौरपर तो पीड़ा से बिलबिला जाती ही हैं, पूरी जिंदगी उनके जेहन से यह खौफ नहीं निकलता. एक तरह से वह पूरी जिंदगी मानसिक खौफ में जीती हैं. हैरानी की बात यह है कि यह ‘खफ्द’ या खतना जिसे अंग्रेजी में फीमेल जेनाइटल म्युटिलेशन कहते हैं, संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक मानवाधिकारों का हनन है.
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