मुंबई की एक पॉश एरिया की बिल्डिंग में रहने वाला 10 साल का सूरज, जो कक्षा 4 में पढता है, दिन-भर खेलना चाहता है, उसे ऑनलाइन पढाई पसंद नहीं. उसकी माँ नीता हमेशा सूरज को लेकर परेशान रहती है और स्कूल खुलने के बारें में सोचती है, क्योंकि वह टीवी के आगे या कम्प्यूटर के आगे बैठना पसंद करता है और तब केवल गेम खेलना या कार्टून देखना चाहता है. उसकी माँ नीता का कहना है कि जब से कोरोना संक्रमण शुरू हुआ है. तब से लेकर आजतक स्कूल नहीं खुले, बच्चे को स्कूल जाने की आदत ख़त्म हो गयी है और ऑनलाइन परीक्षा जैसा भी दे, उन्हें पास कर दिया जाता है. ये बात सूरज को भी पता है और वह इसका फायदा उठा रहा है.

सूरज ही नहीं कॉलेज जाने वाले मिहिर की भी ऐसी ही हालत है. बी,कॉम फाइनल इयर का  छात्र मिहिर पढाई ख़त्म होने के बाद कैंपस प्लेसमेंट से कोई नौकरी कर, कुछ पैसे जोड़कर, एम बी ए की एजुकेशन के लिए विदेश जाना चाहता था, लेकिन कोरोना ने उसकी इच्छा पर पानी फेर दिया है. उसका डेढ़ साल पूरा ख़राब हो गया. परीक्षा भी ऑनलाइन हो रहा है, जिसमें सभी को अच्छे अंक मिल रहे है. प्रतियोगिता की भावना अब किसी में नहीं है. घर पर रहकर उसे पढने में मन नहीं लगता और जब वह इस अनिश्चित लॉकडाउन और महामारी से देश की लोगों की हालत देखता है, तो वह सबकुछ ठीक होने के बारें में सोचता रहता है, क्योंकि इस महामारी के बाद क्या उसे नौकरी मिलेगी? क्या ऑनलाइन परीक्षा का परिणाम विदेश में मान्य होगा? ऐसी कई बातें वह अपने दोस्तों से बिल्डिंग के बेसमेंट में खड़े होकर चर्चा करता रहता है.

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