अगर पुणे जैसे मामले, जिन में किशोर लड़के के पोर्शे गाड़ी से 2 जनों को कुचलने के चक्कर में उस के पिता, दादा ही नहीं, मां तक जेल में है, की जड़ों में जाएं तो पता चलेगा कि यह उस गलतफहमी का फल है कि पैसा या पावर सबकुछ करा सकता है. यह ठीक है जिस के पास पैसा है वह पावर खरीद सकता है और जिस के पास पावर है वह पैसा जमा कर लेता है पर समाज में आमतौर पर एक संतुलन बना रहता है.
जब तक पैसे व पावर वाले अपने में मस्त रहते हैं, मौज उड़ाते हैं, पैसे को खर्च करते हैं, पावर का रोब जमाते हैं, तब तक ठीक है पर जब मामला उस से ज्यादा हो जाए और ऊंचे ही नहीं आम लोगों की जिंदगी भी दूभर करने लगे, कहीं न कहीं ऐसा हो जाता है कि पैसा और पावर सब धरा रह जाता है.
यह जनता का सामूहिक दबाव था कि पुणे में किशोर ड्राइवर की गलतियों की परतें 1-1 कर के उधड़ती चली गईं और जितना उस ने बचने की कोशिश की, उतना फंसता चला गया. बहुत से ऐसे मामले भी होते हैं जिन में सिर्फ ईर्ष्यावश पैसे और पावर वाले को सजाएं भुगतनी होती हैं क्योंकि
कोई उस के पीछे हाथ धो कर पड़ जाता है. यह दुर्दशा का हाल बना होता है क्योंकि आमतौर पर पैसे और पावर का नशा 4 जामों से भी ज्यादा होता है.
जो बात पैसे और पावर के साथ है वह औरतों की सुंदरता के साथ भी जुड़ी होती है. आमतौर पर पैसे व पावर वाले सब से सुंदर, सब से मेधावी औरत को घर में लाना चाहते हैं पर केवल सजाने के लिए वे नए चैलेंज नहीं संभाल पातीं. युवा पति आमतौर पर बच्चों को संभालने के लिए छुट्टी लेने से इनकार कर देता है चाहे इस का मतलब शादी का टूटना ही क्यों न हो, बच्चों से बिछड़ना ही क्यों न हो.