धर्म व राजसत्ता का गठजोड़ फासीवाद व अंधवाद पैदा करता है. धर्म को सत्ता से दूर करने के लिए ही लोकतंत्र का उद्भव हुआ था. रोम को धराशायी करने में सब से बड़ा योगदान समानता, संप्रभुता व बंधुत्व का नारा ले कर निकले लोगों का था. ये लोग धर्म के दुरुपयोग से सत्ता पर कब्जा कर के बैठे लोगों को उखाड़ कर फेंकने को मैदान में उतरे थे व राजशाही को एक महल तक समेट कर ब्रिटेन में लोकतंत्र की ओर आगे बढ़े.
बहुत सारे यूरोपीय देश इस से भी आगे निकल कर राजतंत्र को दफन करते हुए लोकतंत्र की ओर बढ़े और धर्म को सत्ता के गलियारों से हटा कर एक चारदीवारी तक समेट दिया, जिसे नाम दिया गया वैटिकन सिटी.
आज किसी भी यूरोपीय देश में धर्मगुरु सत्ता के गलियारों में घुसते नजर नहीं आएंगे. ये तमाम बदलाव 16वीं शताब्दी के बाद नजर आने लगे, जिसे पुनर्जागरण काल कहा जाने लगा अर्थात पहले लोग सही राह पर थे, फिर धार्मिक उन्माद फैला कर लोगों का शोषण किया गया और अब लोग धर्म के पाखंड को छोड़ कर उच्चता की ओर दोबारा अग्रसर हो चुके हैं.
सोच में बदलाव
आज यूरोपीय समाज वैज्ञानिक शिक्षा व तर्कशीलता के बूते दुनिया का अग्रणी समाज है. मानव सभ्यता की दौड़ में कहीं ठहराव आता है तो कहीं विरोधाभास पनपता है, लेकिन उस का तोड़ व नई ऊर्जा वैज्ञानिकता के बूते हासिल तकनीक से हासिल कर ली जाती है.
आज हमारे देश में सत्ता पर कब्जा किए बैठे लोगों की सोच 14वीं शताब्दी में व्याप्त यूरोपीय सत्ताधारी लोगों से ज्यादा जुदा नहीं है. मेहनतकश लोगों व वैज्ञानिकों के एकाकी जीवन व उच्च सोच के कारण कुछ बदलाव नजर तो आ रहे हैं, लेकिन धर्मवाद व पाखंडवाद में लिप्त नेताओं ने उन को इस बात का कभी क्रैडिट नहीं दिया.
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