इस में अब संदेह नहीं रह गया है कि जनता के हित के जो काम वोटों से चुन कर आई सरकारों को करने चाहिए, अदालतें उन्हीं सरकारों के बनाए कानूनों की जनहित व्याख्या करते हुए काम करने लगी है. अदालतों ने साबित कर दिया है कि हमारी सरकारों के पास या तो मंदिर बनाने का काम रह गया है या ठेके देने का. दोनों में जनता का गला घोंट कर पैसा छीन कर लगाया जा रहा है. सरकारों को आम जनता के दुखदर्द की चिंता कम ही होती है जब मामला टैक्स का हो या वोट का या फिर धर्म का.
चैन्नई उच्च न्यायालय ने एक अच्छे फैसले में कहा है कि हालांकि एक मुसलिम औरत को खुला प्रथा के अनुसार तलाक लेने का पूरा हक है पर इस का सर्टिफिकेट कोईर् भी 4 जनों की जमात नहीं दे सकती. अब तक शरीयत ‘कोर्ट’ ऐसे सर्टिफिकेट देती थी जिन्हें कैसे बनाया जाता था और उन के तर्कवितर्क क्या होते थे, वहीं रिकौर्ड नहीं किए जाते थे. उच्च न्यायालय ने कहा कि औरतों को फैमिली कोर्ट जा कर अपना सर्टिफिकेट लेना चाहिए जहां उस के खाविंद की भी सुनी जाएगी.
इसी तरह सेना में ऐडल्ट्री यानी पतिपत्नी में से एक का किसी दूसरे से सैक्स संबंध इंडियन पीनल कोड में अब आपराधिक गुनाह नहीं रह गया हो, सेनाओं में सेना कानूनों के हिसाब से चलता रहेगा. यह बहुत जरूरी है क्योंकि सैनिकों को महीनों घरों से बाहर रहना पड़ता है और उन के पास उन के पीछे बीवियों के गुलछर्रे उड़ाने की खबरें आती रहती हैं.
इसी तरह महीनों पत्नी से दूर रहे सैनिक पति कहीं किसी लोकल औरत से संबंध न बना लें, इस गम में पत्नियां घुलती रहती हैं.
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