पिछले कुछ सालों से ट्रेवल करना मेरे लिए जरुरी हो गया था. आर्किटेक्ट होने की वजह से मुझे जॉब के साथ ही बहुत ट्रावेल करना पड़ता था. मैं हर साल किसी न किसी क्षेत्र में ट्रेवल करती रही. जब मैं हैदराबाद वापस आई, तो मुझे GoUNESCO चैलेंज में भाग लेने के लिए कहा गया, जिसमें पूरे भारत में 28 UNESCO साइट्स को एक साल में पूरा करना था. मैने इस चैलेज को लिया और इसे जीतने के बाद ट्रेवलिंग की उत्कंठा और अधिक बढ़ गयी. इन बातों को हंसती हुई कह रही थी,39 वर्ष की हैदराबाद की‘मोवो संस्था’ की संस्थापक बुलेट बाइकर जय भारती.
मिली प्रेरणा
जय भारती ने छोटी अवस्था से ही पिता प्रसाद रावकी छोटी लूना मोपेड चलाना सीख लिया था. उनका कहना है कि मेरे भाई और मुझमें, पिता ने कभी अंतर नहीं समझा. इसके बाद से मुझे गाडी चलाने का शौक बढ़ा और जो भी मोटरसाइकिल मेरे घर आती थी, मैं उसे चलाती थी. पहले मैंने शौक से चलाया, लेकिन पिछले 10 सालों से मैं सीरियसली बाइक चला रही हूँ, जिसमें केवल भारत ही नहीं इंडोनेशिया, वियतनाम, अमेरिका आदि कई जगहों पर एक मिशन के साथ बाइक चला चुकी हूँ. ये सही है कि मैंने बाइक चलाना फैशन के रूप में सीखा, लेकिन बहुत सारी महिलाओं को भी गाड़ी चलने का शौक होता है,पर उन्हें कोई सीखाने वाला नहीं होता. मैंने अपनी संस्था की तरफ से कम आय वाली 1500 महिलाओं को गाड़ी चलाना मुफ्त में सिखाया है. कुछ प्राइवेट गाडी चलाती है, तो कुछ रोज की चीजों को मार्केट से लाकर बेचती है या फिर कहीं आने जाने के लिए चलाती है. इसमें मैं उन्हें लाइसेंस अपने पैसे से लेने के लिए कहती हूँ, ताकि परिवार के लोग इसमें शामिल हो, क्योंकि कई बार लड़कियां घर पर बिना बताये गाडी सिखती है, इसलिए ऐसा करना पड़ा. मेरी इस टीम में 10 संस्था की और 10 फ्री लांस काम करते है. इसके अलावा मेरी कोशिश रहती है कि महिला को महिला इंस्ट्रक्टर ही सिखाएं, इससे वे अधिक जल्दी सीख लेती है, क्योंकि उनका कम्फर्ट लेवल अधिक अच्छा होता है.
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