आजकल नौकरी बड़ी मुश्किल से मिलती है. कई  युवा नौकरी की तलाश करतेकरते थक जाते हैं तो निराश और हताश हो जाते हैं. ऐसे में कईर् बार वे डिप्रैशन में चले जाते हैं. इन में से कुछ तो खुदकुशी भी कर लेते हैं. जिन्हें नौकरी मिल जाती है उन्हें नौकरी का तनाव रहता है. जब तनाव बरदाश्त से बाहर हो जाता है तो वे आत्महत्या कर लेते हैं. क्या नौकरी का तनाव सचमुच इतना भारी होता है कि उस का कोई हल नहीं निकलता?

मल्टीनैशनल हों या फिर प्राइवेट कंपनियां, जितना ऊंचा पद और सैलरी, उतना ही अधिक तनाव.  नौकरी पर तनाव और आत्महत्या को ले कर कई शोध हुए हैं. हाल ही में मध्य प्रदेश के ग्वालियर के गजरा राजा मैडिकल कालेज के फौरेंसिक साइंस विभाग में हुए शोध के अनुसार, कड़ी प्रतिस्पर्धा के इस दौर में तनावभरी नौकरी जानलेवा हो रही है. करीब 61 फीसदी आत्महत्याएं नौकरी के तनाव से मानसिक अवसाद की वजह से हो रही हैं. शोध में यह भी खुलासा हुआ है कि खुदकुशी करने वालों में तात्कालिक कारण के बजाय मानसिक अवसाद ही सब से बड़ा कारण रहा है. 80 से 85 फीसदी मामलों में मानसिक अवसाद की स्थिति सामने आई है.

यह शोध 2 वर्षों में आत्महत्या करने वाले 200 परिवारों से हुई बातचीत पर तैयार किया गया है. शोध का मकसद नौकरी के तनाव की वजह से आत्महत्या करने की सोच रखने वाले लोगों की पहले से पहचान करना है ताकि उन्हें काउंसलिंग के जरिए बचाया जा सके.  शोध में पाया गया कि नौकरी का तनाव पुरुषों में अधिक रहता है. आत्महत्या करने वालों में 61 फीसदी पुरुष हैं तथा 39 फीसदी महिलाएं. कामकाजी महिलाओं में आत्महत्या का कारण कार्यस्थल का तनाव पाया गया है.  शोध में आत्महत्या करने वाले जिन 200 लोगों के बारे में पता किया गया उन में से 59 फीसदी ने जहर खा कर जबकि 41 फीसदी ने फांसी लगा कर जान दी. इस की वजह यह है कि देश में जहरीली दवाएं आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं.

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