लंबी जद्दोजेहद के बाद 19 अगस्त को ‘मौलीवुड’ के नाम से मशहूर मलयालम सिनेमा उद्योग यानि मौलीवुड के अंदर महिलाओं की स्थिति का आकलन करने के लिए बनाई गई 3 सदस्यीय जस्टिस हेमा कमेटी की रिपोर्ट के जारी होते ही हंगामा मच गया.
गोदी मीडिया के सुर में सुर मिलाते हुए प्रिंट मीडिया व तमाम यूट्यूबरों ने भी इस रिपोर्ट को ‘हिला देने वाली रपट’,‘आंखें खोल देने वाली रिपोर्ट’ ,‘चौंकाने वाली रपट’ जैसे विश्लेषणों के साथ इसे सनसनीखेज बना कर आम लोगों तक पंहुचाया जा रहा है. हर न्यूज चैनल को अपनी टीआरपी बढ़ाने की चिंता है, तो अखबार को अखबार की बिक्री की चिंता है. समाज सुधार या किसी फिल्म इंडस्ट्री में व्याप्त बुराई से उस का कोई सरोकार नही है. हर चैनल व अखबार सिर्फ ‘नारी यौन शोषण’ की ही चर्चा कर रहा है जबकि हेमा रिपोर्ट में 17 मुद्दे उठाए गए हैं, जिन में से यौन शोषण भी एक मुद्दा है.
दूसरी बात हेमा रिपोर्ट में ऐसी क्या अनूठी बात कही गई है जिस से हम सभी अपरिचित हैं? ‘मौलीवुड’ के नाम पर हेमा रिपोर्ट में दर्ज तथा कथित ‘आंखें खोल देनेे वाली’ बुराइयां सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्वभर में हर क्षेत्र में व्याप्त है. फिर चाहे वह कारपोरेट जगत हो, शिक्षा जगत हो, न्यूज चैनल्स हों या इंटरटेनमैंट चैनल्स, ओटीटी प्लैटफार्म हो या राजनीतिक पार्टियां ही क्यों न हों, पर हमारी आदत है कि हम अपने घर के अंदर की सफाई करने की बनिस्बत दूसरों की बुराइयां गिनाने में आत्म आनंद की अनुभूति करते हैं.
‘हेमा रिपोर्ट’ के आने और उस पर गौर करने पर एक बात स्पष्ट रूप से उभर कर आती है कि यह सारा खेल राजनीतिक है और इस का असली मकसद औरतों को घर की चारदीवारी के अंदर कैद करने के साथ ही पूरे भारतीय सिनेमा को नष्ट करने का प्रयास मात्र है.
हेमा रिपोर्ट आने के बाद केरला जा कर जिस तरह से भाजपा अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री ने केरला सरकार पर निशाना साधा है और फिर केरला प्रदेश कांग्रेस की एक कार्यकर्ता ने जिस तरह से अपनी पार्टी के पदाधिकारी पर आरोप लगाया, उस के बाद उस का कांग्रेस दल से निष्कासन भी बहुत कुछ कहता है. यों बुराई हर जगह है और इस बुराई की मूल जड़ पितृसत्तात्मक सोच ही है. पर इसे मिटाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं बल्कि समाज को ही खत्म करने के प्रयास किए जा रहे हैं.
2014 के बाद की केंद्र सरकार ने पुरुष मानसिकता को बदलने की बजाय सामाजिक स्ट्क्चर को बदलने पर ही अपना पूरा जोर लगा रखा है जबकि जरुरत है कि समाज के अंदर व्याप्त बुराइयों को खत्म करने की दिषा में कदम उठाए जाएं. देष के हर पुरुष व महिला की मानसिकता को बदलने के प्रयास किए जाएं, पर ऐसा कुछ नहीं हो रहा है.
तीसरी बात, सिनेमा का इतिहास 111 वर्ष पुराना है. मगर 2014 के बाद जिस तरह से भारतीय सिनेमाजगत की गतिविधियां रही हैं, वह भी अपनेआप ही काफी कुछ कह जाती है. हेमा कमेटी की रिपोर्ट पिछले 5 साल से दबा कर रखी गई थी, पर 2024 में उस वक्त ‘ओमन इन सिनेमा कलेक्टिव’ यानी कि डब्ल्यूसीसी के दबाव व अदालत के हस्तक्षेप के बाद जारी की गई, वह भी कई सवाल उठाती है.
2024 में हिंदी, गुजराती, मराठी, तेलुगु, तमिल किसी भी भाषा की कोई फिल्म सफलता दर्ज नहीं करा पाई है जबकि मलयालम भाषा की ‘मंजुममेल ब्वौय’,‘अवेशम’ और ‘प्रेमालु’ इन 3 फिल्मों ने सफलता दर्ज कराने के साथ ही पूरे विश्व में हजार करोड़ से अधिक की कमाई भी की. इसी के चलते मई माह से ही बौलीवुड में एक खास राजनीतिक दल से जुड़ा वर्ग बौलीवुड को दक्षिण भारतीय सिनेमा नुकसान पहुंचा रहा है, यह बात जोरशोर से फैला रहा था.
हेमा कमेटी का गठन कब व क्यों हुआ था
केरल राज्य में मलयालम सिनेमा में महिलाएं शोषण व बुनियादी सुविधाओं के अभाव को ले कर दबे स्वर में आवाज उठाती रही हैं, पर शासनप्रशासन किसी के भी कानों में जूं नहीं रेंग रही थी. तो वहीं मलयालम फिल्म आर्टिस्ट एसोसिएशन ‘एएएमएमए’ यानि कि ‘अम्मां’ अति शक्तिशाली संगठन है, इस में कोई दोराय नहीं। वहां की बाकी एसोसिएशन भी उस के खिलाफ जाने का साहस नहीं उठा पा रही थीं. 2017 में एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री को बीच सड़क रोक कर उसी की कार में उस के साथ रेप किया गया और उस का वीडियो भी बनाया गया. इस कांड में अभिनेता दिलीप सहित 10 लोग शामिल थे. दिलीप ‘आर्टिस्ट एसोसिएशन’ की कार्यकारिणी में थे. यह मामला अदालत पहुंचा, तो दिलीप ने एसोसिएशन से खुद को अलग कर लिया. इस बीच उस अभिनेत्री की मौत हो गई. 3 माह बाद अदालत से दिलीप को जमानत मिल गई. यह मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है पर अदालत से जमानत मिलते ही मलयालम फिल्म आर्टिस्ट एसोसिएशन, ‘अम्मां’ से जुड़ीं महिला कलाकारों के विरोध के बावजूद दिलीप को फिर से आर्टिस्ट एसोसिएशन की कार्यकारिणी से जोड़ लिया गया. इस से दिलीप की ताकत का एहसास किया जा सकता है.
एसोसिएशन की कार्यकारिणी में भी कुछ अभिनेत्रियां हैं, मगर सब पुरुष कलाकारों के निर्णय को ही सर्वमान्य करती रहती हैं. इस से नाराज हो कर अभिनेत्री पार्वती ने इस एसोसिएशन से अपनेआप को अलग कर लिया और पार्वती ने फिल्म ऐडिटर बीना पौल व अभिनेत्री रेवती आशा व अन्य महिलाओं के साथ मिल कर 2017 में ‘वूमन इन सिनेमा कलैक्टिव’ (डब्ल्यूसीसी) का गठन किया, जहां कोई भी महिला निडर हो कर अपनी आपबीती सुना सकती थीं. फिर ‘वूमन इन सिनेमा कलैक्टिव ’ की तरफ से सरकार पर दबाव बनाया गया. तब सरकार ने जस्टिस हेमा के नेतृत्व में 3 सदस्यीय कमेटी का गठन कर उसे मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं की स्थिति पर रपट देने के लिए कहा गया था. जस्टिस के हेमा की कमेटी में अनुभवी दक्षिण भारतीय अभिनेत्री शारदा और पूर्व नौकरशाह केबी शामिल थे. इस के अलावा अभिनेत्री वत्सला कुमारी सलाहकार थीं.
अभिनेत्री पार्वती मलयालम सिनेमा के अलावा तमिल, कन्नड़ व ‘करीब करीब सिंगल’ व ‘कड़क सिंह’ जैसी हिंदी फिल्मों में भी नजर आ चुकी हैं.
हेमा रिपोर्ट कब और कैसे सार्वजनिक की गई
जस्टिस हेमा की कमेटी ने 2017 से 2019 के बीच अपनी पहचान उजागर किए बिना ‘मौलीवुड’ में हर विभाग में कार्यरत पुरुषों और महिलाओं से औन कैमरा साक्षात्कार लिया था. सदस्यों ने महिलाओं की कामकाजी स्थितियों को देखने के लिए 2019 की फिल्म ‘लूसिफेर’ के सैट का भी दौरा किया. इस कमेटी ने भारतीय प्रतिनिधि फिल्म के रूप में औस्कर के लिए नामित फिल्म ‘2018’ के हीरो तोविनो थौमस से भी बात की थी. फिर इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 2019 में सरकार को सौंप दी थी, जिसे सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल कर चुप्पी साध ली थी. लेकिन कुछ लोगों ने आरटीआई दाखिल कर सरकार पर ऐसा दबाव बनाया कि अंततः केरला सरकार ने जस्टिस हेमा कमेटी की 235 पन्नों की रपट 19 अगस्त, 2024 को जगजाहिर कर दी. पर बाद में इस में से 2 पन्ने हटा कर सिर्फ 233 पन्ने कर दिए गए जबकि हेमा कमेटी ने 315 पन्नों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी.
2024 में ‘डब्लू सीसी’ के अदालत जाने पर अदालत ने कुछ पन्ने हटा कर रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का आदेश दिया था. पर सरकार ने उस से अधिक पन्ने हटा दिए.
दरअसल, यह नहीं भूलना चाहिए कि केरल सरकार व वहां के फिल्म कलाकारों के बीच गहरे संबंध हैं. कुछ कलाकार व निर्देशक शासक दल के एमएलए भी हैं.
क्या कहती है हेमा रिपोर्ट
आसमान रहस्यों से भरा है, टिमटिमाते सितारों और खूबसूरत चांद के साथ. लेकिन वैज्ञानिक जांच से पता चला कि तारे टिमटिमाते नहीं हैं, न ही चंद्रमा सुंदर दिखता है. हेमा रिपोर्ट की शुरुआत यहीं से होती है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तुम जो देखते हो उस पर भरोसा मत करो। यहां तक कि नमक भी चीनी जैसा दिखता है.’
233 पन्नों की इस रपट में कई चौंकाने वाले तथ्य शामिल हैं. इस रपट में कहा गया है कि कई महिलाओं ने सिनेमा में जो अनुभव झेले हैं, वह वास्तव में चौंकाने वाले और इतने गंभीर हैं कि उन्होंने उन विवरणों का खुलासा परिवार के करीबी सदस्यों से भी नहीं किया. रिपोर्ट के अनुसार, मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में 10-15 पुरुषों का एक अनाम संगठन है, जोकि पूरे फिल्म उद्योग को नियंत्रित करता है. यह बात भी सामने आई है कि इन पुरुषों के राजनेताओें से भी गहरे संबंध हैं. मजेदार बात यह है कि पुरुषों का यह समूह इतना ताकतवर है कि इसी के इशारे पर ‘केरला उच्च न्यायालय’ की एकल पीठ के समक्ष अभिनेत्री रंजिनी ने इस रिपोर्ट को जारी करने पर रोक लगाने की मांग की थी, जिसे अदालत ने ठुकरा दिया और रिपोर्ट सार्वजनिक हो गई.
रिपोर्ट में कहा गया है कि फिल्म का ‘प्रोडक्शन कंट्रोलर फिल्म की मुख्य भूमिका वाली अभिनेत्री/ सहायक अभिनेत्री को संकेत देते हैं कि उन्हें समायोजन (यौन संबंध बनाने) के लिए या मुख्य भूमिका में निर्देशक/ निर्माता/ अभिनेता को खुश करने के लिए तैयार रहना चाहिए.
नए लोगों की तो छोड़िए, मौलीवुड से जुड़े अनुभवी कलाकारों को भी इस शक्तिषाली पुरुष समूह का कोपभाजन बनना पड़ा. हेमा कमेटी की इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि एक अनुभवी प्रतिभाशाली कलाकार को ‘मौलीवुड’ के माफिया गैंग ने फिल्म तो छोड़िए, टीवी सीरियल में भी अभिनय नहीं करने दिया. यानि माफिया को चुनौती देने के कारण एक प्रतिभाशाली अनुभवी अभिनेता को मौलीवुड में समर्थन नहीं मिला. मौलीवुड से जुड़े सूत्र इस वाकेआ को दिवंगत थिलाकन से जोड़ कर देख रहे हैं, जिन्होंने 200 से अधिक मलयालम फिल्मों में काम किया था और अपने मैथड ऐक्टिंग के लिए मशहूर थे. 2012 में 77 वर्ष की आयु में उन का निधन हुआ था.
हेमा कमेटी की यह रिपोर्ट ‘मलयालम फिल्म इंडस्ट्री’ में जोंक की तरह औरतों का खून चूसने वाली ‘कास्टिंग काउच संस्कृति के अस्तित्व पर भी प्रकाश डालती है, जहां महिलाओं पर फिल्मों में भूमिका सुरक्षित करने के लिए अपने नैतिक चरित्र से समझौता करने का दबाव डाला जाता है. कुछ मामलों में यदि महिलाएं पुरुषप्रधान सत्ता संरचना की मांगों से सहमत होती हैं तो उन्हें सहयोगी कलाकार जैसे कोड नाम दिए जाते हैं. रिपोर्ट में उन महिलाओं की दुखद कहानियां शामिल हैं जिन का पुरुष सहकर्मियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया था और वह प्रतिशोध के डर से घटनाओं की रिपोर्ट करने से बहुत डरती थीं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्पीड़न शुरू से ही शुरू हो जाता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमिका की तलाश में फिल्म इंडस्ट्री में किसी के भी पास जाने वाली महिला को मौके के लिए ‘समायोजन’ और ‘समझौता’ करने के लिए कहा जाता है. कुछ लोगों की राय में मौलीवुड में सभी सफल महिलाएं इस तरह के समझौते कर चुकी हैं. यह धारणा किसी और ने नहीं बल्कि इंडस्ट्री के ही लोगों ने बनाई है, ताकि नए लोगों को सैक्स की मांग के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए राजी किया जा सके.
जस्टिस के हेमा की समिति ने जब महिलाओं के साक्षात्कार लिए तो यह बात सामने आई कि ‘मौलीवुड’ में अधिकांश पुरुषों के बीच यह आम धारणा है कि फिल्म के अंदर यानि कि सिनेमा के परदे पर अंतरंग दृश्यों में अभिनय करने की इच्छुक महिलाएं सैट के बाहर भी ऐसा करने को तैयार रहती हैं। समिति का कहना है कि सुबूतों (वीडियो क्लिप, औडियो संदेश, व्हाट्सऐप संदेश आदि सहित) के गहन विश्लेषण के बाद वह आश्वस्त है कि महिलाओं को उद्योग के भीतर ‘प्रसिद्ध’ लोगों से भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.
महिला पेशेवरों के उत्पीड़न के विभिन्न तरीकों को सूचीबद्ध करते हुए रिपोर्ट कहती है, “यदि माफिया किसी अभिनेत्री से नाखुश है, तो वह शूटिंग सैट पर अंतरंग दृश्यों के शौट्स को दोहरा कर उन्हें मानसिक रूप से परेशान करते हैं. शिकायत के बाद एक निर्देशक ने एक अभिनेत्री को 17 बार लिपलौक सीन दोहराने के लिए कहा. जब फिल्म रिलीज हुई थी, तो शौट्स का इस्तेमाल नहीं किया गया था. यहां तक कि शूटिंग के बाद भी जब महिलाएं अपने होटल के कमरे में जाती हैं, तो कई लोग उन के दरवाजे खटखटाते हैं.”
साक्षात्कार के दौरान समिति से इन महिलाओं ने यह भी बताया कि आउटडोर में शूटिंग के दौरान ज्यादातर होटलों में जहां उन्हें ठहराया जाता है वहां पर सिनेमा में काम करने वाले पुरुषों द्वारा उन के दरवाजे लगातार खटखटाए जाते हैं। इन पुरुषों में से ज्यादातर नशे में होते हैं. कई मौकों पर महिलाओं को लगा कि दरवाजा गिर जाएगा और पुरुष बलपूर्वक कमरे में प्रवेश कर जाएंगे.
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अकसर 1-2 लोग महिलाओं को कपड़े बदलने में मदद करने के लिए कपड़ा पकड़ लेते हैं. महिला के मासिकधर्म के दौरान यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है. समिति ने अपनी रिपोर्ट आगे लिखा है कि कई महिलाएं पानी पीने से बचती हैं और पेशाब रोकती हैं, जिस:के परिणामस्वरूप संक्रमण और असुविधा होती है. आउटडोर शूटिंग का जिक्र करते हुए आरोप लगाया गया है कि काम आधी रात को समाप्त होने के बावजूद जूनियर कलाकारों को रेलवे या बस स्टेशन तक सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की जाती है.
हेमा कमेटी का सुझाव
इस समिति ने एक न्यायाधिकरण के गठन की सिफारिश की है, जिस में एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश, अधिमानतः एक महिला, किसी भी व्यक्ति को निरीक्षण, पूछताछ और किसी भी जांच से संबंधित तथ्य की रिपोर्ट करने के लिए नियुक्त करने के लिए अधिकृत हो. यदि ट्रिब्यूनल गठित होता है, तो वह इस पर विचार करेगा कि क्या विवाद या शिकायत को पहले समझौते, परामर्श या सुलह द्वारा हल किया जा सकता है या क्या यह स्थिति के अनुसार उचित समझी जाने वाली अन्य काररवाई की गारंटी देता है. इस समित ने ट्रिब्यूनल के समक्ष सभी काररवाई को ‘औन कैमरा’ करने की सिफारिश की है. इस के अलावा जांच का सामना करने वाले किसी भी व्यक्ति को निवारण के लिए किसी अन्य मंच पर जाने पर कोई रोक नहीं होनी चाहिए. इस में कहा गया है कि न्यायाधिकरण को आपराधिक मुकदमा चलाने की शक्तियों के बिना, एक सिविल अदालत के रूप में माना जाए.
समित ने यह सिफारिश भी की है कि यदि कोई व्यक्ति महिलाओं को परेशान करता है, बुनियादी सुविधाओं से इनकार करता है, अभद्र टिप्पणियां करता है, शूटिंग के दौरान ड्रग्स या शराब का सेवन करता है या उद्योग से महिलाओं पर ‘प्रतिबंध’ लगाता है तो न्यायाधिकरण को उस पर जुरमाना लगाने या उसे प्रतिबंधित करने का अधिकार दिया जाना चाहिए.
हेमा कमेटी की रिपोर्ट के बाद तेज हुई आरोपप्रत्यारोप के साथ राजनीतिक हलचलें
हेमा रिपोर्ट सार्वजनिक होेते ही ‘डब्लूसीसी’ के सदस्यों ने खुशी जाहिर की. उस के बाद 1992, 2006, 2009 और 2012 की पीड़िता महिलाओं ने फेसबुक पर कुछ कलाकारों व निर्देशकों पर प्रत्याड़ित करने के आरोप लगाया.
कोलकाता के एक पुरुष कलाकार ने भी एक मलयालम निर्देषक पर यौन शोषण का आरोप लगाया। जिन पर आरोप लगे उन्होंने जब कानूनी काररवाई करने की धमकी दी, तो अब कुछ पीड़िताओं ने पुलिस में जा कर एफआईआर भी करवा दी. परिणामतया अब केरला सरकार ने एक एसआई टी भी गठित कर दी. अब हर दिन नए नए खुलासे हो रहे हैं. अफसोस, यह आरोप अब सिर्फ वही लगा रही है जिन का कैरियर खत्म हो चुका है. बाकी की खामोशी अपनेआप बहुत कुछ संकेत देती है. इन पर यह आरोप भी लग रहे हैं कि ये लोग ‘विक्टिम कार्ड’ खेल रही हैं.
हेमा रिपोर्ट आने के बाद मलयालम इंडस्ट्री में खामोशी छाई रही. ‘अम्मा’ के अध्यक्ष मोहनलाल भी चुप रहे. पर मामला बढ़ने पर उन्होंने म ‘अम्मा’ को भंग करते हुए कहा,‘‘जो कुछ हुआ, उस की जिम्मेदारी मलयालम फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हर शख्स को लेनी पड़ेगी.’’
अभिनेता ममूटी ने कहा,‘‘ सिनेमा जिंदा रहना चाहिए. सिनेमा को खत्म करने का प्रयास नहीं होना चाहिए. मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में ‘नो पावर ग्रुप’.
उधर, हेमा कमेटी को इंटरव्यू देने वाले तथा औस्कर में भारतीय प्रतिनिधि वाली फिल्म ‘2018’ के नायक / अभिनेता टोविनो थौमस कहते हैं,‘‘मैं ने खुद हेमा कमेटी के सामने सारे तथ्य रखे थे, पर जिस तरह से यह बातें सामने आई हैं, वह पूरी तरह से मलयालम सिनेमा को बरबाद करने वाला कांड ही है.’’
मलयालम अभिनेता जयसूर्या और सिद्दिकी तथा निर्देशक रंजीत ने अपने उपर लगाए गए आरोपों पर कहा कि वे कानूनी काररवाई करेंगे.
जयसूर्या के समर्थन में उतरी नायला उषा
अपने कैरियर में कई सुपरहिट फिल्मों का हिस्सा रहीं अभिनेत्री नायला उषा ने एक एक विदेशी अखबार संग बात करते हुए दावा किया कि उन्हें मलयालम सिनेमा में किसी बुरे अनुभव का सामना नहीं करना पड़ा. पर उन्होंने इस बात से इनकार नही किया कुछ लोगों को औडिशन के दौरान समायोजन करने के लिए कहा गया होगा. उन के अनुसार, जब अभिनेत्री मिल रही भूमिका से इतर भूमिका पाने का प्रयास करती है, तब शायद उस के सामने समझौता करने का प्रस्ताव आया होगा. उन के अनुसार, लोगों को हेमा समिति की रिपोर्ट के निष्कर्षो से स्तब्ध नहीं होना चाहिए.
उन्होंने कहा,‘‘मैं ने तमाम विशेषाधिकारों का आनंद लिया है, लेकिन मैं उन लोगों के साथ खड़ी हूं जिन के पास यह विशेषाधिकार नहीं है. मेरे किसी भी सह कलाकार ने ऐसे अनुभवों का सामना करने के बारे में कभी शिकायत नहीं की।’’
नायला को अपनी पहली फिल्म रिलीज होने से पहले दूसरी फिल्म जयसूर्या स्टारर ‘पुण्यलन अगरबत्ती’ मिल गई.
नायला कहती हैं,‘‘जयसूर्या के साथ अभिनय करने का अनुभव अच्छा रहा. वह मेरे करीबी दोस्त हैं और कहा कि वे इतने करीब हैं कि वह किसी भी समय उसे फोन कर सकती है और उस से मदद मांग सकती है. उन के खिलाफ आरोप ने मुझे सचमुच झकझोर दिया. उस के बाद मैं ने उन से बात नहीं की. जब मैं कहती हूं कि मैं हैरान थी, तो इस का मतलब यह नहीं है कि मुझे उस महिला पर भरोसा नहीं है या मैं जयसूर्या का समर्थन करती हूं.’’
हेमा कमेटी में नया कुछ नहीं
अब सवाल उठता है कि जिस हेमा कमेटी को ले कर सनसनी फैलाने का काम हमारे न्यूज चैनल्स कर रहे हैं, ऐंकर यह बता सकते हैं कि हेमा कमेटी की रिपोर्ट में ऐसा नया क्या है, जिस की भनक उन्हें नहीं थी या उन्हें यह एहसास नहीं है कि यह सब हर क्षेत्र में हो रहा है. सच यह है कि पूरे विश्व में हर क्षेत्र में यह सारी बुराइयां मौजूद हैं. कम से कम हौलीवुड सहित विश्व की हर फिल्म इंडस्ट्री कास्टिंग काउच का शिकार है और इस पर कोई रोक नहीं लगा पा रहा है. इस की मूल वजह यह है कि इस बुराई की मूल जड़ पुरुष मानसिकता और पितृसत्तात्मक सोच है.
इस बात की तस्दीक तो डौक्यूमेंट्री फिल्म ‘‘मफ्राम द शैडोज’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक मरियम चंडी मीनाचेटी, जोकि मूलतया केरल की रहने वाली हैं, भी करती हेैं जोकि सिनेमा में महिलाओं की वर्किंग कंडीशन पर अपनी नई डौक्यूमेंट्री के लिए स्पेन, हौलीवुड व भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई लोगों से इंटरव्यू ले चुकी हैं और अभी कुछ और लोगाें से वह बात करने वाली हैं.
केरला की मलयालम महिलाओं की छवि
मगर मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच के नाम पर इस कदर यह सब हो रहा है, उस से थोड़ा सा आश्चर्य जरूर है. कुछ समय पहले प्रदर्षित फिल्म ‘एनीमल’ में ‘अल्फा मेल’ की बात की गई है, पर हम बता दें कि केरला की मलयालम औरतों के बारे में माना जाता है कि वह ‘अल्फा वूमंस’, ‘उच्च शिक्षित, सषक्त, ताकतवर, हर चुनौती का जवाब देने में समर्थ होती हैं. ऐसे में तमाम लोग पुरुष सत्तात्मक स्पेस और फेमीनिज्म को जनरलाइज करने को उचित नहीं मानते.
क्या यह सिनेमा को खत्म करने की राजनीतिक साजिश है
कुछ लोग ‘हेमा रिपोर्ट’ को ले कर मचे हंगामे को ‘राजनीतिक कुचक्र’ भी मान रहे हैं. वास्तव में 2014 में केंद्र की सरकार बदलने के साथ ही इस सरकार का जो रवैया सिनेमा के प्रति रहा, वह बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है. सच यह है कि सिनेमा एक सशक्त माध्यम है. सिनेमा के माध्यम से जो विचार, जो बात कही जाती है, उस का असर आम जनता पर काफी तेजी से होता है.
2014 के बाद केंद्र सरकार ने इस माध्यम का उपयोग अपने ऐजेंडे को सफल बनाने के लिए करने की दिशा में कदम उठाए. प्रधानमंत्री 2-3 बार मुंबई आ कर किसी न किसी बहाने बौलीवुड के प्रतिनिधियों से मिले. 1-2 बौलीवुड के प्रतिनिधिमंडल को चार्टर प्लेन से दिल्ली बुला कर मिले. सेंसर बोर्ड में भी बदलाव किए गए. सिनेमा के विकास के लिए चली आ रही 5 संस्थाओं का एक में ही विलय कर कुछ पर कतरने का प्रयास किया गया. अंततः बौलीवुड व कुछ दूसरी फिल्म इंडस्ट्रीज में एक खास राजनैतिक दल को लाभ पहुंचाने वाले ऐजेंडे के साथ सिनेमा बनने लगा. कुछ फिल्मकारों ने इसे हिंदुत्व या राष्ट्रवादी सिनेमा की संज्ञा दी. कुछ फिल्मकारों ने अपने सिनेमा को प्रोपेगैंडा सिनेमा कहने वालों को थप्पड़ मारने की भी धमकी दी. पर अफसोस बौलीवुड में ऐजेंडे व प्रोपेगैंडा वाले सिनेमा को दर्शकों ने नकार दिया जबकि मलयालम सिनेमा अपने हिसाब से कम्यूनिस्ट विचारधारा के अनुकूल और न ही ऐजेंडेे के नाम पर फूहड़, घटिया या मनोरंजनहीन सिनेमा ही बन रहा था.
मलयालम सिनेमा बेहतर बनता रहा.परिणामतया 2024 में भी उस ने कमाल की सफलता दर्ज की. दूसरी बात सब से पहले ‘मीटू’ का मामला 2017 में ही बौलीवुड में उठा. कई लोग सामने आए और जम कर यौन शोषण के आरोप लगाए. फिर मलयालम फिल्म इंडस्ट्री मे मामला उठा और ‘हेमा कमेटी’ का गठन हुआ.
2019 में तेलंगाना राज्य में भी यही मुद्दा उठा और तेलंगाना राज्य ने भी एक कमेटी गठित की. यह अलग बात है कि अब तक तेलंगाना सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया है. तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में चर्चा है कि तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में कुछ लोग भाजपा व आरएसएस के इशारे पर काम करते हैं. वहां चर्चा रही है कि राजामौली निर्देशित फिल्म ‘आरआरआर’ को एक आरआरएस नेता की सिफारिश पर दोबारा फिल्माया गया था और इस फिल्म का प्रचार करने के लिए निर्देशक एसएस राजामौली व अभिनेता प्रभास गुजरात, दिल्ली व वाराणसी गए थे तथा गंगा नदी में नाव की सवारी भी की थी.
ध्यान देने योग्य बात यह है कि उस वक्त महाराष्ट, केरला और तेलंगाना में भाजपा की सरकारें नहीं थीं. वर्तमान समय में महाराष्ट्र में भाजपा समर्थित सरकार है, पर तेलंगाना और केरला में भाजपा विरोधी सरकारें हैं.
केरला में ‘डब्लू सीसी’ संगठन जुड़े लोगों पर भी सरकार विरोधी होने के आरोप लगे हैं. 2024 में लोकसभा चुनाव के बाद डब्ल्यूसीसी हमलावर हो गई और अदालत तक पहुंच गई.आरटीआई दाखिल कर दी गई. परिणामतया केरला सरकार को ‘हेमा रिपोर्ट’ के कुछ पन्ने हटा कर जारी करना पड़ा.
उधर तेलुगू इंडस्ट्री से जुड़े लोग अब अभिनेत्री सामंथ रूथ प्रभू, नंदिनी रेड्डी व गायक चिन्मयी रेया तेलंगाना सरकार पर भी कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं जबकि महाराष्ट्र यानि कि बौलीवुड में ‘मीटू’ की बातें सरकार बदलने के साथ ही खत्म हो गई थीं और जिन पर ‘मीटू’ के तहत आरोप लगे थे, वे सब पुनः काम कर रहे हैं. पर आरोप लगाने वालों को काम नहीं मिल रहा है.
इस पूरे घटनाक्रम के आधार पर कहा जा रहा है कि यह सारा खेल राजनीतिक है.
क्या होना चाहिए
नारी शोषण किस जगह नहीं हो रहा है. पर इस का यह अर्थ नहीं है कि ‘मलयालम फिल्म इंडस्ट्री’ पर हेमा कमेटी की रिपोर्ट को नजरंदाज कर दिया जाए. जी नहीं, यौन शोषण या किसी भी रूप में देश की एक भी औरत को प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए. हर नारी को जीवन की हर सुविधाएं पाने का हक है. मगर जरूरत इस बात की है कि आरोपप्रत्यारोप लगाने की बजाय फिल्म इंडस्ट्री सहित हर क्षेत्र के कई लोगों को अपने घर के अंदर सफाई करने की जरूरत है.
पितृसत्तात्मक सोच को बदलने की जरुरत है. पुरुष मानसिकता को बदलने की जरूरत है.शतो वहीं नारी स्वतंत्रता व नारी उत्थान के नाम पर शराब व सिगरेट पीने वाली औरतों को भी सोचना होगा कि कहीं वे नशे की हालत में खुद पर काबू न रख कर कुछ गलत पुरुषों के बहकावे में आ कर शोषण का षिकार तो नहीं हो रही हैं.
हेमा रिपोर्ट आने के बाद जिस तरह से बातें की जा रही हैं, उसे सुन कर तो यही निष्कर्ष निकलता है कि देश की औरतों को घर की चारदीवारी में बंद कर दिया जाना चाहिए. कुछ समय पहले प्रदर्शित व 2024 की सफलतम हिंदी फिल्म ‘स्त्री 2’ में भी डर के आतंक के साए में औरतों को आधुनिकता से दूर रहने व उन्हें घर की चारदीवारी में कैद रहने का ही संदेश दिया गया है. हमें यहां याद रखना चाहिए कि शासकदल के समर्थक दिनेश वीजन और उद्योगपति मुकेश अंबानी की कंपनियों ने ही फिल्म ‘स्त्री 2’ का निर्माण किया है.
अब 6 सितंबर से ओटीटी प्लेटफौर्म ‘अमेजान प्राइम’ पर स्ट्रीम हो रही वैब सीरीज ‘काल मी बे’ में भी एक उद्योगपति,जोकि टेलीकौम इंडस्ट्रीज से जुड़ा है और राजनैतिक पहुंच रखता है, द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म अभिनेत्री के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए किस तरह ब्लैकमेल करता है, उसकी कहानी है.
तो जो लोग नारी को घर की चारदीवारी में कैद करने के मकसद से हर घटनाक्रम को प्रसारित कर रहे हैं, हम उनके खिलाफ हैं. हम चाहते हैं कि हर घर इस तरह के शोषण के खिलाफ घर के अंदर ही सफाई अभियान चलाए. देखिए, क्या हम सभी इस बात से सहमत नहीं हैं कि हमारे आसपास गरीब हो या मध्यवर्गीय हो या उच्च मध्यवर्गीय परिवार हो, हर दूसरे तीसरे दिन किसी न किसी महिला का यौन शोषण होता है और उस शोषित महिला के परिवार के सदस्य ही उसे हमेशा के लिए जबान बंद रखने का दबाव नहीं बनाते. क्योंकि सभी को अपनी सामाजिक मानमर्यादा भंग होने का का डर सताता है. सिर्फ आम इंसान ही नही बल्कि अति उच्च और ताकतवर परिवारों में भी यही होता है.
नोबल पुरस्कार विजेता कनाडियन लेखक की मजबूरी या…
कनाडा की मशहूर लेखिका ऐलिस मूनरो को 2013 में उन की लघु कहानियों के लिए साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला था. कनाडा बहुत बड़ा देश नहीं है. इसलिए वहां हर बात सभी को जल्द पता चल जाती है. पहले पति की मौत के बाद ऐलिस मुनरो ने गेराल्ड फ्रेमलिन के साथ दूसरी शादी की थी. गेराल्ड ने ऐलिस मुनरो के पहले पति की बेटी एंडरिया रौबिन स्कीनर का उस वक्त रेप किया था, जब वह सिर्फ 9 वर्ष की थी. अब वह 18 साल की है मगर ऐलिस ने अपनी बेटी का मुंह बंद करा दिया था.
युवा होने पर एक कहानी के माध्यम से बेटी ने इस सच को उजागर किया था पर उसे दबा दिया गया. जब ऐलिस मुनरो को नोबल पुरस्कार मिला, तब भी उन की बेटी ने यह आरोप लगाया था, पर तब इसे दबा दिया गया कि पुरस्कार मिलने से उसे जलन हुई.
13 मई, 2024 को ऐलिस मुनरो की मौत हो गई. तब एक बार फिर उन की बेटी ने यह आरोप लगाने के साथ ही मुकदमा भी कर दिया है. ऐलिस मुनरो खुद ताकतवर थीं. पूरे विश्व में उन का नाम था. फिर भी उन्होंने अपनी बेटी को यौन शोषण के खिलाफ जबान बंद रखने पर मजबूर किया.
ऐसे में यह उम्मीद करना कि फिल्म इंडस्ट्री में कैरियर बनाने की चाह रखने वाली लड़कियां व औरतें यौन शोषण या बुनियादी सुविधाओं से दूर रखे जाने पर चुप रहने को मजबूर न हुई हों, यह कहना गलत है. कुछ लोग आरोप लगा रहे हैं कि 1992 या 2006 में यौन शोषित पीड़िताओं द्वारा अब आवाज उठाने पर सवाल उठाने वालों के पास क्या इस सवाल का जवाब है कि इन पीड़िताओं को तब या अब न्याय मिल पाएगा? जी नहीं, न्याय मिलना मुश्किल है. पर हम चाहते हैं कि इस की आड़ में किसी भी औरत को घर पर कैद रहने के लिए मजबूर न किया जाए. पर एक बात यह भी है कि हर नारी को भी अपनी कुछ सीमाएं तय करनी होंगी और खुद को इतना टैलेंटेड बनाना होगा कि कोई उन के सामने अवैध मांग रखने का साहस न कर सके.
एक अहम सवाल यह है कि सरकारें इस तरह के मामले में भी बहुत संजीदा नजर नहीं आती. 2019 में जब हैदराबाद मे तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री की अदाकारा रेड्डी ने जुबिली हिल्स में फिल्म चेंबर्स के सामने न्याय की मांग करते हुए अर्धनग्न हो कर धरना दिया था, तब वहां की सरकार ने एक कमेटी गठित कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली थी. इस वजह से भी पुरुषों में निडरता बढ़ती है.
पश्चिम बंगाल से सबक लेने की जरूरत
हम बारबार यही कह रहे हैं कि हर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हर पुरुष की सोच व उन की मानसिकता को बदलने के साथ ही खुद ही अपने घर की सफाई करने पर ध्यान देना होगा. पश्चिम बंगाल की बंगला फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी महिलाओं ने इस तरह का कदम उठा रखा है. कान्स फिल्म फैस्टिवल में ‘पिर्रे अन्नीयाक्स अवार्ड’ से सम्मानित कैमरामैन मधुरा पालित के अलावा 50 औरतें, जिन में अभिनेत्री अपर्णा सेन, स्वास्तिका मुखर्जी, निर्देशक, लेखक व अन्य विभाग की 50 महिलाओं ने मिल कर ‘फोरम फार स्क्रीन ओमन’ का गठन कर रखा है जहां हर समस्या को सुन कर उस का निरकारण करने का प्रयास किया जाता है.
यह संगठन लंबे समय से केंद्र सरकार से ‘सेक्सुअल हरेसमैंट ऐक्ट 2013’ में बदलाव के साथ ही हर पीड़िता को चौबिसों घंटे हेल्पलाइन उपलब्ध कराने की भी मांग कर रखी है, जिस पर सरकार ने चुप्पी साध रखी है.
इतना ही नही पश्चिम बंगाल के फिल्मकारों की मदद के लिए ‘बिट चित्र कलेक्टिव’ का गठन किया गया, जिस में फिलहाल 100 महिलाएं सदस्य हैं. यह संगठन फिल्म निर्माण से ले कर हर तरह की समस्या के वक्त मदद करता है.