लंबी जद्दोजेहद के बाद 19 अगस्त को ‘मौलीवुड’ के नाम से मशहूर मलयालम सिनेमा उद्योग यानि मौलीवुड के अंदर महिलाओं की स्थिति का आकलन करने के लिए बनाई गई 3 सदस्यीय जस्टिस हेमा कमेटी की रिपोर्ट के जारी होते ही हंगामा मच गया.
गोदी मीडिया के सुर में सुर मिलाते हुए प्रिंट मीडिया व तमाम यूट्यूबरों ने भी इस रिपोर्ट को ‘हिला देने वाली रपट’,‘आंखें खोल देने वाली रिपोर्ट’ ,‘चौंकाने वाली रपट’ जैसे विश्लेषणों के साथ इसे सनसनीखेज बना कर आम लोगों तक पंहुचाया जा रहा है. हर न्यूज चैनल को अपनी टीआरपी बढ़ाने की चिंता है, तो अखबार को अखबार की बिक्री की चिंता है. समाज सुधार या किसी फिल्म इंडस्ट्री में व्याप्त बुराई से उस का कोई सरोकार नही है. हर चैनल व अखबार सिर्फ ‘नारी यौन शोषण’ की ही चर्चा कर रहा है जबकि हेमा रिपोर्ट में 17 मुद्दे उठाए गए हैं, जिन में से यौन शोषण भी एक मुद्दा है.
दूसरी बात हेमा रिपोर्ट में ऐसी क्या अनूठी बात कही गई है जिस से हम सभी अपरिचित हैं? ‘मौलीवुड’ के नाम पर हेमा रिपोर्ट में दर्ज तथा कथित ‘आंखें खोल देनेे वाली’ बुराइयां सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्वभर में हर क्षेत्र में व्याप्त है. फिर चाहे वह कारपोरेट जगत हो, शिक्षा जगत हो, न्यूज चैनल्स हों या इंटरटेनमैंट चैनल्स, ओटीटी प्लैटफार्म हो या राजनीतिक पार्टियां ही क्यों न हों, पर हमारी आदत है कि हम अपने घर के अंदर की सफाई करने की बनिस्बत दूसरों की बुराइयां गिनाने में आत्म आनंद की अनुभूति करते हैं.
'हेमा रिपोर्ट’ के आने और उस पर गौर करने पर एक बात स्पष्ट रूप से उभर कर आती है कि यह सारा खेल राजनीतिक है और इस का असली मकसद औरतों को घर की चारदीवारी के अंदर कैद करने के साथ ही पूरे भारतीय सिनेमा को नष्ट करने का प्रयास मात्र है.