आजकल अकसर महिलाओं को सलाह दी जाती है कि वे घर, औफिस या पब्लिक प्लेस में हुए शारीरिक शोषण के खिलाफ अवाज उठाएं. उन से कहा जाता है कि जब तक वे अपना विरोध प्रकट नहीं करेंगी, स्थिति को बदलना नामुमकिन है पर जैसे ही कोई महिला ऐसी घटना के खिलाफ अपनी आवाज उठाती है, उसे ट्रोल किया जाता है. सोशल मीडिया पर उस के खिलाफ जहर उगलना शुरू हो जाता है, उस पर फिर यह इलजाम लगाया जाता है कि वह पब्लिसिटी पाने के लिए यह सब कर रही है.
चाहे बौस द्वारा शारीरिक शोषण की शिकायत हो या किसी पार्टी की तसवीरें पोस्ट करने पर किसी छात्रा को रेप की धमकी मिलने की, ऐसे उदाहरण समाज की महिलाओं के प्रति असहिष्णुता स्पष्ट कर देते हैं. जो महिला प्रतिकूल परिस्थितियों के खिलाफ आवाज उठाती है, उसे यही सुनने को मिलता है, ‘यह सब तो होता रहता है’, ‘अच्छे घर की लड़कियां ऐसे काम नहीं करतीं’ या ‘जरूर तुम ने ही कुछ किया होगा वरना वह लड़का ऐसा कुछ कर ही नहीं सकता.’
आइए, ऐसी ही कुछ महिलाओं के उदाहरण देखते हैं, जिन्होंने अपनी आवाज उठाने का साहस किया पर उन्हें ही टार्गेट किया गया-
पहली
2017 का पहला दिन ही शर्मनाक रहा, जब बैंगलुरु में लड़कियों का मास मोलेस्टेशन हुआ. पुलिस कोई ऐक्शन ले ही नहीं सकी, क्योंकि अभी तक कोई रिपोर्ट फाइल नहीं की गई. इस शर्मनाक प्रकरण में कोई ऐक्शन लेने के बजाय नेताओं और आम पब्लिक ने लड़कियों पर ही दोषारोपण किया. तर्क दिया गया कि लड़कियां नशे में थीं और उन्होंने छोटी ड्रैसें पहनी हुई थी.