अब कोरोना के साथ जीते हुए लगभग एक वर्ष पूरा होने को आया है और ये महामारी अब हल्के लक्षणों के साथ एक नए रूप में सबके सामने है.  जो भी संक्रमित है लगभग 21 दिन का समय उन्हें एक कमरे में ही बिताना होता है इतना समय एक ही कमरे में अकेले रहना और मन में बीमारी की भयावहता की शंका के विचारों को ढोते हुए कई लोग अवसाद का शिकार हो रहे हैं जो एक बड़ी समस्या है.

भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार कोरोना महामारी के दौरान  पीड़ितों में 30 प्रतिशत लोग अवसाद (डिप्रेशन )का शिकार हुए हैं. इस महमारी ने मेंटल हेल्थ केयर व्यवस्था को गंभीर परेशानी में डाल के स्वास्थ्य के क्षेत्र में दबाव बना दिया है. इस महामारी ने पूरी दुनिया में लोगों की मानसिक स्थिति को प्रभावित किया है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने इन सब बातों के मद्देनजर कुछ गाइडलाइंस तय की हैं. इन गाइडलाइंस में

इस बीमारी में मानसिक रोगों से ग्रसित होने वाले लोगों को तीन समूहों में बांटा है.

जों कोरोना से संक्रमित हुए हैं और उन्हें अवसाद हो गया है ऐसे लोग लगभग 30 प्रतिशत हैं और कुछ को कोरोना के बाद पोस्ट स्ट्रेस देखा गया ऐसे लोग 90 प्रतिशत के करीब हैं ये लोग समूह एक मे रखे गये हैं.

दूसरे समूह में ऐसे लोग हैं जिन्हें पहले से ही कोई मानसिक बीमारी थी उनकी वो स्थिति बिगड़ सकती है या यदि वो ठीक हो गए हैं तो पहले की तरह मानसिक स्थिति में पहुँच सकते हैं.

तीसरे समूह में सामान्य लोग हैं जिन्हें इस बीमारी के चलते बुरे खयाल आना, नीँद नहीँ आना, ऐसी मानसिक अवस्था मे रहना जिसमे वो दिखाई दे जो हक़ीक़त में है ही नही इस तरह के लोगों की तादाद सबसे ज्यादा है.

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