दुनिया के अमीर देश अब जनसंख्या के मामले में चौराहे  पर खड़े हैं. एक तरफ औरतें बच्चे पैदा करने में हिचकिचा रही हैं, दूसरी ओर तकनीक और इंडस्ट्रीयलाइजेशन के कारण लोगों की कमी अखरने लगी है. हर देश में अब अमीरी के साथ गरीब देशों के वर्कर बस रहे हैं. भारत, मैक्सिको, फिलीपींस, बंगलादेश, नेपाल, पश्चिमी एशिया, अफ्रीका से लाखों लोग अपना जीवन सुधारने से ज्यादा अमीर देशों के अमीरों का जीवन सुधारने के लिए लाइनों में खड़े हैं.

अमीर देशों में हर सेवा में कालेपीले लोग दिख जाएंगे जो अपने देश से एक मेहनती बदन ही नहीं लाए हैं, अपने देश की संकीर्ण और निकम्मी संस्कृति भी सूटकेस में बांध कर लाए हैं. ये लोग अमीरों की सेवा विदेशी पैसे के लालच में कर रहे हैं पर जल्द ही इन्हें जन्म से मिली आदतें जोर मारने लगती हैं.

इन आदतों के कारण

अमीर देशों के अमीरों को, ये अमेरिकायूरोप के गोरे हो सकते हैं, पश्चिमी एशिया के अरब हो सकते हैं, दक्षिणपूर्व एशिया के ब्राउन भी हो सकते हैं, जो सेवा देने वाले सस्ते मजदूरों का काम चाहते हैं, इन से अपनी जीवनशैली बचाने का डर लग रहा है.

हर देश में राजनीति में ऐसे लोग घुस रहे हैं जो इस इंपोर्टेड लेबर को रोकना चाहते हैं. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप इसी को ले कर पहले जीता था और 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडेन को हरा दे तो बड़ी बात नहीं होगी. यह सिरफिरा नेता बड़ी बात यही कहता है कि वह दक्षिण अमेरिका से चोरीछिपे आ रहे मजदूरों को नहीं आने देगा. उस की और बातों का जनता समर्थन करे या न करे, इस का जरूर करे. यह वैसा ही है जैसा नरेंद्र मोदी मुसलिमों के बारे में कहते और करते हैं.

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