इस चुनाव में औरतों के मामले बिलकुल नदारद हैंहमेशा की तरह. औरतोंयुवतियोंवृद्धोंछोटी बच्चियों को ही नहींउन के परिवारों को भी यह चुनाव कुछ नहीं दिला रहा. कुछ पार्टियां गरीब लड़कियों को हर साल कुछ नक्दी की बात कर रही हैं पर यह वादा ढेरों वादों में से एक हैयह अकेला वादा नहीं है. औरतों को कुछ न मिलने का अर्थ है कि उन के परिवारों को भी कुछ नहीं मिलना.

चाहे औरतों के पास आज समाज कोई अधिकार नहीं छोड़ता पर उन पर जिम्मेदारियां तो लदी ही रहती हैं. यदि परिवार गरीब है तो हर जने का पेट भरा रहेहरेक साफ व धुले कपड़े पहनेहरेक की बीमारी में उस की देखभाल होकिसी पर भी बाहरी आर्थिक या शारीरिक हमले पर उस की पहली ढाल औरत हो. यह व्यवस्था तो धर्मसमाज और सरकार ने कर रखी है पर उसे देने के नाम पर सब मुंह फेर लेते हैं.

यह चुनाव भी औरतों के बल पर लड़ा जा रहा है पर उन्हें कुछ खास इस से मिलेगाइस की उम्मीद नहीं. आम आदमी पार्टी ने जहां भी जीत हासिल की कुछ सफल प्रयोग किए. बिजली का बो   झ कम करामहल्ला क्लीनिक खोल कर पहली चिकित्सा का प्रबंध करास्कूलों पर मंदिरों से ज्यादा खर्च कराबागबगीचे बनवाए. पर हुआ क्यादेश के कानूनअदालत व संविधान के बावजूद उस के नेताओं को एकदूसरे के कहने मात्र पर पकड़ रखा है.

भारतीय जनता पार्टी जो 545 में से 400 सीटें पाने की उम्मीद कर रही हैऔरतों को मंदिरों की लाइनों में लगवाने का वादा कर रही हैधर्म की रक्षा के लिए उन्हें अपने बच्चों को उकसाने को प्रोत्साहित कर रही है. उन को बता रही है कि अब कौन सा खाना अपनी रसोई में पकाएं और बनाएं. उन्हें 2000 साल पुरानी है कह कर अनपढ़ भगवाधारी आयुर्वेद डाक्टरों की फौज के हवाले कर रही है.

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