‘पिता पर पूत, जात पर घोड़ा बहुत नहीं तो थोड़ाथोड़ा’. मतलब पिता के गुणों अवगुणों का अक्स बेटे में थोड़ा या ज्यादा दिखता ही है, पर नई खोज यह बताती है कि अगर पिता उम्रदराज है तो उस के गुणसूत्र इस कदर गड़बड़ा चुके होंगे कि लोग उस की संतान को उस के गुणों से नहीं, बल्कि उस के अवगुणों से पहचानेंगे. जाहिर है, ये अवगुण अगली पीढ़ी में भी जाएंगे और इस तरह वह पीढ़ी अवगुणों की खान होगी. अत: इस से बचने का एकमात्र उपाय है समय से शादी.

अजी, अभी कौन सी उम्र निकली जा रही है, बड़ी मुश्किल से तो नौकरी लगी है, उस का कुछ आनंद ले लें, एकाध पायदान ऊपर चढ़ लें, कुछ जोड़ लें. शादी के सवाल पर 30 के पार जाते बेटे या 30 के करीब पहुंचती बेटी का शहरी भारतीय उच्च मध्यवर्ग में यह जवाब आम हो चला है.

देर से शादी का बढ़ता चलन

बाल विवाहों के लिए मशहूर अपने देश में अब बेमेल और बड़ी उम्र में विवाह का चलन बढ़ता जा रहा है. हां, बचाव में यह भी कहा जा सकता है कि यह चलन संसार के तमाम दूसरे देशों में भी बढ़ा है और जब बात संसार को ग्लोबल विलेज समझने और ग्लोबल जैसी परिभाषाएं गढ़ने की हो तो फिर इस में बुरा क्या है? सवाल यह भी हो सकता है कि अगर पढ़ाईलिखाई, कैरियर बनाने, अपने पांवों पर मजबूती से खड़े होने के लिए शादी में थोड़ी देरी हो भी गई तो क्या?

12 साल पहले जब अमेरिकन सोसाइटी औफ रिप्रोडक्टिव मैडिसिन से संबद्ध एक भारतीय मूल के चिकित्सा विज्ञानी नरेंद्र पी. सिंह ने अपने शोध में स्पष्ट किया था कि देर से की जाने वाली शादियां आने वाली पीढ़ी को खराब कर सकती हैं तो किसी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया. अब हर ओर से यह आवाज उठ रही है कि बुढ़ाते शुक्राणु भविष्य में देश, समाज के लिए कहर बन सकते हैं.

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