एक तरफ शादी में खर्च, बंधन, बच्चे, पति व सासससुर की घौंस, स्वतंत्रता का खात्मा और दूसरी ओर अकेले रह जाने पर अकेलापन, डर और समाज से कट जाने का एक सरल उपाय औरतों के लिए लेस्बियन हो जाता है जिस में तन की भूख भी मिटती है, मन भी शांत होता है और एक परमानैंट का साथी मिलता है. जब स्त्रीपुरुष के बीच कानूनी या धाॢमक शादी एकदूसरे को संबंध तोडऩे से नहीं रोक सकते तो लेस्बियनों के संबंध कभीकभार टूट भी जाएं क्योंकि उन्हें जोडऩे वाले बच्चे नहीं हैं तो क्या फर्क पड़ता है.
यह तो समाज की हठपना है कि वह कहता है कि हर लडक़ेलडक़ी को शादी करनी ही चाहिए ताकि बच्चे हो और समाज बढ़ता रहे, चलता रहे. अधिकांश लोग तो यह पेंगे ही क्योंकि इसी में स्थायित्व है और सुख है पर समलैंगिक व लेस्बियन संबधों को नकारना, हिराकत से देखना और उन पर हायहाय करना गलत है.
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2 युवतियां लेस्बियन तभी बन सकती हैं जब उन में मानसिक व दैहिक लगाव दोनों हो. यह हर दोस्तों में नहीं होता. विवाह बाद भी यह संभव है. किसी की पत्नी किसी की लेस्बियन पार्टनर बन सकती है क्योंकि संभव है कि उसे मन और तन की संतुष्टि ज्यादा दूसरी औरत से मिलती हो बजाय पति या पुरुष से. यह समाज की गलती है कि वह इस संबंध को टेढ़ी निगाहों से देखता है और एक अपराध भाव उन के मन में डालना है. ज्यादातर घरों में समलैंगिकों और लेस्बियनों को चिडिय़ाघर के प्राणी सिर्फ इसलिए मान लिया जाता है कि वे समाज की खींची लाइनों के बीना चलने को तैयार नहीं हैं.
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