घिसेपिटे सदियों पुराने रीतिरिवाजों को ढ़ोना भारतीयों के लिए एक नया तरीका बन गया है और जो लोग अच्छेखासे ताॢकक और वैज्ञानिक हैं, वे भी केवल अपनी जड़ें दर्शाने के लिए आधे आधुनिक पर आधे पुरातनवादी बने रहते हैं, एक उदाहरण हुआ है 2 लड़कियों की विशुद्ध तमिल ब्राह्मïण स्टाइल की घटी का. इस में एक तमिल ब्राह्मïण है और एक बांगलादेशी और दोनों कनाड़ा के शहर कैलगरी में रहती है जहां उन की एक एप पर मुलाकात हुई.

6 साल तक साथ रहने के बाद दोनों ने शादी करने का फैसला किया पर लेस्बियन शादी जो भारत में तो अवैध है, हुई ब्राह्मïण स्टाइल में जिस में पिता गोदी में बेटी को बैठा कर पिता की गोदी में ही बैठे पति के हवाले करता है. कन्यादान की यह परंपरा नितांत पौराणिक है और इसे लेस्बियन शादी में कनाड़ा में अपनाना नितांत स्टूपिडी ही है.

विदेशों में बसे भारतीय यदि ब्राह्मïण या वैश्य हो तो अपना महत्व दर्शाने के लिए बाजेगाजे, दोस्तों के साथ ये पारंपरिक नाटक करके ढोल पीटते हैं कि देखे हमारी संस्कृति कितनी महान है. वे यह भूल जाते हैं कि वे लोग इस महान संस्कृति वाले भारत की गंदगी, बदबू, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, लालफीता शाही और अवसरों की कमी के कारण गोरों के देश में पहुंचे थे पर वहां सफलता पाते ही वे नाटकों पर उतर आते हैं क्योंकि आईडैंटिटी दिखाने के लिए ये स्टंट बड़े काम के हैं.

सुबिश्रा और टीना की शादी में बेटी को वर को उसी तरह सौंपा गया जैसे कूर्मपुराण के अध्याय 8 में वॢणत कथा में दक्ष प्रजापति ने पत्नी प्रसूति से 24 कन्याओं को पैदा किया जिन में से 13 को धर्म च्यवन ऋषि ने ग्रहण किया और 11 छोटी अवस्था वाली कन्याएं भृगु, मरीची, अंगिरा, पुलस्त्य पुलह क्रतु, अत्रि व वशिष्ठ मुनियों को दे दी गईं.

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