आज किरण को लंबे समय बाद मार्केट में सब्जी खरीदते देखा. वे काफी थकी और उदास दिख रही थीं. मैं ने पूछा, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है न?’’
वे कहने लगीं, ‘‘रोहन और अदिति अपनी आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली अपने मामामामी के पास शिफ्ट हो गए हैं. बच्चों के बिना घर का खालीपन खाने को दौड़ता है.’’ उन की आवाज में उदासीनता और अकेलेपन की पीड़ा का भाव साफ झलक रहा था.
बाजार में थोड़ा आगे बढ़ी थी कि सोसायटी की रश्मि दिख गईं. अरसे बाद उन से मुलाकात हुई थी. उन्हें देखते ही मैं हैरान रह गई, क्या ये वही रश्मि हैं जो बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी के बोझ तले हमेशा हैरानपरेशान दिखती थीं. न ढंग से कपड़े पहनना, न ही अपनी सेहत का ध्यान रखना, लेकिन आज की रश्मि का तो पूरा मेकओवर ही हो चुका था. आज वे पहले जैसी हालबेहाल आंटी नहीं थीं. उन के चेहरे पर नई रंगत, नई रौनक थी. बातबात में मुसकरा रही थीं.
मैं ने उन के कायाकल्प का राज पूछा तो उन्होंने बताया, ‘‘अब तक तो मैं बच्चों के लिए जीती रही लेकिन अब बच्चे दूसरे शहरों में अपनेअपने कैरियर में व्यस्त हैं तो मैं ने अब जिम्मेदारियों से मुक्त हो कर अपने लिए जीना सीख लिया है.
अब मैं अपनी मनमरजी का करती हूं. वे सब काम जो मैं बच्चों की जिम्मेदारियों के बीच नहीं कर पाती थी अब उन पर ध्यान देने लगी हूं. मैं ने फिटनैस क्लब जौइन कर लिया है, मनपसंद टीवी प्रोग्राम और फिल्में देखती हूं, पत्रपत्रिकाएं पढ़ती हूं, अपनी पुरानी सहेलियों से मिलतीजुलती हूं और पति के साथ सैरसपाटे के लिए भी निकल जाती हूं.’’
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