Liquor : देहरादून में रात को तेजी से दौड़ती एक एसयूवी की एक चौराहे पर धीमी स्पीड से आ रहे ट्रक से भिड़ंत में 5 की तुरंत मौत और छठे की बाद में डैथ ने एक बात साफ कर दी है कि शराब न केवल हाइपरटैंशन, डिप्रैशन, माइंड को सलो करने के लिए जिम्मेदार है, यह ऐक्सीडैंट्स का बड़ा कारण भी है. अफसोस यह है कि यह जहर खुलेआम बिकता है और पीने वाले को बंदूक की तरह का कोई लाइसैंस नहीं लेना पड़ता, किसी डाक्टर से कोई प्रिस्क्रिप्शन नहीं लेनी पड़ती.

अब दुनियाभर के डाक्टर एक राय दे रहे हैं कि किसी भी क्वांटिटी में शराब सेफ नहीं है.  वे सब इसे बेचने वालों ने फैलाई हैं.

अगर शराब फिर भी जम कर बिक रही है तो इस की वजह यह है कि इस के व्यापार से सदियों से राजाओं और धर्म को बड़ा लाभ होता रहा है. शराब पर टैक्स लगाना आसान है क्योंकि शराब बनाने पर इस की स्मैल फैलती है और आसानी से पता चल जाता हैशराब के गुणों के बारे में जो गलतफहमियां फैलाई गई हैं कि शराब कहां बन रही है जिस से टैक्स वसूला जा सकता है. उसी शराब को बेचने को मजबूर किया गया है जो छोटे से बड़े कारखानों में बनती है क्योंकि राज्य कइयों से टैक्स वसूलने की जगह 1-2 से टैक्स वसूलना चाहता रहा है.

टैक्स के अलावा शराब का फायदा यह भी रहा है कि इसे पिला कर राजाओं को मरनेमारने को तैयार सैनिक मिल जाते थे. हर युद्ध में राजा शराब खूब पिलाता था ताकि सैनिक एक तो घंटों तक लड़ते रहें और अगर उन को घाव हो जाए तो दर्द न हो. हर युद्ध में दोनों तरफ के सैनिक नशे में ही रहते थे और तभी लड़ पाते थे. शराब के आदी हो जाने के कारण राजाओं को शराब को वेतन का हिस्सा बना देने से आसानी से सैनिक मिलते रहते थे.

धर्मों ने भी कभी शराब पर जम कर रोक नहीं लगाई. शराबी मर्दों के हाथों पिटी या बलात्कार हुई औरतें धर्मों की सब से बड़ी ग्राहक रही हैं और आज भी हैं. ज्यादातर औरतों को शराब की वजह से खाली रसोईर् मिलती है, भूखे बच्चे दिखते हैं. जहरीली शराब से मरने पर बची विधवाएं धर्मगुरुओं की सेवाओं के लिए रैग्युलर सप्लाई रही हैं.

अब दिक्कत यह है कि शराब को हमारे महाधार्मिक देश में भी बड़ी मान्यता मिल गई है. अब कोई शादी तो छोडि़ए बच्चों का बर्थडे भी बिना ड्रिंक्स सर्व किए नहीं मनाया जाता. फिल्मों ने तो शराब को सोशल ऐक्सैप्टीबिलिटी दिलाने का महान काम किया है. कोई फिल्म ऐसी नहीं होगी जिस में हीरोहीरोइन शराब के जाम लिए न हों.

शराब को इतना ज्यादा पौपुलर कर दिया गया है कि जो लोग अपनी पार्टी में शराब न पिलाएं, सिविलाइज्ड लोग वहां न जाने के दसियों बहाने पहले से तैयार रखते हैं. डाक्टर चिल्ला रहे हैं कि शराब का एक घूंट भी खतरनाक है पर टै्रजिडी यह है कि मैडिकल कालेजों में और डाक्टरों के घरों में शराब पानी की तरह बहती है.?

लिवर, सिरोसिस, कैंसर, हार्ट, ओवैसिटी, रोड ऐक्सीडैंट्स, डोमैस्टिक वायलैंस, रोड रेज में ड्रिंक्स सब से ज्यादा जिम्मेदार है और अब यह नशा 15-16 साल की उम्र में शुरू होने लगा है, जम कर होने लगा है. शराब की दुकानों पर चाहे कितने बोर्ड लगे हों कि 18 साल से कम उम्र वाले को शराब नहीं दी जाएगी, असल में वे अब बड़े ग्राहक बन चुके हैं.

अब सलाह देना, पाबंदियां लगाना, डराना बेकार है. यह बीमारी छूत की बीमारी है, दुनियाभर में फैली हुई है और कोई आसार नहीं है कि इसे कोई छोड़ेगा. यह पौल्यूशन की तरह का जहर है जिसे सब को पीना पड़ेगा. जिस ने नहीं पीया उसे ऐंटीसोशल मान कर घरों में कैद कर डाला जाएगा. अब जीना है तो शराब पीयो का स्लोगन है: ड्रिंक्स लाइफ डैंजर नहीं है लाइफ थीम हैं.

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