सुरेखा को अनियंत्रित हालत में प्रवेश करते देखकर अरुणा ने चौंक कर पूछा,' क्या हुआ ?'
'अब क्या और कैसे बताऊं ?' कहकर सिर पर हाथ रखकर बैठ गई.
'संभालो स्वयं को फिर बताओ हुआ क्या है?' अरुणा ने उसे पानी का ग्लास पकड़ाते हुए कहा.
'जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दोष किसको दूं ?'
'पहेलियां ही बुझाती रहोगी या कुछ बताओगी भी .'
'नमन लिव इन में रह रहा है !'
'क्या ?कब से ?' इस बार चौंकने की बारी अरुणा की थी .
'चार पांच महीने हो गए पर मुझे अभी हफ्ते भर पहले पता चला. न जाने क्या-क्या ख्बाब देखे थे सब मिट्टी में मिला दिये. आज मन बहुत परेशान था अतः तेरे पास चली आई.'
'अच्छा किया ...जो भी निर्णय करना सोच समझ कर करना. आज की पीढ़ी अपने मन की करती है. वे बालिग हैं, आत्मनिर्भर हैं...झुकना तो हमें ही पड़ेगा .'
'तुम ठीक कह रही हो मैं तो इस संबंध को स्वीकारने को तैयार हूं पर वे अभी विवाह नहीं करना चाहते. उनका मत है अभी वे पूरी तरह सैटल नहीं हैं.'
'तुमने ऊंच-नीच नहीं समझाई !!'
'सब कहकर देख लिया. नमन कहता है कि हम बच्चे नहीं हैं. अपना भला बुरा समझते हैं.'
'और वह लड़की...क्या नाम है उसका.'
'प्रिया का भी यही मानना है. वह भी अभी पारिवारिक जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहती.'
'तुमने उसके माता-पिता से बात की .'
'बात की थी. वे भी अपनी बेटी की जिद के सामने विवश हैं.'
'सच आज के बच्चों को पालना उन्हें संस्कार देना टेढ़ी खीर है. तेरा तो बेटा है...मुझे तो अपनी बेटी सुवर्णा की चिंता होने लगी है.'