मां, मां लगभग चीखती हुई रूबी अपना बैग जल्दी जल्दी पैक करने लगी. मिसेज सविता उसे बैग पैक करते देख अचंभित हो बोलीं – “यह कहां जा रही है तू?

रूबी- मां बेंगलुरु में जौब लग गयी है, वो भी 4 लाख शुरुआती पैकेज मिल रहा है. कल की फ्लाइट से निकल रही हूं.

मिसेज सविता (घुमा फिराकर) अकेली कैसे रहगी इतनी दूर? कोई और भी जा रहा है क्या?

रूबी (मुस्कुराते हुए) पता है तुम क्या पूछना चाह रही हो, हां रविश की जौब भी वहीं है. उससे बहुत सहारा मिलेगा मुझे.

मिसेज सविता – तू रहेगी कहां? कोई फ्लेट या किराए का घर देख लिया है या नहीं ?

अब रूबी की चंचल मुस्कान गायब हो गयी और मां को पलंग पर बैठाते हुए वह बोली – मां, मैं और रविश वहां साथ ही रहेंगे.

मां तो ऐसे उछल पड़ीं जैसे की पलंग पर स्प्रिंग रखी हो और उनके मुंह से बस यही निकला- क्या… पागल तो नहीं हो गयी तू,लोग क्या कहेंगे?

रूबी – जिन लोगों को तुम जानती हो, उनमें से कोई बेंगलुरु नहीं रहता, टेंशन नॉट.

मिसेज सविता – मति मारी गयी है तेरी, भेड़िया और भेड़ कभी एक थाली में नहीं खा सकते. क्योंकि भेड़ के मांस की खुशबू आ रही हो तो भेड़िया को घास फूस खाने का दिखावा नहीं करता.

रूबी – मां, इस भेड़ को भेड़ियों को काबू में रखना आता है. हम वैसे भी साथ रहेंगे वो भी अपनी अपनी शर्तों पर, शादी नहीं कर रहे हैं.

मिसेज सविता (क्रोध में) अरे नालायक लड़की, छुरी सेब पर गिरे या सेब छुरी पर नुकसान सेब का ही होता है, जवानी की उमंग में तू यह क्यों नहीं समझ रही है?

रूबी – मां, तुम्हारी कसम खाके वादा करती हूं, जब तक उसे पूरी तरह समझ नहीं लेती उसको हाथ भी नहीं लगाने दूंगी.

मिसेज सविता – भाड़ में जा, ऐसी बातें तेरे मामा से तो कह नहीं सकती. काश आज तेरे पिता जिन्दा होते.

रूबी – जिन्दा होते तो गर्व करते कि बेटी ने दहेज की चिंता से मुक्त कर दिया.

रूबी बेंगलुरु पहुंची तो रविश ने उसका गर्मजोशी से स्वागत किया.रूबी मां को तो आश्वस्त कर आई मगर वह रविश के आचार विचार और व्यवहार को बहुत ही बारीकी से तौल रही थी. रविश ने उसे छूने की तो कोशिश नहीं की मगर उसके उभारों पर ललचाई नजर वह भांप सकती थी. उस दिन तो हद हो गयी जब रविश अपने स्लो नेटवर्क के कारण टेलिकौम कंपनी की मां बहन भद्दी भद्दी गालियों के साथ एक करे दे रहा था.

चरित्र और आचार की परीक्षा को जब तक रूबी भुला पाती, रविश ने टीवी देखते हुए सनी लेओनी पर अपने विचार भी प्रकट कर दिए. अब तो रूबी के सपनों की दुनिया मानो ताश के पत्तों की तरह बिखर गयी. दूसरे ही दिन, रूबी अपना बोरिया बिस्तर बांध अपनी कुलीग के घर जाने लगी, तो रविश ने उसका रास्ता रोकते हुए पुछा – क्या हुआ ? रूबी ने उसके आचार, विचार और व्यवहार पर लंबा चौड़ा भाषण दे दिया. रविश ने सब कुछ शांति से सुना और बोला – अरे , इतनी सी बात, यह तो मेरे अंदर का पुरुष जब मुझपर हावी हो जाता है , तब होता है , हमेशा ऐसा नहीं होता.

रूबी – मगर रविश, मैंने सोचा था कि तुम बाकि मर्दों से अलग होगे?

रविश – रूबी, जो पुरुष ऐसा दिखाते हैं वो वास्तव में झूठे होते हैं, सच तो यह है कि हर पुरुष सुन्दर स्त्री को देखते ही लालायित हो उठता है, यह नैसर्गिक आदत है उसकी, मैं भी पुरुष हूं, झूठ नहीं बोलूंगा, मगर मैं भी तुम्हें मन ही मन..

लेकिन तुम्हारी मर्जी के बिना नहीं. अब भी तुम अलग रहना चाहती हो तो मैं नहीं रोकूंगा.

रूबी उसकी साफ साफ बोलने की आदत और नियंत्रण देख अपने कपडे बैग से निकाल वापस कबर्ड में रखने लगी. तभी लाइट चली गयी और रविश – इस भो…को भी अभी जाना था. रूबी के घूरकर देखने पर रविश जीभ दांतों में दबा उठक बैठक लगाने लगा. और रूबी ने उसे इस बचकानेपन पर चूम लिया. आज उसे अपने अंदर की स्त्री के संयम के किनारे को भी तोड़ दिया क्योंकि आज वह भेड़िया और भेड़ की नैसर्गिकता को समझ चुकी थी.

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