हर बार की तरह इस बार भी मेघा चुप हो गयी थी. नहीं जानती थी कि कैसे इतनी बड़ी बात को सहजता से ले. रह रह कर वह अपनी ही परवरिश पर ऊंगली उठा रही थी की कहा कमी रह गयी जो अंकित ने ऐसा कदम उठाया.
बचपन से ले कर अब तक जब भी मुश्किल घड़ी आयी तो उसने बच् को अच्छा बुरा समझा कर फैसला उन पर छोड़ दिया.
कितना समझाया था कि "बेटा दिल्ली में ही पढ़ाई पूरी करनी है तो जो कॉलेज मिले एडमिशन ले लेना. अपने शहर से बाहर हम खर्चा नहीं उठा पाएंगे.
मेरी बात मान कर उसने दिल्ली टेक्नलाजिकल यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया. पर रोज नजफगढ़ से बवाना जाने में काफी समय लग जाता था. मेघा के ना चाहते हुए भी उसने दोस्तों के साथ मिल कर पास ही एक फ्लैट ले लिया ओर उसमें रहने लगा. चार दोस्तों ने मिल कर लिया था तो खर्चा भी ज्यादा नहीं था ओर जो आने जाने में वक्त बचा वो अलग.
सब ठीक चल रहा था जब तक उसके दोस्त का फोन नहीं आया था.
"आंटी अंकित एक लड़की के साथ फ़्लैट में अकेला रहता है" उसे अपनी ही दी हुई आजादी पर गुस्सा आया ओर उसने उसी वक्त फौरन घर आने का मैसेज कर दिया.
शाम को जैसे ही मेघा का सामना अंकित से हुआ वो बिफर पड़ी
"मैं यह क्या सुन रही हूं की तुम किसी लड़की के साथ रहते हो? मैंने बचपन से तुम्हें औरत की इज़्ज़त करना सिखाया खिलवाड़ नहीं. तुम ने इक बार भी नहीं सोचा की उस लड़की के मां बाप पर क्या बीतेगी? आखिरकार तुम्हारी भी एक बहन है. मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी. तुमने मुझे शर्मसार कर दिया"