चार दिन की छुट्टियां बिताकर वापस पुणे जाते वक्त विनी ने आखिरकार सुमित्रा को अपना फैसला सुना दिया, "मां ! , पुणे में मैं अपनी ही कंपनी के एक सहकर्मी राहुल के साथ पिछले चार महीनों से फ्लैट शेयर कर रही हूं. मैं राहुल को पसंद करने लगी हूं और मैंने उसे अपना जीवन साथी बनाने का फैसला किया है. मेरा ये फैसला आप पापा को भी बता देना. अब मेरे ऊपर कहीं और शादी करने का दबाव भी मत डालना आप लोग."
विनी के इस अप्रत्याशित फैसले को सुनकर सुमित्रा स्तब्ध रह गयी. फिर भी अपने को संयत करते हुए वो विनी को समझाने का प्रयास करने लगी, "ये क्या कह रही हो विनी? होश में तो हो तुम? शादी के पहले ही किसी अजनबी लड़के के साथ फ्लैट शेयर करना, ये कैसी नादानी है विनी? मैंने और तुम्हारे पापा ने इतने अच्छे अच्छे रिश्ते तुम्हें बताये और तुम? मैं इस रिलेशनशिप के फेवर में नहीं हूं."
"अरे मां ! , आप कितनी दकियानूसी बातें कर रही हो. आज के समाज में लड़कियां पूरी तरह इंडिपेंडेंट हैं. व्यवसायिक क्षेत्र हो चाहे राजनीतिक या सामाजिक, हर क्षेत्र में लड़कियों ने अपना सिक्का जमाया है और आप इस आधुनिक युग में भी लिव इन रिलेशनशिप को गलत ठहरा रही हो. आखिर इसमें गलत ही क्या है? बस दो लोग जो एक दूसरे से वैचारिक स्तर पर समानता रखते हैं वो साथ मिलकर रह रहे हैं और मैं इन चार महीनों में राहुल को अच्छी तरह समझ भी चुकी हूं. किसी अपरिचित से शादी करना तो एक जुआ ही है जिसमें जीत हार कुछ भी हो सकती है. मां ! क्या मैं एक ऐसे इंसान के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगा दूं जिसे मैं जानती तक नहीं.", विनी ने अपने फैसले को सही ठहराते हुए सुमित्रा को एक दकियानूसी मां की उपाधि दे डाली.