आज सोमेश बेहद परेशान थे. रह-रह कर उनका खून खौल उठता था. मैंने पूछना चाहा तो बिफर पड़े. "आज अर्पित से बात हुई. जानती हो हमारी रिया के बारे में क्या कह रहा था? कह रहा था कि वो नोएडा में एक लड़के के साथ रहती है." "अच्छा!!" मैंने हैरान होते हुए पूछा. " मैं आज शाम की फ्लाइट से दिल्ली जा रहा हूं. फिर वहां से नोएडा पहुंचकर असलियत का पता करूंगा."
ये बिल्कुल ठीक कहा आपने, वो कैसा लड़का है, ये जान लेना बहुत ज़रूरी है.
मेरे शांत स्वभाव से सोमेश अच्छी तरह वाकिफ थे, लेकिन इतने गंभीर विषय पर भी मैं इतनी सामान्य प्रतिक्रिया दूंगी, इसका शायद उन्हें अंदाजा न था. मेरी शांति ने उनके अंदर उफनते हुए लावा को कुछ शांत किया, तो वे रुआंसे से होते हुए बोले, " मधु, तुम ही बताओ अगर अर्पित की बातों में सच्चाई हुई तो ..."
"तो क्या सोमेश, बेटी बड़ी हो गई है, मैंने उसे अपनी ज़िंदगी के फैसले सोच समझ कर करना सिखाया है, यदि वह किसी लड़के के साथ अपनी मर्ज़ी से रहती है तो निश्चित रूप से उस लड़के में कोई तो बात होगी. हमें उस लड़के से मिलकर असलियत का पता तो करना होगा. तुम अकेले परेशान मत हो, मुझे भी अपने साथ नोएडा ले चलो. मैं विश्वास दिलाती हूं कि किसी भी तरह की स्थिति में मैं रिया को समझाऊंगी.
मेरे इतने दृढ शब्दों से सोमेश कुछ आश्वस्त हुए और रात तक हम दोनों रिया के एक कमरे के घर पहुंच गए. घर का दरवाजा एक लड़के ने खोला और हमें ये समझते देर न लगी कि अर्पित झूठ नहीं बोल रहा था. इतनी रात में कौन आ गया, प्रांशु?