मिनी को मुंबई में ही बांद्रा पीजी में रह रहे कुछ महीने हुए थे, वीकेंड पर मुलुंड घर आ जाती थी, जहां उसकी मम्मी सुगंधा और पिता शेखर अधीरता से उसकी प्रतीक्षा करते थे. मुंबई की बारिश, रोज की लोकल ट्रेन की मारामारी, दिन भर औफिस के काम को देखकर मिनी औफिस के पास ही रहना चाहती थी जिसे पेरेंट्स ने उसकी परेशानी देखकर मान भी लिया था.
एक दिन सप्ताह के बीच में ही शेखर और सुगंधा रात को मिनी को सरप्राइज देने उसके फ्लैट पर पहुंचे तो एक युवा, आकर्षक लड़के ने ही दरवाजा खोलते हुए उनका स्वागत किया, अपना परिचय दिया, उनके लिए कौफी बना लाया, कहा, मिनी को आज आफिस में ज्यादा काम है, वह देर से आएगी.
सुगंधा, शेखर तो सकते में बैठे थे, हमारी बेटी लिव इन में रह रही है, हमे पता ही नहीं. दोनों के चेहरे उदास, दुखी, लड़का अनंत सारी स्थिति समझते हुए नार्मल बिहेव कर रहा था. दोनों उठकर वापस चले आये. पहले तो छुपाने पर गुस्सा आता रहा, फिर रास्ते में दोनों ही कुछ इस तरह से सोचने लगे, कि क्यों नहीं रह सकती उनकी समझदार बेटी अपनी मर्जी से, सुलझा हुआ लड़का उसका साथी है, उसका ध्यान रखता है,उसके लिए खाना बना रहा था, उनकी बेटी बहुत समझदार, दूरदर्शी है, अगर उसने कोई फैसला किया है, तो ठीक ही होगा.
इतने में मिनी का फोन भी आ गया, मम्मी, सौरी, आज बहुत काम है. मुझे बताया क्यों नही की आप आने वाले हो. मैं जल्दी आने की कोशिश करती."
"फिर हम अनंत से कैसे मिलते?" और, मिनी, चाहो तो वीकेंड में अनंत को भी ले आया करो."