हिंदू भगवा मंडली 4, 5, 6 या 10 बच्चों की चाहे जितनी मांग हर औरत से करती रहे, यह पक्का है कि आज की औरत केवल 1 और ज्यादा से ज्यादा 2 बच्चों पर खुश है. आज औरत के जीवन में इतनी विविधताएं हैं और बच्चों को पालना इतना सघन व जटिल काम बन गया है कि 1 या 2 भी कई बार ज्यादा लगते हैं. फिर भी समस्या तब आती है जब अकेला बच्चा या 2 में से 1 घर छोड़ कर अपना नया संसार ढूंढ़ने निकलता है. पहले उस की पढ़ाई, फिर नौकरी, फिर विवाह, उस के बाद जो खालीपन एक औरत के घर में ही नहीं दिल में भी आता है उस का मुकाबला करना आसान नहीं होता. आमतौर पर बच्चों के घर से निकलने के बाद, सूरज के ढलने के बाद जैसा अंधेरा घर में पसर जाता है. लाख बत्तियां जलाने पर भी दिल की रोशनी गुम ही रहती है. किचन में काम करने को मन नहीं करता. कमरों की सफाई करते हुए बेतरतीब फैले कपड़े याद आते हैं. सिनेमा हौल में खुदबखुद कोक या पौपकौर्न लाना है, बाहर खाने में अकेले में एक डिश में पतिपत्नी दोनों शेयर करते हैं और आधाअधूरा खा कर उठ जाते हैं.
पर जीवन इसी का नाम है. हर पेड़पौधे का जीवन भी लगभग इसी तरह का होता है. वह बढ़ता है, फल देता है, फिर खत्म हो जाता है. नया लगा लिया तो उसे बढ़ते देख लो वरना खाली जगह को ताको. अब ऐसे में हतोत्साहित होना, बच्चों को याद करना, उन्हें परेशान करना, उलाहना देना कि वे उन्हें याद नहीं करते, ठीक नहीं. इस खालीपन को प्राकृतिक समझें. इस के लिए अपनेआप को तैयार रखें. दोस्तमित्र हों तो ठीक वरना उन के बिना ही जीवन को जंग लगने से बचाने के तरीके ढूंढ़ने होंगे. जब तक आदमी खेतों पर काम करता था वह अकेला कभी न था क्योंकि पशुपक्षी साथ थे. हर नई फसल एक उमंग देती थी. सूखा व बरसात बदलाव लाता था. आज का शहरी जीवन थोड़ा कठिन होने लगा है. बचाए पैसे से सारी भौतिक सुविधाएं पूरी हो जाएं तो करने को कुछ ज्यादा नहीं रहता. आसपास वालों से बातचीत निरर्थक व निरुद्देश्य लगती है.