एक घटना ने शर्मसार कर दिया. पिछले दिनों मुंबई के एक घर में मिली एक वृद्ध महिला का कंकाल सभ्य समाज के गाल पर एक तमाचा है. दरअसल, जिस वृद्घ महिला की लाश मिली वह विधवा थी और अकेली ही रहती थी. बच्चे विदेश में रहते हैं और कभीकभार ही मुंबई अपनी मां से मिलने आते थे.

इस घटना ने हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया कि हम कितने सजग और संवेदनशील हैं. साथ ही यह भी संदेश दे गया कि भारत के शहरों में सामाजिक तानाबाना किस कदर बिखर गया है. यह वृद्घ महिला मर गई पर पड़ोसी तक को भनक नहीं मिली. अब सब चिल्लाचिल्ला कर इस बात की तसदीक करने में जुटे हैं कि लड़के को अपनी मां का ध्यान रखना चाहिए था. पर हजारों मील दूर रहने वाले बेटे से ज्यादा एक पड़ोसी की क्या कुछ जिम्मेवारी नहीं बनती थी? माना कि 2 मकानों के बीच उठी दीवारें हवा, पानी और आवाजें रोक सकती हैं पर रिश्ते से भीगे हृदय के स्पंदन को नहीं, जिसे एक पड़ोसी को समझना चाहिए था.

पड़ोसी के नजरिए से

मन को हताहत कर देने वाली इस घटना के बाद आज अनायास याद आ गए हमारे पड़ोसी गट्टू काका, जिन्होंने पूरी उम्र एक अच्छे पड़ोसी का आदर्श प्रस्तुत किया. मैं दीवाली के समय सपरिवार अपने घर गई थी और जब लौट कर आई तो देखा कि दरवाजे पर दीए रखे थे. मैं ने पूछा कि ये किस ने रखे हैं? पता चला कि मेरे 2 मकान के आगे एक बुजुर्ग दंपती जोकि कुछ महीने पहले ही आए थे उन्होंने रखे हैं. मेरा मन ये सब देख कर भर आया. मैं ने जा कर उन को धन्यवाद दिया.

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