युवा महिलाओं के सामने 2 बड़े मोड़ आते हैं. एक विवाह के प्रश्न पर और दूसरा बच्चा पैदा करने पर. आज की युवा महिलाएं कामकाजी हैं और काम चाहे छोटा हो या बड़ा उसे विवाह के लिए या बच्चा होने पर छोड़ना वैसा ही कठिन होता है जैसे विवाह के बाद मां का घर छोड़ना या विवाद के कारण पति का घर छोड़ना.
विवाह या बच्चे के लिए कैरियर को स्वाहा करना महीनों, वर्षों तक खलता है. ये दोनों स्थितियां तब और दर्द देने लगती हैं जब नौकरी अच्छी हो, पैसे ठीक मिल रहे हों, प्रमोशन मिल रही हो. नौकरी देने वालों को न विवाह करने पर आपत्ति हो और न बच्चे पैदा करने पर, अगर उन्हें लगे कि विवाह के बाद भी ऐफिशिएंसी वैसी ही बनी रहेगी. यह समस्या पुरुषों के सामने नहीं आती. उलटे कंपनियां इन घटनाओं के बाद समझती हैं कि ऐंप्लाई और स्थिर हो जाएगा.
इस विकट स्थिति का मुख्य कारण हमारी सामाजिक व्यवस्था और सोच है. विवाह होने के बाद आम लड़कियां धार्मिक और सामाजिक प्रपंचों में ज्यादा फंसने लगती हैं. वे चूड़ा, मंगलसूत्र पहन व सिंदूर लगा कर दफ्तर जाने लगती हैं और वैवाहिक बंधन सारा दिन सिर पर लादे रहती हैं. उन के मोबाइलों पर दोस्तों के कम सास, ननद, भाभियों के फोन ज्यादा आने लगते हैं. जब बच्चा हो जाता है तो वे शगुन, रीतिरिवाजों, पहनावे के प्रति उदासीनता आदि छोड़ कर और ज्यादा ध्यान बंटाने लगती हैं.
बच्चे बहुत छोटे हों तो छुट्टियां ले लेती हैं और उन दिनों दफ्तर की जिम्मेदारियों से कटने लगती हैं. जब लौटती हैं तो आधा समय बच्चे की फिक्र करती रहती हैं. फिर भुनभुनाती हैं कि विवाह और बच्चा उन के कैरियर में आड़े आ रहा है.