भारत में ही नहीं अमेरिका तक में सवाल उठ रहा है कि अब क्या घरों को साफ करने वाली पार्टटाइम मेड्स को कैसे आने दिया जाए? देशभर में रैजिडैंशियल सोसाइटियों ने पार्टटाइम मेड्स को कौंप्लैक्सों में आने से मना कर दिया. लौकडाउन के दौरान तो काम चल गया, क्योंकि सब लोग घर में थे और मेहमानों को आना नहीं था. जितना बन सका साफ कर लिया बाकी वैसे ही रह गया. हाथ भी ज्यादा थे.
अब क्या होगा? अमेरिका में भी क्लीनिंग स्टाफ कई घरों में काम करता है और उन सघन इलाकों में रहता है जहां कोविड केसेज ज्यादा हैं. उन के बिना घर साफ रह ही नहीं सकते. अब घर के सारे काम भी करना और काम पर भी जाना न भरेपूरे परिवार के लिए संभव है और न अकेले रहने वालों के लिए.
सवाल हैल्पों की नौकरी का इतना नहीं जितना इन हैल्पों की मालकिनों की नौकरियों का है. अगर बच्चों और घर दोनों को दफ्तर के साथ संभालना पड़ा तो आफत आ जाएगी.
अमेरिका में बच्चों को फुलटाइम आया के पास न रख डे केयर सैंटरों में ज्यादा रखा जाता है जैसे यहां क्रैचों में रखा जाता है पर वहां जो काम कर रही हैं, वे कैसे कोविडपू्रफ होंगी यह सवाल खड़ा हो रहा है.
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ऊंची पढ़ाई कर के औरतों ने जो नौकरियां पाई थीं वे इन पार्टटाइमफुलटाइम मेड्स के बलबूते पाई थीं. वे होती हैं तो काम पर जाना आसान रहता है नहीं तो साल 2 साल की छुट्टी लेनी होती है.
अब वे हैं पर उन्हें रखना खतरे से खाली नहीं, क्योंकि वे न जाने कहांकहां से हो कर आ रही हैं, किनकिन से मिल रही हैं.
कोविड अब तक अमीरों
का रोग ही ज्यादा पाया गया है. गरीबों में संक्रमण से लड़ने की क्षमता ज्यादा है पर यह डर फिर
भी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन अब कहने लगा है कि यह बच्चों को भी हो सकता है और बच्चों के माध्यम से वायरस मांबाप तक पहुंच सकता है.
वर्क प्लेस को बदलने में कोरोना एक गेम चेंजर बनेगा. अब लोग समूह में बैठनाउठना पसंद नहीं करेंगे पर जिन लोगों को जान पर खेल कर काम करने ही नहीं उन से अमीर व खास लोग कैसे बचेंगे यह सवाल रहेगा. पहली मार बच्चों वाली औरतों पर पड़ेगी और दूसरी उन के पतियों या साथियों पर जिन्हें बिना हैल्प के घर चलाने में मदद करनी होगी.