सामाजिक सुधारों के नाम पर भारत में विवाह का जो अपराधीकरण कर डाला गया है वह बहुत भयंकर है. यह विवाह संस्था को चकनाचूर कर डालेगा. भारत में अवसाद यानी डिप्रैशन के बढ़ते मरीजों की संख्या का एक कारण विवाह का अपराधीकरण है. पहले औरतें ससुराल के आतंक के कारण तनाव व अवसाद में रहती थीं. अब उन को कानूनों की शह तो मिल गई पर विवाहों की नींव हिल गई है. 

आज पतिपत्नी संबंध 20 साल पहले नियोक्ता और श्रमिक संबंध के बराबर के हो गए हैं, जिन में दोनों एकदूसरे से लड़ने को तैयार रहते थे. नौकरी मिलने से पहले याचक की मुद्रा का श्रमिक नौकरी पाते ही बिगड़ैल शेर की तरह दहाड़ने लगता था और नतीजा यह रहा कि देश के कारखाने अनुत्पादक हो गए और जिस भी कारखाने में सामान बन जाता था, वह मुंहमांगे दामों पर बिकता था लेकिन वह घटिया होता था.

आज यही घरों में हो रहा है. अवसादग्रस्त पतिपत्नी के घर में हर समय चीखपुकार होती रहती है, बच्चे सहमे रहते हैं और बूढ़े मातापिता बेसहारा बन जाते हैं. जब मामला पुलिस में चला जाए तो लगता है कि शादी, प्यार का मामला नहीं थी. कुछ रात एक बाजारू औरत के साथ बिताने का था, जहां पुलिस की रेड पड़ी और पति को वेश्यावृत्ति को प्रोत्साहन देने के आरोप में पकड़ लिया गया. अब जेल और अदालतों के चक्कर लगाओ कि क्यों किसी लड़की के साथ बिस्तर पर जाने की योजना बनाई? विवाहों में विवाद होंगे पर उन्हें सुलझाने के लिए अपराधियों से निबटने वाली पुलिस को कौन मूर्ख लाए थे?

किस ने ऐसे कानून बनाए कि विवाहों के विवाद वालों को चोरउचक्कों व अपराधियों के साथ रखा जाएगा और वे डकैतों व हत्यारों के साथ रातदिन गुजारेंगे? ये निपट मूर्खता भरे कानून हैं और विवाह संस्था को खोखला कर घरघर में अवसाद व तलाक का वायरस फैला रहे हैं. आजकल अंधी अदालतें कानूनों से परे देखने लगी हैं पर तब तक विवाद चलतेचलते कई माह (कई बार कई साल) बीत जाते हैं और पति व पत्नी दोनों अपराधियों के साथ समय बितातेबिताते कठोर बन चुके होते हैं. जरूरत घरों को बचाने की है, उन्हें जेल बनाने की नहीं. ये कानून, जो अवसाद व डिप्रैशन पैदा कर रहे हैं, समाप्त होने चाहिए. यह जरूरी समाज सुधार है.

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