हमारे पड़ोसी की हंसमुख तथा चुलबुली बेटी जब भी मिलती बहुत तपाक से ‘हैलो अंकल’ बोल कर स्वागत करती. उस की उम्र रही होगी मुश्किल से 14 वर्ष. उस के पिता का 2 साल पहले एक हादसे में देहांत हो गया था. उस की मां एक बैंक में नौकरी करती थीं और वे बहुत जतन से अपनी इस इकलौती बेटी का पालनपोषण करने में लगी हुई थीं. लेकिन उन्होंने अनजाने में ही अपने सपने उस बच्ची पर लादने शुरू कर दिए थे. जब वह उन की गोद में किलकारियां भर कर खिलखिलाती, तो वे उसे प्यार करती हुई बड़े गर्व से कहतीं, ‘‘मेरी दुलारी बेटी डाक्टर बनेगी.’’
असल में हुआ यह था कि वे खुद पढ़ाईलिखाई में बहुत तेज थीं और इंटर की परीक्षा में उन्हें लगभग हर विषय में डिस्टिंक्शन मिला था. वे डाक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन घर वाले उन्हें ज्यादा पढ़ाने के पक्ष में नहीं थे. शायद परिवार की आर्थिक स्थिति उन के और उन के सपनों के बीच एक दीवार बन कर खड़ी हो गई थी.
उन्होंने घर में लड़झगड़ कर किसी तरह मैडिकल का ऐंट्रैंस ऐग्जाम तो क्लियर कर लिया था, लेकिन मैडिकल कालेज की फीस जमा करने के लिए पैसों का इंतजाम न हो पाने के कारण उन्हें मनमसोस कर रह जाना पड़ा था. और फिर विवाह के बाद वे एक नए माहौल और नई जिम्मेदारियों के बीच घिर गई थीं.
उन्होंने अपने सपने को तभी अपनी इस चुलबुली बच्ची के ऊपर थोप दिया था जब वह डाक्टर शब्द का मतलब समझने के लायक भी नहीं हुई थी. 14 साल की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते इस मासूम बच्ची को यह एहसास हो गया था कि वह बचपन से अपनी मां के किसी अधूरे सपने को जीती आ रही थी और अब इस सपने को साकार करना ही उस के जीवन का एकमात्र मकसद बन गया था.