विमल शुक्ला
एमडी, मेघदूत, ग्रामोद्योग सेवा संस्थान, लखनऊ.
किसी भी कंपनी की प्रगति उस के संस्थापकों की सोच, मेहनत और ईमानदारी पर निर्भर करती है. हमारे देश की बहुत पुरानी कहावत है कि जैसा अन्न आप खाते हो वैसी आप की सोच हो जाती है. ‘मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान’ के संस्थापक विजय शंकर शुक्ला मूल रूप से हरदोई जिले के रहने वाले थे. उन के पिता जटाशंकर सांस्कृत्यायन कवि और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने पर उन को जेल जाना पड़ा. अपने परिवार को अंग्रेजों के अत्याचारों से बचाने के लिए उन्होंने लखनऊ रहने भेज दिया. उन के बेटे विजय शुक्ला की परवरिश लखनऊ में हुई. यहीं पलेबढ़े और जीवनयापन शुरू किया. विजय शंकर शुक्ला पर महात्मा गांधी की स्वदेशी नीति का गहरा प्रभाव पड़ा.
विजय शंकर शुक्ला ने त्रिफला प्रयोगशाला शुरू की, जिस में त्रिफला से जुड़े उत्पाद तैयार होने लगे. इस के 2 लाभ थे- गांव से जुड़े लोगों को रोजगार मिलने लगा और स्वदेशी को बढ़ावा मिल रहा था. 1985 में खादी ग्रामोद्योग विभाग ने उन के इस काम को देखा और इस से काफी प्रभावित हुआ. खादी ग्रामोद्योग की पहल पर विजय शंकर शुक्ला और उन के बेटे विमल शुक्ला तथा अन्य ने मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान की स्थापना की. 7 लाख के लोन से इस कंपनी का काम शुरू हुआ. आज मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान के 240 से अधिक उत्पाद हैं. 1 लाख 10 हजार के टर्नओवर से जो काम आगे बढ़ा तो करोड़ों के कारोबार तक पहुंच गया.
मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान देश की जानीपहचानी कंपनी है, जो पूरी तरह से स्वदेशी है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पास ही बक्शी का तालाब इलाके और मध्य प्रदेश में कंपनी की 2 फैक्टरियां हैं, जिन में निर्मित उत्पाद पूरे देश में उपलब्ध है. कोविड-19 के दौर में जब आयुषकुल यानी जड़ीबूटी और आयुर्वेदिक उत्पादों का महत्त्व बढ़ा तो मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान के उत्पादों ने लोगों को अपनी इम्युनिटी बढ़ाने में मदद की. आयुष क्वाथ (काढ़ा), इम्यून अप सिरप व टैबलेट, गिलोय बटी और सैनिटाइजर की डिमांड अस्पतालों में बढ़ गई. मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान ने सेवाभाव के साथ किफायती दाम पर यह सामग्री देश को उपलब्ध कराई, ताकि लोग कोविड-19 के संक्रमण से लड़ने के लिए खुद को तैयार कर सकें.
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