मासिक धर्म पर जितने आडंबर अपने देश में हैं दुनिया में शायद कहीं नहीं हैं. युवतियों और औरतों की हर महीने वाली यह ‘समस्या’ को समाज के सत्ताधारियों ने ही समस्या घोषित कर दिया है. गौरतलब है कि ऐसे नियम बनाने वालों को खुद पीरियड्स नहीं होते. इन नियमों को यथासंभव पालन हमारी माताएं और बहनें भी निश्चित करतीं हैं. मासिक धर्म कोई ‘समस्या’ या अपवित्रता नहीं है जैसा कि धर्म के ठेकेदारों ने फैला रखा है. विज्ञान ने मासिक धर्म के कारणों को बहुत पहले ही सिद्ध कर दिया था. मगर धर्म के नाम पर अंधे हो चुके समाज को यह दिखाई नहीं देता.

मासिक धर्म के समय महिलाएं कई शारीरिक, मानसिक और हॉरमोनल बदलावों से गुजरती हैं. हमारे देश में बहुत सी लड़कियों और महिलाओं को रजोधर्म या मासिक धर्म के बारे में सटिक और सही जानकारी ही नहीं है. जानकारी के अभाव में लड़कियां और महिलाएं अपनी साफ-सफाई का ठीक से ध्यान नहीं रख पातीं और इसका खामियाजा उन्हें बाद में भुगतना पड़ता है.

मासिक धर्म को लेकर हमारे समाज में कई कुरीतियां हैं. कई परिवारों में आज भी इन नियमों का पालन किया और करवाया जाता है. कई घरों में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को रसोई घर में और तथाकथित ‘पूजा घर’ में प्रवेश नहीं करने दिया जाता. यही नहीं, कुछ परिवारों में तो मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को घर के कोने में रखा जाता है और परिवार के दूसरे लोगों को स्पर्श करना वर्जित कर दिया जाता है. अलग थाली में खाने से लेकर एक वक्त के खाने तक, यह सब चोंचले हमारे समाज में विद्यमान हैं. अगर यह सब पढ़कर आप चौंक गए हैं, तो यह भी जान लीजिए कि मासिक धर्म के दौरान कुछ महिलाओं का श्रृंगार करना भी वर्जित होता है. देश में पैठ बनाकर बसे हुए कई धर्म की दुकानों(सबरीमाला मंदिर, केरल) में भी मासिक धर्म वाली महिलाओं का जाना मना है.

सोचने वाली बात यह कि इन सब ड्रामेबाजी का महिलाओं के मन मस्तष्कि पर क्या प्रभाव पड़ता होगा. न चाहते हुए भी वे खुद को अलग-थलग और अपवित्र महसूस करती होंगी. समाज में व्याप्त इन नियमों का बोलबाला है. इसका मुख्य कारण है प्युबर्टी, रिप्रोड्कटिव हेल्थ, मासिक धर्म के बारे में सही जानकारी का अभाव. इस समस्या का समाधान सही प्लैनिंग से ही मिल सकता है. 

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर ट्रैफिक जैम कम्युनिकेशन (दिल्ली में स्थापित एक इन्टीग्रेटेड मार्केटिंग कम्युनिकेशन्स ऐजेंसी) ने डबल बैरल कम्युनिकेशन के साथ मिलकर #IAmUp कैंपेन शुरु किया है. इस कैंपेन का मुख्य उद्देश्य महिलाओं, युवतियों और लड़कियों से जुड़ी गंभीर समस्याओं पर बातचीत करना और उनके सशक्तिकरण के लिए यथोचित समाधान निकालना है. इसी अवसर पर #IAmUp कैंपेन के नाम से एक वीडियो भी रिलीज किया गया. इस कैंपेन के अंतर्गत भविष्य में कई वीडियो रिलीज किए जाएंगे.

ट्रैफिक जैम कम्युनिकेशन्स प्राइवेट लिमिटेड के को-फाउंडर हितेश छाबरा ने कहा, ‘हमें समाज पर कठोर प्रश्न उठाने होंगे. हमें यह पूछना होगा कि आज भी हम पुराने समय में क्यों जी रहे हैं और मासिक धर्म को अपिवत्र क्यों मानते हैं. कुछ समय पहले इन्सटाग्राम ने एक महिला की पीरियड्स वाली तस्वार को हटा लिया था. यह गलत है. अधिकतर मामलों में एक औरत ही दूसरे औरत को मासिक धर्म को लेकर असहज महसूस करवाती हैं.’

वहीं डबल बैरल कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड के फाउंडर निलेश फड़निस ने कहा, ‘हमें इस बात पर विचार करना होगा कि जब एक औरत ही दूसरे औरत को नीचा दिखाना चाहती हो, तो क्या महिला सशक्तिकरण संभव है? हमें यह समझना बहुत जरूरी है कि मासिक धर्म एक सामान्य प्रक्रिया है.’

महिलाएं बेझिझक बढ़ें आगे

धर्म और उस के ठेकेदार भले ही मासिकधर्म से गुजर रही महिलाओं को दुत्कारने और कोसने का अपना धर्म निभाते रहें लेकिन महिलाओं में कतई यह निराशा, हताशा, अवसाद या कुंठा की बात नहीं होनी चाहिए. उन्हें सेनेटरी नेपकिंस के उत्साहभर देने वाले विज्ञापनों से सबक लेना चाहिए जिन में पूरे आत्मविश्वास से बताया जाता है कि उन 5 दिनों में वे कैसे बगैर किसी झंझट या परेशानी के न केवल अपने रोजमर्रा के कामकाज कर सकती हैं बल्कि खेलकूद में भी झंडे गाड़ सकती हैं. यानी दिक्कत की बात गीलापन या चिपचिप नहीं, बल्कि धर्म है जो मासिकधर्म से भी पैसा बनाने के जुगाड़ में है.

प्राकृतिक है मासिकधर्म

अगर वाकई भगवान नामक कोई शक्ति है तो कम से कम उस ने तो लड़केलड़की का भेद नहीं किया. अगर करता तो आज तथाकथित रूप से उस की यह सृष्टि ही नहीं होती. वैसे इस भेदभाव के लिए अकेले पुरुषवर्ग जिम्मेदार नहीं है. महिलाएं भी बड़ी संख्या में ऐसे अंधविश्वास का समर्थन करती हैं कि महीने के 5 दिनों तक लड़कियों का शरीर अपवित्र रहता है. लगभग हर घर में कुछ महिलाएं हैं जो आंखें मूंदे खुद तो परंपरा के नाम पर इन नियमों का पालन करती ही हैं, अपने बच्चों पर भी यह कुसंस्कार थोपती रहती हैं.

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