लेखक- बाल कृष्ण सक्सेना

मोबाइल फोन में व्यस्त लोगों की भीड़ और उन की निरंतर बातचीत मैट्रो का माहौल बयान करती है. कभी बाएं से तो कभी दाएं से. अकसर बहुत दिलचस्प वार्तालाप सुनने को मिलते हैं. कुछ तो इतनी तेज आवाज में बात करते हैं मानो कि सब को सुनाना चाहते हों या फिर अपनी शेखी बघार रहे हों. दूसरी ओर कुछ महिलाएं तो इतना इतराती हैं कि सुनने वाले सहयात्री भी अटपटा सा महसूस करते हैं.

लेकिन युवा लड़कियां तो दिखावे की होड़ में सब से आगे निकल चुकी हैं. अपने बौयफ्रैंड से फिल्मी अंदाज में आत्मीयता से बात करते हुए यह जानते हुए भी कि सहयात्री सुन रहे हैं, उन्हें रत्तीभर भी झिझक नहीं होती. वजह चाहे जो भी हो, इस प्रकार के लोग तो सहयात्रियों के लिए सिरदर्द होते ही हैं, लेकिन कुछ लोग अनजाने में ही सहयात्रियों को अच्छाखासा मनोरंजन भी कर जाते हैं.

बातचीत कैसी भी हो, आपसी रिश्तों, पारिवारिक तनातनी या फिर प्यारमोहब्बत की, दूसरों की बातें बहुत चटपटी लगती हैं और सुनने में बहुत स्वाद आता है. मैं भी सफर के दौरान मैट्रो की इस मनोरंजन सेवा का आनंद लेता हूं कुछ यों:

डैडीजी की सेवा

मैट्रो में 2 मित्र यात्रा कर रहे थे कि अगले स्टेशन पर एक व्यक्ति ने ट्रेन में प्रवेश किया. शायद वह व्यक्ति उन दोनों का जिगरी मित्र था. हाथ मिला कर प्रेमपूर्वक गले मिला और फिर शिकायत की.

‘‘ओए यार, इतने दिनों से कहां था तू? फोन भी नहीं उठाया, हमें तेरी फिक्र होने लगी थी.’’

‘‘क्या बताऊं यारों, मेरे डैडीजी को हार्टअटैक हुआ था, बस इसी चक्कर में बिजी रहा. आज 7 दिनों बाद दुकान जा रहा हूं.’’

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