भारतीय जनता पार्टी के मंत्री गिरिराज सिंह ने यह सवाल खड़ा कर गलत नहीं कहा कि अगर राजीव गांधी ने नाइजीरियाई लड़की से शादी की होती तो क्या कांगे्रस आज उस काली पत्नी को अपना नेता मान लेती? यह तो जमीनी सत्य है कि इस देश में वर्ण व्यवस्था, मनुस्मृति का राज, ब्राह्मणों को गायों का दान देना, यज्ञहवन कराने और मंदिर बनवाने आदि का संकल्प लिए जीती भारतीय जनता पार्टी के ये नेता एक योजनाबद्ध तरीके से लोगों को याद दिला रहे हैं कि महान हिंदू संस्कृति क्या है.

जैसे महान हिंदू संस्कृति में सभी देवीदेवता, अवतार अपना मतलब गांठने के लिए झूठ, फरेब, अनाचार, अत्याचार, हिंसा का इस्तेमाल करते रहे हैं, वैसे ही गिरिराज सिंह कर रहे हैं, साध्वी निरंजन ज्योति कर रही हैं, साक्षी महाराज कर रहे हैं, प्रवीण तोगडि़या कर रहे हैं और यहां तक कि राजनाथ सिंह भी कर रहे हैं. गिरिराज सिंह ने जो कहा है वह हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार कहा है, जहां त्वचा के रंग का बहुत महत्त्व है, विशेषतया पत्नियों के लिए. मगर गिरिराज ने जो माफी मांगी है, वह दिल से नहीं मांगी. यह तो उस तरह की गाली है जैसी स्वयं कृष्ण अर्जुन से दिलवाते हैं, जो युद्ध के दौरान अपने बड़े भाई कर्ण को मारने को तैयार हो जाता है. अगर अपना काम निकालना हो तो नकली क्षमा मांग लेना हमारी संस्कृति का नियम है और हर रोज घरों में देखा जाता है कि जब किसी के बारे में कहा जाता है कि उस के गुस्से या शब्दों पर न जाओ, वह दिल से साफ है तो यह समझ नहीं आता कि जो दिल से साफ है वह गलत बात कह कैसे सकता है?

यह हमारे समाज की विडंबना है कि हमारे यहां औरतों को कभी नहीं बख्शा जाता. सोनिया गांधी को आज विवाह के 4 दशक बाद भी याद दिलाया जा रहा है कि उन की मूल जगह कहां है. यहां जन्म के गुण महत्त्व के हैं, वर्ण नहीं. इसीलिए एमबीए करे इंजीनियर भी विवाह के समय अपनी कुंडली बगल में दबाए घूमते हैं कि उन के जन्म के समय उन में क्याक्या दोष थे कोई ब्राह्मणनुमा अधपढ़ा बता दे. मंगली कह कर हजारों सुंदर, पढ़ीलिखी, सौम्य लड़कियों को अपनी जाति, अपने वर्ग की होने पर भी रिजैक्ट कर दिया जाता है, क्योंकि साक्षीगिरिराजज्योतिवाद हमारे कणकण में बसा है और नई सरकार हर रोज उसे थोप रही है.

वैसे यहां यह कहना गलत न होगा कि पिछली कांगे्रस सरकार कोई दूध की धुली न थी. 1947 के बाद जो सरकार गांधी, नेहरू, पटेल, राजेंद्र प्रसाद ने दी थी वह आज की भाजपा सरकार से ज्यादा ही कट्टर थी जिस के कारण तमाम आरक्षण, भूमि सुधारों व संशोधित विवाह कानूनों के नाटकों के बावजूद देश और समाज वहीं का वहीं, जाति, वर्ण, अंधविश्वास, गोदान, यज्ञ, हवन, संस्कृति और देवीदेवता की प्रार्थना के चक्रव्यूह में फंसा है. इन सब का शिकार औरतें ज्यादा हैं चाहे वे ब्राह्मणों की हों या दलितों की. उन्हें आज भी सामाजिक परंपराओं के नाम पर पगपग पर अपमानित किया जाता है. उन्हें मंदिरोंमसजिदों की लंबी लाइनों में लगवा दिया जाता है, सप्ताहों तक भूखा रखा जाता है और ऐरेगैरों के गंदे पैर धोने के लिए मजबूर किया जाता है. साक्षीगिरिराजज्योतिवाद जब तक जिंदा है, औरतें अपने को स्वतंत्र न मानें. दीपिका पादुकोण का ‘माई चौइस’ वीडियो तो बस चिडि़यों का एक समूह खाली कराने के प्रयास जैसा है. 

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