विवाह शब्द का अर्थ है जिम्मेदारी उठाना, लेकिन लोग इसे समझने के बजाय विवाह की परंपरा को निभाने और जरूरत से ज्यादा खर्च कर वाहवाही बटोरने में जुटे रहते हैं. ऐसा नहीं है कि मंगलसूत्र बांधने पर ही स्त्रीपुरुष के बीच पतिपत्नी का रिश्ता बनता है. यह भी नहीं कि वरवधू का संबंध लाखों खर्च करने पर ही गहरा होता है. लेकिन आज विवाह में पानी की तरह पैसा बहाना और परंपराओं को एक से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाना फैशन जैसा हो गया है.

आइए, आप को कुछ ऐसे कपल्स के बारे में बताते हैं, जिन्होंने हिंदू रीतिरिवाज को नकार कर विवाह का दूसरा विकल्प अपनाया है और कम से कम खर्च कर सामाजिक उपदेश दिया है:

किसानों और विद्यार्थियों की जिंदगी संवारी

अभय देवरे और प्रीति कुंभारे: अभय देवरे और प्रीति कुंभारे इन दिनों मीडिया में छाए वे नाम हैं जिन की शादी में सगेसंबंधी और सहकर्मी नहीं, बल्कि गरीब किसान और पढ़ाई से वंचित मासूम बच्चे शामिल हुए. ज्यादातर लोग धूमधाम से शादी करना चाहते हैं, पर पैसों की वजह से वे ऐसा नहीं कर पाते. लेकिन अमरावती (महाराष्ट्र) के सहायक आयकर आयुक्त अभय देवरे और आईडीबीआई बैंक में सहायक प्रबंधक प्रीति कुंभारे ने पैसा होते हुए भी सामान्य तरीके से शादी की. ये दोनों शादी की ठाटबाट से अपना मानसम्मान नहीं बढ़ाना चाहते थे, बल्कि इन की इच्छा उन्हीं पैसों से दूसरों का जीवन संवारने की थी. इसलिए इस जोड़े ने अपने विवाह में होने वाला संभावित खर्च (करीब 3 लाख) गरीब किसानों और विद्यार्थियों के नाम कर दिया. दोनों ने महाराष्ट्र के यवतमाल और अमरावती जिलों में आत्महत्या करने वाले 10 किसानों को 20-20 हजार और जरूरतमंद विद्यार्थियों को 20 हजार का सहयोग और ग्राम पुस्तकालयों को 52 हजार दिए ताकि वे विद्यार्थियों के लिए किताबें आदि खरीद सकें.

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