धर्म के नाम पर हमारे समाज में सदियों से तरहतरह के कर्मकांड होते रहे हैं. व्रतउपवास करना भी उन्हीं में से एक है. इस में पुण्य कमाने, मोक्ष पाने, देखादेखी या मन्नत मांगने आदि के लिए खानापीना छोड़ा जाता है, लेकिन लगातार ज्यादा दिनों तक भूखा रहा जाए तो यह जानलेवा भी साबित हो सकता है.

पिछले दिनों हैदराबाद में यही हुआ. 13 साल की लड़की आराधना कक्षा 8 में पढ़ती थी. उस ने चौमासा व्रत में खाना छोड़ सिर्फ पानी पीया व लगातार 68 दिनों तक उपवास रखा. इस से वह बहुत कमजोर हो गई. फिर भी उसे दुलहन की तरह सजा कर रथ पर बैठा जुलूस निकाला गया.

आराधना के व्रत खोलने पर हुए जलसे में कई नेताओं सहित भारी भीड़ मौजूद थी, लेकिन इस के 2 दिन बाद वह लड़की मर गई. उस के मांबाप पर गैरइरादतन हत्या का मामला दर्ज हुआ, लेकिन मामले को धार्मिक रंग दे कर रफादफा करने वाले भक्त मृतका को बाल तपस्वी कह कर महिमामंडित करने में जुट गए.

धर्म एक अफीम है और हमारे देश में ऐसे धर्मांध मांबापों की कमी नहीं है, जो साधुसंतों के झांसे में आ कर अपने मासूम बच्चों को उन के हाथों में सौंप देते हैं या बाबाओंतांत्रिकों आदि के चक्करों में फंस कर अपने बेजा मकसदों के लिए बच्चों की बलि दे देते हैं. आए दिन ऐसी खबरें सुर्खियों में छाई रहती हैं.

धर्मांधों की नहीं कमी

आंख मूंद कर व्रतउपवास रखने के चक्कर में फंस कर जान गंवाने की यह घटना पहली नहीं है. इस से पहले बिजनौर में एक औरत देवी को खुश करने के लिए नवरात्रों में लगातार 9 दिन तक भूखी रही थी. इस दौरान पूरे दिन में वह सिर्फ साबूत लौंग का एक जोड़ा पानी से निगलती थी.

एक दिन उस के गले की नली में लौंग फंस गई और जख्म हो गया और फिर उस के 4 दिनों बाद वह मर गई. औरत उम्रदराज थी, लेकिन आराधना तो नाबालिग थी.

कम उम्र लड़की को 68 दिन भूखा रहने के परिणाम का अंदाजा नहीं था. वह ऐसे फैसलों से वाकिफ नहीं थी जो उस की जिंदगी के लिए खतरनाक थे. अत: उस के मांबाप का फर्ज था कि वे उसे भूखा रहने का अंजाम बताते. उन की जिम्मेदारी थी कि वे उसे ऐसा करने से रोकते, लेकिन वे तो अपने समाज में शोहरत, इज्जत व तोहफे पाने की फिराक में थे.

किताबों में महिमा

धर्म की किताबों में व्रतउपवास की बहुत अहमियत बताई गई है. इसे त्यागतपस्या कहा गया है. योग दर्शन, जैनेंद्र सिद्धांत कोश, वसुनंदी श्रावकाचार, जैन दर्शन, व्रत विधान, सर्वोदयी जैन तंत्र, प्राकृतिक चिकित्सा से रोग मुक्ति व कुदरती उपचार आदि बहुत सी किताबों में व्रतउपवासों से पेट ठीक, सेहत बढि़या, चेहरे पर चमक व बीमारियों से छुटकारा जैसे फायदे लिखे हैं.

इन के अलावा लोगों को धार्मिक व्रतउपवासों के तरीके सिखा कर इस गलत परंपरा को बढ़ावा देने वाली बहुत किताबें तीर्थस्थलों, मंदिरों, सड़क किनारे पटरियों पर जहांतहां खूब बिकती हैं. सत्यनारायण, संतोषी माता और वैभव लक्ष्मी आदि देवीदेवताओं के नाम पर भक्तों की गिनती में इजाफा होता रहता है.

बेतुकी बातें

वैसे कभीकभार पेट को आराम देने के लिए या बीमारी में हलका खाना अथवा 1-2 वक्त न खाना मुनासिब है, लेकिन मोक्ष पाने के लिए लगातार महीनों भूखे रहने का फैसला करना खुदकुशी है.

पैदल चल कर तीर्थ या लेटलेट कर मंदिर जाने, अपने बदन पर कोड़ेचाबुक, चाकू आदि मारने और भूखे रह कर तकलीफ सहने वालों की बड़ी महिमा गाई गई है. अत: बहुत से धर्मांध लोग खानापीना छोड़ व्रतउपवास में लगे रहते हैं. कई तबकों में तो लोग महीनों भूखेप्यासे रहते हैं.

गुरू घंटाल

धर्मगुरु व्रतउपवासों को महाकल्याणकारी, वैज्ञानिक, पापनाशक, स्वर्ग व मोक्ष दिलाने तथा मनौती पूरी करने वाले बताते हैं. अपनी बातों को सही साबित करने के लिए बेतुकी दलीलें देते हैं. कहते हैं कि इनसान ज्यादा खाने से मरते हैं, भूख से नहीं. लंबे उपवास कर के भी जिंदा रहने वालों के मनगढ़ंत किस्सेकहानियां सुनाते हैं ताकि लोग उन के झांसे में आ जाएं.

धर्मगुरु व्रतउपवासों पर इसलिए ज्यादा जोर देते हैं, क्योंकि ऐसी बातों से ही उन का धंधा चलता है. व्रतउपवास में दानपुण्य करना जरूरी बताया जाता है और दान में मिला सारा माल सीधे उन की झोली में जाता है. साथ ही व्रतउपवास करने वालों की गिनती बढ़ने से उन के माफिक माहौल बनता है.

गांवों व कसबों में बहुत लड़कियां अपनी शादी जल्दी व अच्छी कराने की गरज से 16 सोमवार, संतोषी माता व बृहस्पति आदि के लिए दिन भर भूखी रहती हैं. गरीब औरतें अमीरी के लिए वैभव लक्ष्मी के व्रत रख कर उद्यापन करती हैं. मर्द नौकरी व रोजगार में तरक्की के लिए मंगल का उपवास रखते हैं.

ढकोसलेबाजी

चाहे औरतें हों या मर्द, व्रतउपवास के नाम पर आजकल ज्यादातर लोग सिर्फ दिखावा करते हैं. सिर्फ नाम का व्रत रहता है. लेकिन उस दिन आम दिनों से ज्यादा फल, चाटपकौड़ी, सेंधा नमक डाल कर कुट्टू सिंघाड़े के आटे की पूरियां, परांठे, चौलाई के लड्डू व रबड़ी आदि खूब जम कर खाईखिलाई जाती है.

एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा व अन्य सारे त्योहारों को मिला कर साल के 365 दिनों में लगभग 250 ऐसे मौके पड़ते हैं, जिन पर व्रतउपवास रखे जाते हैं, लेकिन हफ्ते, पखवाड़े या महीने में अनाज या नमक वाला खाना छोड़ कर व्रतउपवास करना मुमकिन है, लेकिन लगातार उपवास करना जानलेवा पाखंड है.

क्या होता है भूखे पेट में

वक्त पर न खाने से सेहत पर खराब असर पड़ता है. खानपान की माहिर डाइटिशियन ममता के मुताबिक, लंबे वक्त तक शरीर को ईंधन न मिलने से ताकत देने वाले ग्लाइकोजन टूटने लगते हैं. अत: कमजोरी व थकावट महसूस होने लगती है. लगातार भूखा रहने से खून से ग्लूकोस घटने लगता है. अत: मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं. बीमारियों से लड़ने की क्षमता घट जाती है तथा वजन में कमी होने लगती है. ऐसा लगातार होने से मौत भी हो सकती है.

नसीहत

असल दोष तो धर्मगुरुओं व धर्म के प्रचार का है, जिस में ढोल पीटपीट कर यह बताया व सिखाया जाता है कि व्रतउपवास से शरीर शुद्ध होता है, रूहानी ताकत बढ़ती है, दुखतकलीफें मिट जाती हैं और सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. अत: डरपोक भक्त झट उन की बात मान लेते हैं.

सुख से रहने के लिए व्रतउपवासों के जंजाल से निकल कर अंधविश्वासों से छुटकारा पाना व समझदारी से फैसले लेना जरूरी है. साथ ही, यह समझना व औरों को समझाना भी बहुत जरूरी है कि ख्वाहिशें व्रतउपवास करने या मरने से नहीं, मेहनत व दिमाग लगा कर बेहतर काम करने से पूरी होती हैं. इसी तरह जिंदगी के मसले ढकोसलों से नहीं सूझबूझ से हल होते हैं.

आंखें मूंद कर लंबे समय तक व्रतउपवास करने से नुकसान भक्तों का व फायदा धर्मगुरुओं का होता है. आज के वैज्ञानिक युग में इस तरह के ढोंग रच कर मनोरथ पूर्ण करने के सपने देखना खुद को धोखा देना है. यदि व्रतउपवासों से किसी का कुछ भला होता तो व्रतउपवास करने वाले सारे भक्त कभी के सुखी व धनी हो गए होते. अत: भूखेप्यासे रहने से कोई फायदा नहीं है.

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