Writer-  एकता एस. दुबे 

हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई, जैन सब धर्मों ने हमें बस बांटा है पर एक ऐसा धर्म है जिस ने कम से कम हम महिलाओं को तो एक धागे में पिरोया है और वह है ‘मासिकधर्म.’ महिला चाहे किसी भी धर्म की हो, मासिकधर्म में तकलीफ तो एकजैसी ही होती है. मासिकधर्म सभी को लगभग एकजैसी उम्र से शुरू और एकजैसी उम्र में बंद होता है, वहां वह न तो आप का धर्म पूछता है न ही जाति. और ऐसा हो भी क्यों न, मासिकधर्म इंसान ने तो बनाया नहीं है. वह तो प्रकृति ने बनाया है और प्रकृति का तो कोई धर्म नहीं होता.

पर हां हम इंसानों का जरूर होता है. तो भई हम ने इस मासिकधर्म में भी अपना धर्म घुसा दिया. कुछ भी हो हम इंसानों की टांग अड़ाने की आदत तो ऐसे जाएगी नहीं, फिर बात भले ही प्रकृति की क्यों न हो. तो हम ने अपने धर्मों के हिसाब से इस मासिकधर्म में क्या करना है और क्या नहीं, यह तय कर लिया.

मगर ‘धर्म’ और वह भी बिना भगवान का? न जी न. भगवान जो होते हैं, कहा जाता है वे समदर्शी होते हैं. मतलब सब को एकजैसा देखने वाले, बिना किसी भेदभाव के. तो अपने इस मासिकधर्म के भगवान भी हम ने ढूंढ़ लिए और यहां बात महिलाओं की हो रही है तो उन्हें स्त्रीलिंग बना दिया. उन का नाम हम ने रखा ‘माहवारी मैया.’ इन मैयाजी का आशीर्वाद हर स्त्री को मिलता है. गरीब हो या अमीर, काली हो या गोरी, नाटी हो या लंबी, कामकाजी हो या गृहिणी, बातूनी हो या चुप रहने वाली सभी प्रकार की महिलाओं को माहवारी मैया एक आंख से देखती हैं. कुछ जरूर छूट जाती हैं इस आशीर्वाद से लेकिन इस में भी प्रकृति की कोई अच्छी मंशा छिपी होती है.

मैयाजी के साक्षात दर्शन

एक दिन हमें मैयाजी के साक्षात दर्शन हो गए. हालांकि माहवारी हमें पहली बार नहीं आई थी पर माहवारी मैया के दर्शन पहली बार हुए थे. उन की छवि अलग ही थी. लाल रंग की साड़ी, माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी, लाललाल चूडि़यां, 6 हाथ (एक में पैड, एक में टैंपन, एक में मैंसट्रुअल कप, एक में सी स्पंज, एक में पुराना कपड़ा और एक में कुछ नहीं. अरे एक हाथ तो छोड़ दो, मक्खी उड़ाने, खुजली करने या आशीर्वाद देने), कानों में लाल बालियां और गहरे लाल रंग का माहुर लगाए हमारे सामने खड़ी थीं. हम ने देखते ही उन को प्रणाम किया. जैसाकि जिन्हें भी माहवारी मैया दर्शन देती हैं, उन्हें हमेशा पूतोफलो का आशीर्वाद भी देती हैं. सो हमें भी यह आशीर्वाद मिल गया.

अब क्योंकि हम पहली बार मैया से मिल रहे थे तो मन में कुछ कुतूहल के कीड़े कुलांचें मार रहे थे. एक तो कुलबुलाते हुए जीभ तक आ गया. एक सवाल बन कर बाहर निकला तो हम मैया से पूछ बैठे, ‘‘आप के 4 हाथों में ये आधुनिक अस्त्रशस्त्र हैं पर एक हाथ में यह पुराना कपड़ा क्यों है?’’

मैयाजी मुसकराईं और फिर बोलीं, ‘‘बिटिया, मेरी लाल, एक हाथ में पुराना कपड़ा इसलिए है क्योंकि तुम लोगों ने एकदूसरे की तरफ मदद का हाथ नहीं बढ़ाया. नहीं सम?ा न? तो सुनो. जिन के पास ‘लक्ष्मी मैया’ के आशीर्वाद की सप्लाई अच्छी होती है वे तो आधुनिक अस्त्रशस्त्र प्रयोग कर लेते हैं पर जिन के पास उन का आशीर्वाद नहीं होता वे लोग तो यही इस्तेमाल करते हैं और यदि इन लोगों की तरफ तुम लोगों ने मदद का हाथ बढ़ाया होता तो मेरे हाथ में पुराना कपड़ा न होता. मेरा यह हाथ भी दूसरे काम करने के लिए मुक्त होता.’’

कुतूहल का कीड़ा

लो जी, प्रश्न का उत्तर मिला ही था कि कुतूहल का दूसरा कीड़ा जो न जाने कितने सालों से मन में पल रहा था सब को धक्का लगाते बाहर आया और दूसरा प्रश्न निकला, ‘‘मैया, आप पैदा होने से ले कर आखिरी सांस तक साथ क्यों नहीं रहतीं? क्यों लड़कपन में दर्शन दे कर अधेड़पन में लुप्त हो जाती हो?’’

मैयाजी ने खिलखिलाते हुए कहा, ‘‘धीरे बोलो, धरती मैया रुष्ट हो जाएंगी.’’

हम ने पूछा, ‘‘कैसे?’’

मैया ने कहा, ‘‘इस के 2 कारण हैं. पहला तो यह कि तुम इंसानों का भरोसा नहीं तुम लोग 8 साल की बच्ची हो या 80 साल की बुजुर्ग, सब को गर्भवती कर सकते हो. कम से कम इसी बहाने जनसंख्या नियंत्रण के साथ उन मासूमों का स्वास्थ्य भी सुरक्षित है और दूसरा यह कि कम लोग होने से तुम्हारे द्वारा इस्तेमाल किए पैड से कचरा तो कम होगा. जनसंख्या और कचरा दोनों ही बढ़े तो धरती मैया रुष्ट हो जाती हैं.’’

बहुत देर बातचीत के बाद मैयाजी हम से और घुलमिल गईं. वैसे भी हमें अपनी लाल और बिटिया तो पहले ही बोल चुकीं थीं वो. तो हम लोगों के बीच औपचारिकता वाली दीवार नहीं रह गई थी.

तो उन्होंने हम से कहा, ‘‘बिटिया, बात करतेकरते बहुत देर हो गई. भूख लग रही है कुछ बना दो हमारे लिए.’’

क्योंकि बचपन से ही हम देखते आए थे कि माहवारी होने पर यह मत छुओ, वह मत छुओ, रसोई में मत जाओ, अपने हाथ से निकाल कर मत खाओ वगैरहवगैरह. ये सब हम से कहा जाता था. सो हम ने मैयाजी से कहा, ‘‘हम से कोई गलती हो गई है तो बोल दो, पर हमारी परीक्षा क्यों ले रही हैं? आप को तो पता है हमें माहवारी है, फिर हम रसोई में कैसे जाएं.

मैयाजी परिहास करने बैठी थीं शायद, तो उन्होंने कहा, ‘‘ठीक वैसे ही जैसे बाकी के दिनों में जाती हो. तुम्हें कोई दर्द या परेशानी हो तो तुम आराम करो, मैं बना कर तुम्हें भी खिलाती हूं.’’

माहवारी मैया के खुद के मुंह से ऐसे शब्द सुन कर ऐसा लग रहा था कि हम ने अनुभव की मजबूत इमारत, भुरभुरी नींव पर बना दी हो और थोड़ी ही देर में वह इमारत चरमरा कर गिर पड़ी.

‘‘नहीं हमें कोई दर्द तो नहीं है, पर…’’

बात पते की हम बस इतना ही कह पाए थे कि मैयाजी ने टोकते हुए कहा, ‘‘अरे तुम इंसान ही एक प्राणी तो हो नहीं जिसे माहवारी होती है. कभी देखा है चमगादड़ को दूसरे चमगादड़ से कहते कि मेरे पास नहीं आना क्योंकि तुम्हें माहवारी है या एक बंदरिया को कोने में खड़े इंतजार करते दूसरे बंदरबंदरिया को जो उस के लिए खाना ले कर आएं और उसे दें.’’

दबी आवाज में हम ने कहा, ‘‘लेकिन… वह… चीजें छूने से…’’

हमारी बात पूरी भी न हो पाई थी कि मैयाजी ने फिर टोकते हुए कहा, ‘‘अच्छा तो मु?ो एक बात बताओ, बैंक में काम करने वाली महिला जिसे माहवारी है, से कोई पैसे लेता है तो पैसे खराब हो जाते हैं या छूत वाले कीटाणु एक इंसान से दूसरे इंसान तक बिना टिकट यात्रा करते हैं या फिर 500 रुपए 100 रुपए में बदल जाते हैं या वह शिक्षिका जिसे माहवारी है पुस्तक पढ़ाने को उठाती है तो उस पुस्तक के अक्षर उस के छूने से या उस के प्रभामंडल में आ कर गलत शिक्षा तो नहीं देते? सोचो, एक नर्स जब इंजैक्शन लगाने वाली होती है तो क्या मरीज उस से पूछती है कि सिस्टर आप को माहवारी चल रही है क्या? वह क्या है न, घर में मैं माहवारी होने पर अपनी बहू के हाथ का पानी भी नहीं पीती. अरे जब बाहर माहवारी के छूत के कीटाणु जीरो होते हैं तो घर में आने पर मल्टीप्लाय कैसे हो जाते हैं?’’

आज हमें लग रहा था माहवारी मैया फुरसत में थीं और हमारे सारे कुतूहल के कीड़ों को पटकपटक कर मारने के इरादे से आई थीं. शायद हमारे मन की कुलबुलाहट उन्हें बाहर तक दिखाई दे रही थी.

तभी अपनी बात को आगे बड़ाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘कोई बाल बुद्धि इस छूतअछूत के जाल में फंस जाए और बुजुर्गों से या खुद उन स्त्रियों से उन के अछूत होने का कारण पूछ बैठे तो बड़ों द्वारा जो तर्क दिए जाते हैं उन्हें सुन कर सरस्वती मैया हमारे पास आ कर फूटफूट कर रोती हैं कि बताओ माहवारी मु?ा से ऐसी क्या भूल हो गई इन को शिक्षा देने में जो आज मु?ो यह सुनना पड़ रहा है? देखो तो ये छोटे बच्चों को कैसेकैसे तर्क दे रहे हैं. बेटा आंगन में खड़ी थी तो कौआ छू कर चला गया.

पवित्र क्या अपवित्र क्या

बाकी पंछी तो रोज गंगा के पानी से नहाते हैं, जिन के छूने से तुम्हें कुछ नहीं होता. पर एक बेचारा कौआ ही है जो सालों से नहीं नहाता और जिस के छूने पर तुम्हें पवित्र होने में चार दिन लग जाते हैं.

कौए ने मेरे ऊपर बीट कर दी आज. अब कौआ इतना अक्लमंद और पढ़ालिखा है तो करें भी क्या. वह हर महीने कैलेंडर ले कर जो बैठता है कि किस महिला के ऊपर बीट किए 1 महीना हो गया. अब उसे उस महिला पर अगली बीट कब करनी है. इन की बातों से ऐसा लगता है जैसे बाकायदा कौओं की एक कमेटी बनी हुई है जो इस की ऐक्सेल शीट बनाती है. और कुछ दिन ऐसे ही चला तो कौआ प्रजाति भी मनुष्यों के ऊपर मानहानि का केस दर्ज कर देगी कि इन मनुष्यों द्वारा हमें बदनाम किया जा रहा है.

अरे सुबह घूमने गई थी तो कोई मुआ सड़क किनारे ही मल विसर्जित कर गया और मेरा पैर उस पर पड़ गया.

उफ, यह तो बड़ा बुरा हुआ बेचारी के साथ. अरे इन बहानों के लिए यदि भगवानजी ने बुद्धि दी है तो उसी के नीचे 2 आंखें भी तो दी हैं और ऐसा तर्क देने वाले अपने घर में बच्चों का मल साफ करते हैं तब भी 4 दिन ‘टच मी नौट’ खेलते हैं क्या?

मेरी तबीयत ठीक नहीं है. सिरदर्द कर रहा है. इन के सिरदर्द का भी हर महीने सरदर्द करता है कि अब एक महीने होने वाले हैं चलो फिर से सिरदर्द करें.

और इन रंगबिरंगे जवाब देने वाली महिलाओं के पीछे समाज का (और इस समाज में सिर्फ पुरुष ही नहीं महिलाएं भी आती हैं) काला सच छिपा होता है. ऐसे लोग, माहवारी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, उसे अकेले में तो स्वीकार करते हैं और माहवारी में इस्तेमाल करने के लिए पैड्स भी बनाते हैं, पर उन का नाम ‘व्हिस्पर’ भी रखते हैं. मतलब इस्तेमाल तो करो पर खुल कर चर्चा मत करो.

‘‘मैयाजी आप को ‘व्हिस्पर’ का अर्थ भी पता है?’’ मैयाजी को धड़ल्ले से अंगरेजी शब्दों का प्रयोग करते देख हम ने अचंभित हो कर पूछा.

मैयाजी ने हमारा कान खींचते हुए कहा, ‘‘अरे तुम्हीं लोगों की वजह से हम कुछ शब्द सीख पाए हैं. अब देखो न माहवारी से कुछ के लिए हम ‘पीरियड्स’ हो गए हैं तो कुछ के लिए ‘मेंसस.’ अब तो कई लोग हम को ‘पी’ या ‘एम’ भी बोलने लगे हैं. कुछ लोगों को तो ‘पीरियड्स’ बोलने में भी शर्म आती है तो वे लोग हाथ के अंगूठे को नीचे दिखा कर इशारे में कहते हैं ‘डाउन’ हो गए. अब न जाने हमें और कितना ‘डाउन फील’ कराएंगे.’’

माहवारी और गुस्सा

मैयाजी 6 में से 5 हाथ में अस्त्रशस्त्र पकड़े कब से हम से बतिया रही थीं, तो फिर एक कीड़ा बाहर निकला पर इस बार वह कीड़ा सहानुभूति का था और हम ने मैयाजी से पूछा, ‘‘मैयाजी इतनी देर से आप भूखी खड़ीखड़ी ये सब अस्त्रशस्त्र उठाए हमें सम?ा रही हैं, आप को गुस्सा नहीं आ रहा?’’

मैयाजी ने कहा, ‘‘अरे माहवारी और गुस्से का साथ तो हमेशा से है. पर हमें भूखप्यास से या ये सब पकड़ने से गुस्सा नहीं आता. हमें तब गुस्सा आता है जब लोगों को यह तो सम?ा में आता है कि माहवारी से फलांफलां चिड़चिड़ी हो जाती हैं, पर उन्हें उन के हाल पर छोड़ते नहीं हैं बल्कि उन्हें और छेड़ते हैं और कुछ लोग तो ऐसे होते हैं जो जूनजुलाई में घर में बंधे कुत्ते का ज्यादा भूंकना तो सम?ा जाते हैं पर घर की महिलाओं का हर महीने कुछ दिन का गुस्सा करना सम?ा नहीं पाते.

और कुछ अति आधुनिक लोग बिलकुल इस के विपरीत होते हैं जो बस तैयार खड़े रहते हैं कि कब कोई महिला गुस्सा करे और इस का सारा ठीकरा ‘लगता है इस के पीरियड्स आने वाले हैं’ बोल कर हम पर फोड़ दें. और वैसे भी शरीर में बदलाव और दिमाग का उतारचढ़ाव, दोनों पक्के दोस्त हैं, ये बात लोग क्यों नहीं सम?ाते?’’

हम ने मैयाजी से बातें करतेकरते उपमा बनाया और उन को परोसते हुए आखिरी कुतूहल के कीड़े को भी बाहर निकाल दिया और उन से पूछा, ‘‘मैया जब माहवारी से इतनी सारी परेशानियां आती हैं एक औरत के जीवन में तो आप ने माहवारी बनाई ही क्यों?’’

मैयाजी ने चेहरे पर हलकी मुसकान लाते हुए कहा, ‘‘अच्छा चलो मैं इस प्रश्न का उत्तर तुम्हें दूंगी पर पहले

मु?ो बताओ बीज को पौधा बनाने के लिए क्या चाहिए?’’

मैं ने सोच कर कहा, ‘‘धरती और पानी. दोनों में से कोई भी एक नहीं होगा तो पौधा नहीं बन पाएगा.’’

‘‘बस अब यह सम?ा लो मनुष्य प्रजाति को आगे बढ़ाने के लिए बीज जहां अंकुरित होते हैं वह धरती मैं हूं. तुम ही बताओ मेरे बिना मनुष्य का अस्तित्व कैसे संभव है? पर मु?ो एक शिकायत है, इसे कविता के माध्यम से सुनो-

(मैयाजी गुनगुनाते हुए)

धरतीधरती बीज जो

वो पौधा बन पाए,

मैं भी धरती बीज को

तुम सब मेरे जाए.

मेरे धरने से मैं क्यों

हूं अछूत बन जाती,

गर्भ वही है उस का भी

पर धरती, मां कहलाती.’’

इतना कहतेकहते मैयाजी का गला रुंध गया और उन की आंखों से 2 मोती टपक पड़े.

हम ने भी उन का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मैया आप क्यों रो रही हैं? चुप हो जाओ मैयाजी.’’

तभी 2 हाथ ?ां?ाड़ते हुए मु?ो उठाते हैं और मु?ो आवाज सुनाई देती है, ‘‘उठ, कब से उठा रही हूं तु?ो. यह मु?ो कब से मैया बोलने लगी तू. और यह नींद में क्या बड़बड़ा रही है? धरतीधरती बीज जो… और यहां सोफे में क्यों सो रही है, जा अपने कमरे में?’’

हम ने आंख मलते हुए देखा सामने मां थीं.

‘‘मैयाजी कहां चली गईं मां?’’ हम ने घबरा कर पूछा.

‘‘मैया? किस की मैया?’’ मां के मुख पर प्रश्नवाचक चिह्न अद्भुत रस में भीगा हुआ साफ दिखाई दे रहा था. दूसरे ही पल वे वात्सल्य रस में बदल गया और मां ने फिर पूछा, ‘‘तेरी तबीयत तो ठीक है न? पानी पीएगी, रुक पानी ले कर आती हूं.’’

स्वप्नलोक से यथार्थलोक में आने में हमें थोड़ा समय लगा. जब अच्छे से आंख खुल गई तो हम ने मां से कहा, ‘‘नहीं मां हम ले कर आते हैं न.’’

मां ने लगभग हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहा, ‘‘अरे रुक, तू भूल गई क्या कि तु?ो माहवारी है? रसोई में कैसे जाएगी?’’

‘‘ठीक वैसे ही जैसे बाकी के दिनों में जाते हैं. अब नींद से जाग गए मां हम,’’ चेहरे पर अलग मुसकान लिए धरती, धरती बीज जो… गुनगुनगुनाते हुए हमारे कदम रसोई की तरफ बढ़ रहे थे.                       –

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