अपने इकलौते युवा बेटे को एक असमय दुर्घटना में खो देने वाले वर्मा दम्पत्ति हर समय जोश और जिंदादिली से भरपूर नजर आते हैं. छोटे बड़े किसी भी समारोह में पहुंचकर वे अपने हरफनमौला स्वभाव के कारण वातावरण को खुशनुमा बना देते हैं. उनसे मिलकर हर इंसान सकारात्मकता से भर उठता है. अपने दिवंगत बेटे को याद करते हुए श्रीमती गीता वर्मा कहती हैं,"उसे जाना था सो चला गया, उसके बारे में ही सोचते रहेंगे तो जीना ही दूभर हो जाएगा..... तनाव.. अकेलेपन और फिर डिप्रेशन को गले लगाने से तो अच्छा है कि हम जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं ताकि हमारा जीवन तो सुचारू ढंग से चलता रहे."
गीता जी के पति राजन वर्मा बैंक के रीजनल मैनेजर पद से रिटायर हुए हैं वे कहते हैं,''बेटा ही तो गया है हम तो अभी इसी धरती पर हैं, जो चला गया उसे लेकर बैठे रहने से तो जिंदगी नहीं चलने वाली , जिंदगी तो चलने का नाम है और वह हर हाल में अपनी डगर पर निर्बाध गति से चलती ही रहती है, हां बेटे के जाने के बाद एक पल को ऐसा लगा था मानो अब सब खत्म हो गया.....उसके बारे में सोचते सोचते कभी कभी तो हमें इतना तनाव हो जाता था कि रातों को नींद नहीं आती थी, घर में खाना नहीं बनता था और यदि किसी तरह बन गया तो खाने की इच्छा ही नहीं होती थी और उस खाने को यूं ही फेंक दिया जाता था....इसी तरह दिन गुजर रहे थे. फिर एक दिन लगा कि इंसान का जन्म बहुत मुश्किल से मिलता है और एक हम है कि अपनी इस खूबसूरत जिंदगी को यूं ही बर्बाद कर रहे हैं....इस तरह तो एक दिन बीमार होकर बेड पर आ जाएंगे. बस उस दिन दुःख, अवसाद, और तनाव को हटाकर हम यथार्थ में आ गए और फिर तो लगा कि अभी तो बहुत कुछ करना शेष है. और उसी दिन से हमारा जीवन को देखने का नजरिया बदल गया."
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए गीता जी कहतीं है,"विभू के रहते कभी हमें अपने बारे में सोचने का अवसर ही नहीं मिला, अब तो राजन भी अपनी नौकरी से रिटायर हो गए हैं. अब हम दोनों ने अपनी बागवानी, कुकिंग, और संगीत की हॉबी को तराशना प्रारम्भ कर दिया. 65 वर्ष की उम्र में हमने एक संगीत क्लास ज्वाइन की है, एक संगीत संस्थान से भी जुड़ गए हैं जिसके माध्यम से हम संगीत के स्टेज और फेसबुक लाइव प्रोग्राम्स करते हैं"
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