कोरोना वायरस के चलते फैली कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया के लोगों का जीवन बदल कर रख दिया है. अचानक लागू किए गए लौकडाउन के चलते दिनोंदिन गिरती अर्थव्यवस्था ने कितनों की रोजीरोटी छीन ली, करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए.
इस दौरान कुछ लोगों ने हाथ पर हाथ रख कर न बैठते हुए कोई नया काम शुरू किया और वे सफल भी हुए. पुणे के रजत की जब नौकरी चली गई तो उस ने स्थिति देखते हुए फौरन कुछ नया काम करने की सोची. सैनिटाइज़ेशन के बिजनैस से अच्छा और क्या हो सकता था, सैंनिटाइज़ेशन की हर जगह जरूरत है, लोग अपनी गाड़ियों को आजकल सैंनिटाइज़ करना चाह रहे हैं लेकिन उन्हें ऐसा करने वाले लोग ढूंढने पड़ रहे हैं.
रजत ने घर में ही अपना औफिस खोला, घरघर जा कर इस बिजनैस को शुरू किया. लोग अपनी बिल्डिंग्स, गाड़ियों के अलावा औफिस भी सैंनिटाइज़ करना चाहते थे. इन सभी जगहों पर रजत के बिज़नैस की अच्छी शुरुआत हुई. उस का घर का खर्च आराम से निकलने लगा.
यह बिज़नैस बड़े शहरों के अलावा देश के किसी भी कोने में शुरू किया जा सकता है. हर क्षेत्र के लोगों को इस की जरूरत है. अब निजी गाड़ियों के अलावा टैक्सी के रूप में चलने वाले वाहन भी रोज सैंनिटाइज़ किए जाएंगे. इस में बाइक, टेम्पो, टैक्सी, बसें सब शामिल हैं. ऐसे में आप अपनी क्षमता के अनुसार यह काम शुरू कर सकते हैं.
देश के बड़े बिज़नैसमैन पहले ही जान लेते हैं कि अब किस तरह के बिज़नैस में किस तरह की मशीन की जरूरत पड़ेगी. आप ने देखा होगा कि मार्केटट में सैंनिटाइज़ेशन के लिए हर तरह की मशीनें आ गई हैं. आप अपनी जरूरत और बजट के हिसाब से मशीनें खरीद सकते हैं. इस के अलावा चाहें तो कुछ लोगों को अपने साथ काम पर रख कर बड़े पैमाने पर शुरू कर सकते हैं.
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बड़े शहरों में रोज सुबह निजी वाहनों को साफ़ करने के लिए लोग आते हैं. ऐसे में आप उन से मिल कर उन के वाहनों को सैंनिटाइज़ करने का काम ले सकते हैं. बाइक मुश्किल से 10 मिनट में सैंनिटाइज़ हो जाएगी, कार 20 मिनट तक लेगी. ऐसे आप सुबह से शाम तक कई गाड़ियों को सैनिटाइज़ कर सकते हैं. जहां तक लागत का सवाल है, तो इस में खर्च आप की मशीन और प्रयोग होने वाले कैमिकल का ही होगा.
इन की कीमत निकालने के बाद बाइक और कार के लिए आप आराम से रेट तय कर सकते हैं. वहीं, घर और औफिस को सैंनिटाइज़ करने के लिए आप को ज्यादा पैसा मिल सकता है. कुल मिला कर इस बिजनैस की आजकल खूब डिमांड है. आप कुछ करना चाह रहे हैं, तो इस में हाथ आज़मा सकते हैं.
लौकडाउन की मार झेलते हुए बड़ी संख्या में प्रवासी लोग अपने गांव वापस लौटे. ये कुछ काम करना चाहते थे. कुछ लोग परिवार के साथ मिल कर खेती और दूध के बिज़नैस से ही अच्छी कमाई कर रहे हैं. ये परिवार टमाटर, गोभी, मूली कई तरह की बेमौसम सब्जियां उगा रहे हैं. पहाड़ी इलाकों में बेमौसमी जैविक सब्जियों का बाजार बहुत बड़ा है. अब मैदानी इलाकों में भी इस की मांग काफी बढ़ रही है.
ठाणे के अनिल की नौकरी अचानक चली गई, तो किसी को कुछ समझ नहीं आया कि क्या करें. एक बेटी थी जो पढ़ रही है. अनिल की पत्नी रेनू बहुत ही अच्छी कुक है, उसे हर तरह का खाना बनाना आता है. कोरोना के दौरान सोसाइटी में अकेली रहने वाली 80-वर्षीया नीरा आंटी की मेड नहीं आ रही थी. रेनू ने उन आंटी को खाना भेज कर हैल्प करने के लिए औफर दिया.
आंटी ने कहा, ”खाना तो मुझे चाहिए, एक टिफ़िन रोज भेज देना, पर तुम्हें उस के लिए पैसे लेने होंगें,” रेनू उन से एक टिफ़िन का सौ रुपए ले लेती. धीरेधीरे और लोग भी रेनू से टिफ़िन देने की रिक्वैस्ट करने लगे. अनिल ने रेनू की कुकिंग में पूरी तरह से हैल्प करनी शुरू की. आज रेनू बहुत से टिफ़िन तैयार करने का काम कर रही है. इतने और्डर मिलते हैं कि वह हैरान है, न कोई विज्ञापन दिया, न किसी से कोई हैल्प मांगी, फिर भी काम खूब चल निकला.
अगर आप भी कुछ अलग करना चाह रहे हैं तो एक काम और कर सकते हैं. हमारे देश में आज भी प्लास्टिक या स्टील के कप के बजाय मिटटी के कप, जिन्हें कुल्हड़ भी कहा जाता है, में चाय, कौफ़ी पीना ज्यादा अच्छा लगता है. इन मिटटी के कपों की आपूर्ति उतनी नहीं हो पा रही है जितनी इन की मांग होती है. इसलिए, यह एक अच्छा बिज़नैस हो सकता है. इन की मांग ज्यादा है जबकि सप्लाई कम. इस के लिए आप कम पैसों से काम शुरू कर के ठीकठाक कमा सकते हैं. वैसे भी, प्लास्टिक से बने कप पर्यावरण और हैल्थ दोनों के लिए नुकसानदायक होते हैं. मिटटी के कपों में चायकौफ़ी पीना ज्यादा अच्छा है.
मुंबई में ही एक प्रौपर्टी डीलर हैं,किशन कुमार. कोरोना ने उन के औफिस में जैसे ताला ही लगवा दिया. मौके की नजाकत को समझते हुए उन्होंने फौरन तरहतरह के मास्क बनाने का काम शुरू कर दिया, जो खूब चल निकला. आजकल तो वे सैनिटाइज़र लटकाने वाले हुक बना रहे हैं, जिसे जींस या पैंट की बेल्ट में लटका कर उस में सैनिटाइज़र ले जाया जा सकता है, जैसे बहुत पहले पेजर, फिर मोबाइल फोन लटकाया जाता था.
आज जब पूरी दुनिया कोरोना संकट की चपेट में है. रैस्तरां जैसे केंद्र बंद करने पड़ गए. वहीं, जापान में एक अनूठी पहल देखने को मिली. उस पहल को काफी सराहा जा रहा है. सैंट्रल जापान में एक सुशी रैस्तरां है, जिस ने ऐसे समय में अपनी सेल्स बढ़ाने के लिए एक ख़ास तरीका निकाला है. इस रैस्तरां ने बौडी बिल्डर्स को नौकरी दी. उन्हें बिना शर्ट पहने फ़ूड डिलीवरी पर लगाया. इस कौन्सैप्ट की चर्चा जापान में ही नहीं, पूरी दुनिया में हो रही है.
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शर्टलैस फ़ूड डिलीवरी कराने का विचार इस रैस्तरां के प्रमुख शेफ मसनौरी के दिमाग में आया, जो खुद भी बौडी बिल्डर रहे हैं. जिस जगह वे बौडी बिल्डिंग करते थे, वहां उन के कुछ दोस्त भी थे. उन्होंने इस विचार में उन्हें भी शामिल करने की सोची. इस में 2 बातें थीं, पहले रैस्तरां की इनकम को कोरोना जैसी मुसीबत के समय बढ़ाना और दूसरे अपने बौडी बिल्डर दोस्तों को नौकरी देना. उन्होंने दोनों चीजों को मिला कर एक अच्छा रास्ता निकाल लिया. रैस्तरां की खास पहचान बनी और उन के दोस्तों को काम मिला.
हालात कितने भी कठिन हों, सूझबूझ और इच्छाशक्ति से हल निकाला जा सकता है. ये उदाहरण समय के साथ चलने का हुनर सिखाते हैं और अनुकूलन का पाठ पढाते हैं कि समय के अनुसार चल कर इंसान अपनी मंजिल पा सकता है. कोविद-19 के इस मुश्किल समय ने अर्थव्यवस्था को बड़ी चोट पहुंचाई है. इस दौर में नए आविष्कार समय की जरूरत हैं. लोगों को नए आइडिया पर सोचने और आगे बढ़ने की जरूरत है. उम्मीद कर सकते हैं कि हम जल्दी ही इस बुरे दौर से बाहर आएंगे. नई राहों की तरफ कदम बढ़ाना होगा जिस से कोरोना के कारण अपने काम में हो रहे नुकसान की चिंता से बाहर निकल सकें. सो, पौजिटिव सोच और जज्बे के साथ आगे बढ़ना होगा.