गृहशोभा आप का परिचय कराने जा रही है एक ऐसी बहादुर और सफल महिला से जिन्होंने अपराध और अन्याय की शिकार हो चुकी महिलाओं को जीने का नया रास्ता दिखाया. ये महिला हैं श्रीरूपा मित्रा चौधरी जिन को ‘निर्भया दीदी’ के नाम से भी जाना जाता है. हजारों महिलाएं, जिन को श्रीरूपा की वजह से आजादी हासिल हुई, इन का काफी सम्मान करती हैं और इन के दिखाए रास्ते पर चलती हैं.
लेखक व डाक्यूमेंटरी फिल्म निर्मात्री, टाइम्स औफ इंडिया की भूतपूर्व क्राइम जर्नलिस्ट और समाजसेविका श्रीरूपा मित्रा चौधरी वाकई में एक निडर महिला हैं. अपने पत्रकारिता के कार्यकाल में इन के लेखों में अपराध के शिकार लोगों की दुर्दशा का वर्णन विस्तार से होता था और आज लगभग 10 वर्षों के बाद वे लाखों गांव वालों के बीच निर्भया दीदी बन कर उभरी हैं. पश्चिम बंगाल के गरीबी और अपराध से प्रभावित गांवों में निर्भया दीदी काफी प्रचलित हैं. मालदा से सटे गांवों में इन को लोग अपना रक्षक मानते हैं. अल्पसंख्यक और जनजातियों की महिलाएं और लड़कियां इन से एक बार मिलने को उत्सुक रहती हैं ताकि अपनी समस्याओं का समाधान और न्याय पा सकें. निर्भया दीदी भी प्यार और सेवा की प्रतिमूर्ति हैं. वे सही माने में शांति की दूत हैं. वे रहती तो दिल्ली में हैं पर ज्यादातर समय वे अपने समाजसेवा के कार्यक्षेत्र में ही बिताती हैं. उन का दिल मालदा में ही बसता है क्योंकि इसी जिले में उन्होंने अपना बचपन गुजारा, वह भी प्रतिकूल परिस्थितियों में.
शांतिदूत और पर्यावरण संरक्षक
आज निर्भया दीदी एक नामी समाजसेविका, पर्यावरण संरक्षक और शांति की दूत के रूप में जानी जाती हैं. इन्होंने बंगाल के 3,000 गांवों को गोद ले रखा है और बांग्लादेश सीमा पर बसे लोगों को भयमुक्त वातावरण दिलाने में सहायता कर रही हैं. वे ऐसे गांव वालों के लिए एक हीरो की तरह हैं, जो शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा की मांग कर रहे हैं और इस के लिए वर्षों से लड़ रहे हैं. गरीब जनजातियों की महिलाएं, अल्पसंख्यक महिलाएं और दलित समाज की महिलाएं ऐसे लोगों में ज्यादा हैं. निर्भया दीदी को जितना बंगाल के लोग प्यार करते हैं, उतना ही तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और जम्मूकश्मीर के भी.
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