इस बार के लोकसभा चुनावों में औरतों ने बढ़चढ़ कर भाग लिया और उन की वोटिंग आदमियों सी रही. स्वाभाविक है कि अगर नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी इतने विशाल बहुमत से जीती है तो उस में आधा हाथ तो औरतों का रहा. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार अब तो औरतों के बारे में कुछ अलग से सोचने की कोशिश करेगी.
जो समस्याएं आदमियों की हैं वही औरतों की भी हैं पर औरतों की कुछ और समस्याएं भी हैं. इन में सब से बड़ी समस्या सुरक्षा की है. जैसे-जैसे औरतें घरों से बाहर निकल रही हैं अपराधियों की नजरों में आ रही हैं. घर से बाहर निकलने पर लड़कियों को डर लगा रहता है कि कहीं उन्हें कोई छेड़ न दे, उठा न ले, बलात्कार न कर डाले, तेजाब न डाल दे.
घर में भी औरतें सुरक्षित नहीं है. घरों में कभी पति से पिटती हैं तो कभी बहुओं से. दहेज के मामले कम हो गए हैं पर खत्म नहीं हुए हैं. इतना फर्क और हुआ है कि अब अत्याचार छिपे तौर पर किया जाता है, मानसिक ज्यादा होता है, यदि शारीरिक नहीं तो.
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लड़कियां पढ़-लिख कर लड़कों से ज्यादा नंबर ले कर आ रही हैं पर उन्हें नौकरियां नहीं मिल रहीं. लड़कों को कोई कुछ नहीं कहता पर यदि लड़की को नौकरी
न मिले तो उसे जबरन शादी के बंधन में बांध दिया जाता है. यह बंधन चाहे कुछ दिन खुशी दे पर होता तो अंत में उस में बोझ ही बोझ है. सारा पढ़ालिखा समाप्त हो जाता है.
सरकार को बड़े पैमाने पर लड़कियों के लिए नौकरियों का प्रबंध करना चाहिए चाहे नौकरी सरकारी हो, प्राईवेट हो या इनफौर्मल सैक्टर की. अब भाजपा सरकार के पास बहाना नहीं है कि उस के हाथ बंधे हैं. जनता ने भरभर कर वोट दिए हैं. जनता को वैसी ही अपेक्षा भी है.
इस बार चूंकि कांग्रेस, समाजवादी, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, जनता दल आदि का सफाया हो गया है, सरकार यह नहीं कह सकती कि उसे काम नहीं करने दिया जा रहा. सरकार अब हर तरह के फैसले ले सकती है.
सुरक्षा के साथ-साथ सरकार को साफसफाई भी करनी होगी. देश के शहर 5 सालों में न के बराबर साफ हुए हैं. शहरों में बेतरतीब मकानों व गंदे माहौल में करोड़ों औरतों को बच्चे पालने पड़ रहे हैं. खेलने की जगह नहीं बची. औरतों को सांस लेने की जगह नहीं मिलती. शहर में बागबगीचे होते भी हैं तो बहुत दूर जहां तक जाना ही आसान नहीं होता.
यह डर भी लग रहा है कि सरकार कहीं टैक्स न बढ़ा दे. अगर ऐसा हुआ तो उस की मार औरतों पर ही पड़ेगी. औरतों ने नोटबंदी का जहर पी कर भी नरेंद्र मोदी को वोट दिया है. अब महंगाई कर के उन का चैन न छिन जाए.
औरतों के लिए बने कानूनों में भी सरलता आनी चाहिए. तलाक लेना कोई अच्छी बात नहीं पर जब लेना ही पड़े तो औरतें सालों अदालतों के गलियारों में भटकती रहें, ऐसा न हो. कहने को औरतों के लिए कानून बराबर है पर आज भी रीतिरिवाजों, परंपराओं के नाम पर औरतों को न जाने क्याक्या सहना पड़ता है. इस सरकार से उम्मीद है कि वह औरतों को इस से निजात दिलाएगी.
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वैसे तो औरतों को धार्मिक क्रियाकलापों में ठेल कर उन की काफी शक्ति छीन ली जाती है पर इस बारे में यह सरकार शायद ही कुछ करे, क्योंकि यह ऐसा क्षेत्र है जिस पर सरकार की नीति साफ है, जो 2000 साल पहले होता था वही अच्छा है. फिर भी जो इस बंधन को सहर्ष न अपनाना चाहे कम से कम वह तो अपनी आजादी न खोए.
सरकार को इस बार जो समर्थन मिला है उस में अब केवल वादों की जरूरत नहीं है. 350 से ज्यादा सीटें जीतने का अर्थ है कि देश 350 किलोमीटर की गति से बढ़े और औरतें सब से आगे हों.