वर्ष 2016 में सामाजिक व राजनीतिक उथलपुथल के चलते देश में जाति विभाजन की पीड़ा सहते लोगों का दर्द देखने को मिला. जनवरी में पीएचडी स्टूडैंट रोहित वेमुला द्वारा की गई आत्महत्या ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया कि हमारी शिक्षा प्रणाली दलित विद्यार्थियों के साथ कैसा व्यवहार कर रही है. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को गिनें तो देश की जनसंख्या का 25 प्रतिशत दलित समाज है.
दलित समाज के लोगों से बात करने पर उन्होंने अपने मन की बातें कहीं-काशी, मुंबई के कचरा उठाने वाले सफाईकर्मी अजय का परिवार मराठवाड़ा क्षेत्र के सूखाग्रस्त जालना जिले में रहता है. उस के संयुक्त परिवार के पास
6 एकड़ जमीन है. सिंचाई की असुविधा के कारण उस के पिता सफाईकर्मी का काम करने के लिए मुंबई आ गए थे. जैसा कि इस काम को करने वाले अन्य लोगों का अंत होता है, वैसे ही अजय के पिता की भी क्षय रोग यानी टीबी से ही मृत्यु हुई. अजय की मां भी यही काम करने मुंबई आ गई थी. 10वीं कक्षा पास न कर पाने पर अजय ने भी बृहत मुंबई म्यूनिसिपल कौर्पोरेशन यानी बीएमसी की क्लीनर फोर्स को जौइन कर लिया.
अजय का कहना है, ‘‘अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस ने भाजपा प्रशासन के जरिए रिजर्वेशन के खिलाफ अपना मौलिक एजेंडा लागू करवाना शुरू किया है. मैं सभी तथाकथित मराठों और ब्राह्मणों से पूछना चाहता हूं कि आप लोग यह कचरे वाली नौकरी क्यों नहीं करते, आप अपने शहर को वैसे साफ क्यों नहीं करते जैसे हम करते हैं, बहुजनों के लिए ही इस रोजगार में शतप्रतिशत आरक्षण क्यों है? मैं यह काम नहीं करना चाहता. मेरी 3 बेटियां स्कूल जा रही हैं. मैं चाहता हूं कि समाज हमारे काम का महत्त्व समझे, दूसरे लोग भी अपने हाथ गंदे करें. मराठों और ब्राह्मणों द्वारा यह काम किया जाना तो दूर की बात है, हम सब हाउसिंग सोसाइटी में भी जाते हैं तो वहां का गार्ड भी डस्टबिन उठाने में हमारी मदद नहीं करता. हमारे काम का हर तरफ अपमान किया जाता है.’’
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