समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव का परिवार देश का सब से बड़ा राजनीति परिवार है. एकसाथ विधानसभा, विधानपरिषद, राज्य सभा और लोक सभा में किसी एक परिवार के इतने सदस्य नहीं रहे हैं. मुलायम सिंह के छोटे बेटे प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव ने राजनीति के बजाय समाजसेवा के जरीए जनता की सेवा करने का काम शुरू किया है. वे ‘बी अवेयर’ नामक स्वयंसेवी संगठन के जरीए महिलाओं को उन के अधिकारों और कानूनों की जानकारी देने का काम कर रही हैं. महिलाओं के लिए होने वाले ज्यादातर कार्यक्रमों में पुरुष नहीं दिखते हैं लेकिन जब अपर्णा यादव महिलाओं के लिए कार्यक्रम करती हैं तो महिलाओं के साथसाथ बड़ी संख्या में पुरुष भी शामिल होते हैं.
12 वीं कक्षा तक की पढ़ाई लखनऊ के लोरैटो कौन्वैंट कालेज से और ग्रैजुएशन आईटी कालेज से करने के बाद अपर्णा ने इंटरनैशनल रिलेशनशिप विषय पर इंगलैंड की मैनचैस्टर यूनिवर्सिटी से एमए की डिगरी हासिल की. फिर लखनऊ के भातखंडे संगीत महाविद्यालय से शास्त्रीय संगीत में डिगरी हासिल की. 2010 में उन की शादी मुलायम सिंह यादव के छोटे बेटे प्रतीक के साथ हुई. आज वे डेढ़ साल की बेटी की मां हैं. वे समाजसेवा और स्टेजशोज के जरीए जनता से सीधा संवाद कर रही हैं. वे राजनीति करने के बजाय समाजसेवा से जुड़ कर काम करना चाहती हैं.
साधारण परिवार में पलीबढ़ी अपर्णा ने सब से बड़े राजनीति परिवार के साथ कैसे तालमेल बनाया ऐसे ही और कई सवालों के जवाब अपर्णा ने एक खास मुलाकात के दौरान दिए:
स्कूली शिक्षा के समय आप ने कभी सोचा था कि आप को समाजसेवा के जरीए जनता से जुड़ने का मौका मिलेगा?
मेरे मातापिता ने मुझे डाक्टर बनाने का सपना देखा था. मैं 10वीं कक्षा में जीवविज्ञान विषय से पढ़ाई कर रही थी. इसी दौरान मुझे जीवविज्ञान के प्रैक्टिकल करने पड़े. कई तरह के प्रैक्टिकल थे. एक में मुझे स्लाइड पर अपना ब्लड निकाल कर उस की जांच करनी थी. यह काम करने के बाद मैं बेहोश हो गई. यह बात मेरे मातापिता को पता चली तो उन्होंने फैसला किया कि मुझे आगे की पढ़ाई जीवविज्ञान से नहीं करनी है. फिर 11वीं कक्षा में मैं ने आर्ट्स ले लिया. मेरे पिता ने मुझे बताया कि क्रांतिकारी विचारों के जनक ज्यादातर आर्ट्स के क्षेत्र से ही आए हैं. उसी समय आरक्षण को ले कर जोरदार बहस चल रही थी. केंद्र सरकार में मंत्री रहे दिवंगत अर्जुन सिंह ने आरक्षण को ले कर एक बदलाव किया था. हम सब उस का विरोध कर रहे थे. हम ने पहली बार स्कूल की लड़कियों को साथ ले कर एक बड़ा धरना दिया और नारा दिया ‘गरम जलेबी तेल में अर्जुन सिंह जेल में.’ समाजसेवा के प्रति मेरा रुझान उसी समय से है.
इस समय प्रदेश में आप के परिवार की सरकार है, जो काम आप समाजसेवा के जरीए करना चाहती हैं वह सरकार के जरीए भी तो हो सकता है? अलग रास्ते पर चलने की खास वजह?
एमए की पढ़ाई के दौरान मैं ने महिलाओं की हालत विषय पर अपना रिसर्च पेपर दाखिल किया था. मेरे साथ के कुछ लोगों ने महिलाओं पर एक स्टडी की, जिस में बताया गया कि किसकिस तरह से महिलाओं का समाज में शोषण होता है. उसी समय मैं ने तय किया था कि मैं इस के लिए जागरूकता अभियान शुरू करूंगी. हर काम के लिए हमें सरकार पर आश्रित नहीं होना चाहिए. एनजीओ का काम सरकार और जनता के बीच पुल की तरह काम करने का होता है. मैं 2 माह से कम समय में ही लखनऊ, गोरखपुर, फैजाबाद और लखीमपुर खीरी में महिलाओं के बहुत सारे सेमिनार कर चुकी हूं. महिलाओं का मेरे अभियान के साथ जुड़ना मेरा हौसला बढ़ा रहा है. मैं केवल इतना समझाती हूं कि महिलाएं अपने अधिकारों, कानूनों को जानेंसमझें. जरूरत पड़ने पर कहां जाए और उन की बात न सुनी जाए तो वे क्या करें, इस की जानकारी उन्हें हो.
कुछ लोग सोचते हैं कि आप राजनीति में जाने का रास्ता बना रही हैं?
जो लोग हमारे परिवार को जानतेसमझते हैं, वे ऐसा नहीं सोच सकते. मैं अभी यह तो नहीं कह सकती कि मैं राजनीति नहीं करूंगी, मगर यह जरूर कह सकती हूं कि मैं समाजसेवा इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं कर रही. मैं ने राजनीति में जाने को ले कर कोई योजना तैयार नहीं की है. मेरी इच्छा केवल समाजसेवा के जरीए महिलाओं को जागरूक करने की है. मैं इस काम को आगे बढ़ाना चाहती हूं. केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं देश के दूसरे हिस्सों में भी जाने की योजना बना रही हूं.
आप साधारण परिवार की रही हैं. आप दूसरी बिरादरी से हैं. ऐसे में आप के सामने मुलायम परिवार में शामिल होने में कोई परेशानी का अनुभव हुआ?
मेरे सासससुर और पति सभी बहुत ही सहयोगी स्वभाव के हैं. घर के दूसरे लोगों ने भी मेरा हमेशा सम्मान किया. मैं गायन में रुचि रखती थी. भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय से शास्त्रीय संगीत में डिगरी ली. शादी के बाद जब मैं ने स्टेज पर गाने की बात सोची तो मुझे लगा कि शायद मेरे ससुराल पक्ष के लोगों को यह अच्छा न लगे. लेकिन जब यह बात नेताजी (मुलायम सिंह यादव) को पता चली तो उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा कि सैफई महोत्सव से अच्छा कोई मंच हो ही नहीं सकता. इस के बाद मैं ने लखनऊ महोत्सव और दूसरे मंचों पर भी गाया. मुझे किसी तरह की कभी कोई परेशानी नहीं हुई. लोक सभा चुनाव के समय मेरी आवाज में समाजवादी पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए एक कैसेट भी तैयार कराया गया.
आप ने आज की महिलाओं की क्याक्या परेशानियां अनुभव की हैं?
समाज में अभी भी हर स्तर पर महिलाओं को ले कर मानसिकता बदली नहीं है. मेरा मानना है कि महिलाओं का मान बढ़ाने और उन के खिलाफ होने वाली आपराधिक घटनाओं को रोकने के लिए परिवारों को अपने घरों के पुरुषों और बेटों को समझाना होगा ताकि वे महिलाओं का सम्मान करें. जब तक बेटे नहीं सुधरेंगे तब तक हालात नहीं बदलेंगे. महिलाएं अभी भी अपने खिलाफ होने वाली घटनाओं को छिपाने की कोशिश करती हैं. कई बार उन की बातों को ढंग से सुना भी नहीं जाता. पीडि़ता को ही गुनहगार समझा जाता है. ऐसी तमाम जटिलताएं हैं, जिन्हें दूर कर के ही महिलाओं की परेशानियों को हल किया जा सकता है. हालांकि कुछ समय से महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ा है पर उसे और बढ़ाने की जरूरत है.
आप इतने काम एकसाथ कैसे कर लेती हैं?
मेरे पति और परिवार जिस तरह से मेरा हौसला बढ़ाता है उस से मुझे ताकत मिलती है. दिल से काम करती हूं, जो लोगों को पसंद आता है.
फुरसत के पलों में मन क्या करने को करता है?
मुझे पढ़ने का शौक बचपन से है. मेरे पिता बचपन में मुझे बच्चों की पत्रिका ‘चंपक’ ला कर देते थे. तब वह छोटे साइज में आती थी. मैं ने भी सोच रखा है कि जब मेरी बेटी पढ़नालिखना सीख रही होगी, तो मैं उसे चंपक जरूर ला कर दिया करूंगी. स्कूल के बाद कालेज के दिनों में मेरे घर में ‘सरिता’ और ‘गृहशोभा’ आती थी. हम उन्हें पढ़ते थे. कई बार इन में प्रकाशित महिलाओं के संबंध में लेख मुझे प्रभावित करते थे. मेरा मानना है कि आज महिलाओं को खुद से ज्यादा समय इन पत्रिकाओं को पढ़ने को देना चाहिए.